होली (Holi) सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं बल्कि यह त्योहार है पारस्परिक मेल और सद्भाव का। वैसे तो भारतीय संस्कृति मे बहुत सारे पर्व-त्योहार आते हैं लेकिन इसमे होली (Holi) पर्व का एक खास ही स्थान है। बच्चों मे तो इस पर्व को लेकर उत्साह रहता ही है साथ ही बड़े लोग भी होली के बहाने अपने गिले-सिकवे मिटाने की कोशिश करते हैं।
Article Contents
होली (Holi) कब मनाया जाता है?
हर साल होली (Holi) चैत्र मास के कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। वैसे इसकी शुरुआत फाल्गुन की पूर्णिमा से ही होलिका दहन के रूप मे हो जाती है। भारतीय संस्कृति मे विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार होली को नए साल के शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर तथा बड़ों का आशीर्वाद लेकर नये साल की शुरुआत की जाती है। साथ ही होलिका दहन के दिन अपने पुराने साल की सारी कड़वी यादों, बुरी निशानियों को जलाकर नये साल को नयी उम्मीद के साथ जीने का संकल्प लिया जाता है।

होली क्यों मनाते है?
होली पर्व मनाने की अलग-अलग मान्यताएं है, जिसमे एक पौराणिक कथा भी है जो काफी प्रचलित है।
होली की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले हिरणकश्यप नामक एक असुर राजा हुआ करता था। जो बहुत ही अत्याचारी और क्रूर था। वह चाहता था कि लोग भगवान की नहीं उसकी पूजा करें। चारों तरफ हिरण्यकश्यप का आतंक फैला हुआ था। लोग डर के कारण भगवान की पूजा नहीं कर पा रहे थे। इसी बीच कयाधु जो हिरण्यकश्यप की पत्नी थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद विष्णु भवगान का बहुत बड़ा भक्त था। यह बात उसके पिता को नापसंद थी। वह अपने पुत्र को विष्णु की उपासना न करने के लिए काफी डराता-धमकाता था। फिर भी प्रह्लाद ने उसकी बात न मानी। इन बातों से तंग आकर असुरराज ने प्रह्लाद को एक बार पहाड़ से नीचे गिरवा दिया, फिर भी प्रह्लाद को कुछ न हुआ। प्रह्लाद विष्णु भगवान की भक्ति करता रहा। इसके बाद असुरराज ने अपनी बहन होलिका को बुलवाया। होलिका के पास एक चादर थी जिसे ब्रम्हा जी ने वरदान मे दिया था और कहा था कि वह उस चादर को ओढ़कर अग्नि मे भी नहीं जलेगी। हिरणकश्यप ने होलिका को वह चादर ओढ़कर प्रह्लाद को गोद मे लेकर अग्नि मे बैठ जाने को कहा। होलिका ने ठीक वैसा ही किया वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि मे बैठ गई। मगर उसी समय हवा का तेज झोंका आया और वह चादर उड़कर प्रह्लाद से लिपट गई। प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ पर अग्नि मे होलिका जलकर भस्म हो गई। इसे अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के रूप मे माना गया और उसी दिन से होलिका दहन मनाने की शुरुआत हुई। हर साल हमारे देश मे होली से एक दिन पहले फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका दहन के रूप मे मनाया जाता है।

इस दिन हमारे देश के सड़क-चौराहों पर समूह मे लोग इक्कठा होकर लकड़ी तथा अन्य सामग्री एकत्रित कर उसे जलते है और होलिका दहन मनाते है।
होली मनाने के अन्य कारण
होली (Holi) मनाने के कुछ अन्य कारण भी है। जैसे कि होली के पूर्व सर्दी का महीना रहता है और लोग ठंढ के कारण ठीक से अपने शरीर के साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। शरीर पर मैल इक्कठा हो जाती है। जब वसंत मे होली पर्व आता है तो सभी रंग-गुलाल से होली खेलते है और शरीर पर लगे रंग को मल-मलकर साबुन से छुड़ाते है। इस वजह से शरीर के सारे मैल साफ हो जाते है और लोग खुद को तरोताजा महसूस करने लगते है।
लठमार होली (Lathmar Holi)
उत्तरप्रदेश में बरसाना का लठमार होली एक विशेष आकर्षण का केंद्र है। लोग इसे देखने के लिए देश-विदेश से आते हैं। इस दिन बरसाना ही नहीं बल्कि पूरे मथुरा, ब्रज, वृंदावन, नंदगावं मे हर्षो-उल्लास का माहौल होता है। इस दिन यहां के लोक कलाकार अपनी ब्रज संस्कृति के रंग बिखेरते है। हुरियारिने नंदगावं के हुरियारो पर प्रेमपगी लठिया बरसाती हैं। यह दृश्य काफी आकर्षक लगता है। चारों तरफ अबीर-गुलाल उड़ रहे होते है। लोग भांग-ठंढई के मजे ले रहे होते है। नंदगावं के हुरियारो द्वारा हंसी-ठिठोली के शब्द बान छोड़े जाने पर, हुरियारिने या गोपियां प्रेमपगी लठिया बरसाकर इसका जबाव देती है।

