बिहार में मानवाधिकार को सशक्त करने की जरूरत 

राजकिशोर प्रसाद
मानवाधिकार मनुष्य के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की एक उत्तम व सशख्त माध्यम है। असमानता अन्याय व शोषण के खिलाफ मानवाधिकार एक सशक्त अभियान है। पुलिस, कानून, पितृसत्ता, लैगिंग वर्चस्व आदि के आधार पर  विश्व के विभिन्न हिस्सों में मानव को उसके मूलभूत अधिकारो से वंचित किया जा रहा है। बुनियादी जरुरतें एवं अधिकारो की रक्षा का एक सशक्त साधन मानवाधिकार है।
बिहार में भी मानवाधिकार का हनन एक गम्भीर विषय बन चुका है। बाढ़ की विभीषिका के दौरान मानवाधिकार से लोगो को वंचित होना पड़ता है। पुलिस प्रशासन की भूमिका व कार्य संस्कृति सवालो के घेरे में है। चिकित्सा क्षेत्रो में भी भी मानवाधिकार  के घोषणापत्रों का लगातार उलंघन होने की सूचना है। वर्तमान दौर में खेतिहर मजदूरो तथा सीमांत किसानो का शोषण जरी है। यौन शोषण, बलात्कार, बाल मजदूरी, देह व्यापार, अपहरण व अन्य अनैतिक आचरणों की रोकथाम में मानवाधिकार की महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है।
कहतें हैं कि बिहार में मानवाधिकार के विविध आयामो को व्यवस्थित और संगठित करने की जरूरत है। मानवाधिकार और स्वयंसेवी संगठनो के बिच एक  सुस्पष्ट एवं तर्कपूर्ण रिश्ता है। मानवाधिकार के मुद्दों को जीवंत करने में स्वयंसेवी संगठनो की सक्रियता, उत्साहवर्धक है। लेकिन सीमावर्ति क्षेत्रो में स्वयंसेवी संगठन अधिक सक्रिय नही है। मानवाधिकार जागृत समाज का प्रतीक माना जाता है। लिहाजा, शिक्षक, छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक एवं सम्वेदनशील बौद्धिक वर्ग के सम्मलित योगदान से मानवाधिकार के मुद्दों को जीवंत करने की आवश्यकता है।

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