लठमार होली मनाने के पीछे की कहानी
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ होली खेलने बरसाना जाते थे। इस बीच कृष्ण और उनके मित्र, राधा तथा उनकी सखियों के साथ हंसी-ठिठोली किया करते थे। जिससे रुष्ट होकर राधा तथा उनकी सखियां, कृष्ण और उनके मित्रों पर डंडे लेकर दौड़ती थी। इससे बचने के लिए कृष्ण और उनके मित्र ढालो का प्रयोग किया करते थे। ये लड़ाई कोई लड़ाई नहीं थी ये उन लोगों का प्रेम व्यक्त करने का तरीका था। इस दिन लोग अपने गिले-सिकवे को दूर कर एक-दूसरे से गले मिलते थे। इसे आज भी लठमार होली के तौर पर याद किया जाता है। आज भी लोग इसे एक परंपरा के तौर पर हर साल मनाते है।
होली का महत्व
होली (Holi) को रंगों का उत्सव कहा जाता है। इसका हर इंसान के जीवन पर काफी गहरा असर पड़ता है। होली के रूप मे हम सभी को यह सीख मिलती है कि हमे भी अपने जीवन को रंगों की तरह रंगीन बनाना चाहिए। जिंदगी के हर पल को आनंद के साथ जीना चाहिए। जैसे रंग एक-दूसरे मे आसानी से घुल जाते है, हमे भी ठीक रंगों की तरह ही हर किसी के साथ घुल-मिलकर प्रेम-भाईचारा से रहना चाहिए। अपनी सारी इर्ष्या, नकारात्मकता तथा क्लेश की भावना को मिटाकर हमेशा नई शुरुआत करनी चाहिए।
होली पर्व का उत्साह
होली हर साल मार्च महीने मे मनाई जाती है। यह मौसम वसंत ऋतु का होता है जिसमे न बहुत जाड़ा होती है और न बहुत गर्मी। बच्चे हो या बड़े सभी होली (Holi) पर्व का खूब आनंद उठाते हैं। सभी वर्ग मे एक-दूसरे को रंग मे रंगने की होड़ लगी रहती है। होली (Holi) के समय मे बाजार में पिचकारी और रंगों से दुकान सज जाती है। बच्चों मे बड़ी पिचकारी और रंग खरीदने का उत्साह रहता है तो वही बड़े लोग अपने लिए अबीर-गुलाल की खरीददारी करते नजर आते है। होली पर्व को लेकर पूरे देश मे उल्लास का माहौल रहता है। हर जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग इस पर्व को बड़ी ही धूम-धाम से मनाते है।
होली के पकवान
होली के दिन हर घर मे एक ही तरह का पारंपरिक पकवान देखने को मिल जाता है। उदाहरण के तौर पर पुआ, खीर, पूरी, दही बड़ा, गुजिया तथा अन्य मिठाईयां। इस दिन हर घर मे स्वादिष्ट पकवान बनते है और दूसरे लोगों को भी खिलाए जाते है।
होली के दिन सफेद कपड़े पहनने का क्या ट्रेंड है?
- सफेद रंग सकरात्मकता का द्योतक है। इस दिन सफेद कपड़े पहनने से जीवन में सकरात्मकता आती है।
- सफेद रंग को शांति, भाईचारे तथा सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- होली का त्योहार आते-आते गर्मी की शुरुआत हो जाती है। इस दिन से सफेद कपड़े पहनने की भी शुरुआत होती है क्योंकि सफेद कपड़े गर्मी के मौसम मे ठंढक पहुंचाते है।
होली के कुछ फेमस गाने
- होली के दिन (Holi Ke Din)
- होली खेले रघुवीरा (Holi Khele Raghuveera)
- लेट्स प्ले होली (Let’s Play Holi)
- बलम पिचकारी (Balam Pichakari)
- रंग बरसे (Rang Barse)
होली से जुड़ी कुछ सावधानियाँ
- होली खेलते वक्त इस बात का ध्यान रखे कि रंग आँखों मे न चला जाए। रंगों मे रसायन मिले होते है जिससे आँखों को बहुत नुकसान हो सकता है।
- आजकल बाजारों मे रासायनिक रंग काफी बिक रहे है। रासायनिक के जगह नेचुरल रंगों के इस्तेमाल पर जोड़ दे। ऑर्गैनिक रंगों का इस्तेमाल करे ताकि स्किन इन्फेक्शन होने का डर न रहे।
- बालों को रंग के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए बालों मे तेल या सीरम लगाए और बालों को बांधकर रखे।
- रंग खेलने से पूर्व स्किन पर ऑइल या मॉइस्चराइजर जरूर लगाए जिससे स्किन पर रंग का प्रभाव कम पड़े।
नोट : होली मे रंग खेलने में ज्यादा पानी बर्बाद न करें तथा इस दिन नशा आदि मादक पदार्थों के सेवन से बचें।
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.