यूपी का करहल विधानसभा सीट अचानक हॉटसीट बन गया है। अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सभी की नजर करहल पर है। सवाल उठने लगा है कि आखिरकार अखिलेश यादव ने करहल को ही क्यों चुना? क्या वहां उनकी जीत तय है? लोगो की नजर करहल की गुणा गणित पर है। यूपी की राजनीति पर इसका क्या असर होगा? बीजेपी के उम्मीदवार एस.पी सिंह बधेल के मैदान में उतरने के मायने क्या है? ऐसे और भी कई सवाल है। इसको समझने के लिए करहल को समझना होगा।
यूपी के करहल को सपा का गढ़ क्यों माना जाता है
KKN न्यूज ब्यूरो। यूपी की राजनीति में करहल विधानसभा का सीट अचानक हॉटसीट बन गया है। सपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ पूरे देश की नजर यूपी के कहरल पर टिक गई है। बीजेपी ने करहल में एस.पी सिंह बधेल को मैदान में उतार कर मुकाबला को दिलचस्प बना दिया है। अब राजनीति की बिसात पर इसके मायने तलाशे जा रहें है। करहल विधानसभा, सैफई के बहुत करीब है। यह मैनपुरी लोकसभा का हिस्सा है और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव वहां के सांसद है। करहल में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का दबदबा माना जाता है। चुनाव परिणाम पर गौर करें तो इसकी बानगी दिख जायेगी। मशलन, करहल विधानसभा की सीट पर वर्ष 2007 के बाद से लगातार समाजवादियों का कब्जा रहा है। वर्ष 2002 को छोड़ दें, तो बीजेपी को करहल कभी रास नहीं आया। यह बात दीगर है वर्ष 2002 में बीजेपी की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जीत गए थे। तब उन्होंने सपा के बाबूराम यादव को हराया था। बाद में सोबरन सिंह यादव ने बीजेपी छोड़ दिया और सपा में शामिल हो गए। इसके बाद वर्ष 2007 में सपा की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जीत गए। इसके बाद सपा की टिकट पर वर्ष 2012 और 2017 में भी सोनबर सिंह यादव ने बाजी मारी। वर्तमान में सोबरन सिंह यादव ही करहल के विधायक है। इसके पहले वर्ष 1993 और 1996 में बाबूराम यादव सपा की टिकट पर करहल के विधायक रह चुकें है। यानी वर्ष 2002 को छोड़ दे तो वर्ष 1993 से लेकर आज तक करहल पर समाजवादियों का कब्जा रहा है।
सपा के लिए करहल मुफीद क्यों है
वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बाद भी करहल में सपा की जबरदस्त जीत हुई थीं। करहल सीट पर समाजवादी पार्टी के सोनबर सिंह यादव को लगभग आधे वोट मिले थे। यानी कुल मतदान का 49.81 फीसदी वोट सपा के सोबरन सिंह यादव को मिला था। जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ 31.45 फीसदी वोट गए थे। बीएसपी को करहल में मात्र 14.18 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2017 में बीजेपी ने करहल से रमा शाक्य को अपना उम्म्मीदवार बनाया था। वे 38 हजार 405 मतो की भारी अंतर से हारे थे। सपा के सोबरन सिंह यादव को 1 लाख 4 हजार 221 वोट मिले थे। जबकि, बीजेपी की रमा शाक्य को 65 हजार 816 वोट मिले। तीसरे नंबर पर बीएसपी के दलवीर रहे। उनको 29 हजार 676 वोट मिले थे। इन्हीं कारणो से अखिलेश यादव ने करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। बीजेपी ने अखिलेश यादव के खिलाफ करहल से एस.पी. सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है। बघेल आगरा से बीजेपी के सांसद है और वर्तमान में मोदी सरकार के मंत्रीमंडल में शामिल है। दिलचस्प बात ये है कि एक समय ऐसा था जब यही बघेल मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा दस्ता का हिस्सा हुआ करते थे। उस वक्त मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री हुआ करते थे। अब वहीं एस.पी. सिंह बघेल अखिलेश यादव को चुनौती दे रहें है।
मैनपुरी को सपा का गढ़ क्यों माना जाता है
मैनपुरी में विधानसभा की कुल चार सीट है। वर्तमान में चार में से तीन सीटों पर सपा का कब्जा है। जबकि एक मात्र भोगांव पर भाजपा का कब्जा हैं। जिले में सपा ने पहला चुनाव 1993 में लड़ा था। उनदिनो मैनपुरी में विधानसभा की पांच सीट हुआ करती थीं और उनमें से चार पर सपा की जीत हुई थीं। हालांकि, वर्ष 1996 में सपा ने सभी पांचों सीट पर जीत का परचम लहराया था। इसके बाद वर्ष 2002 के चुनाव में भोगांव और किशनी सीट पर सपा जीती। वर्ष 2007 में भोगांव और किशनी के साथ करहल सीट भी सपा के कब्जे में आ गई। वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने फिर से सभी चारों सीटों पर कब्जा कर लिया। बीजेपी की बात करें तो वर्ष 2017 के चुनाव में बीजेपी को एक मात्र भोगांव सीट पर मात्र 20 हजार के अंतर से जीत मिली थीं। जबकि करहल, किशनी और मैनपुरी में बीजेपी दूसरे नंबर थी। भाजपा इससे पहले 1991, 1993, 2002 और 2007 में मैनपुरी की सीट जीत चुकी है। करहल से वर्ष 2002 में बीजेपी पहली बार जीती थीं। दूसरी ओर घिरोर सीट पर दो बार बीएसपी के उम्मीदवार चुनाव जीत चुकें है। किंतु, 2012 के परिसीमन के बाद यहां का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरिके से बदल चुका है। गौर करने वाली बात ये है कि वर्ष 1985 के बाद से कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार यहां से चुनाव नहीं जीता है।
कानपुर और आगरा मंडल पर रहेगा करहल का असर
अखिलेश यादव पहली बार करहल से विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे है। उनके करहल से चुनाव लड़ने का मैनपुरी के अतिरिक्त कानपुर और आगरा मंडल की कई सीटों पर इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है। फिरोजाबाद, एटा, औरैया, इटावा और कन्नौज समेत कई सीटों पर सपा को इसका लाभ मिल सकता है। दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव के इस दुर्ग को भेदने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वर्ष 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी की नजर मैनपुरी के इलाके पर रहा है। लिहाजा, जिले के एकमात्र भाजपा विधायक रामनरेश अग्निहोत्री को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना कर बीजेपी के रणनीतिकारो ने पहले से तैयारी कर रखी है। इसके अतिरिक्त भोगांव-शिकोहाबाद सड़क मार्ग को फोरलेन बना कर बीजेपी ने इलाके में अपनी मजबूत पैठ बनाने की कोशिश की है। यहां एक सैनिक स्कूल भी है। हालांकि इस सैनिक स्कूल की स्वीकृति सपा की सरकार में ही मिल गई थी। किंतु, योगी की सरकार ने इस पर तेजी से काम करके लोगो के दिल को जितने की भरपुर कोशिश की है।
करहल में बीजेपी ने झोंकी ताकत
दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हर बूथ तक नहीं पहुंच सकी थी। पर, इस बार प्रत्येक बूथ तक बीजेपी ने पकड़ बना लिया है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव जीतकर बीजेपी ने अपनी तैयारियों का रिहर्सल भी किया है। दिलचस्प बात ये है कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई की बेटी के पति अनुजेश यादव ने वर्ष 2019 में सपा को छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन किया था। इस इलाके में उनकी साफ सुथरा छवि का बीजेपी को लाभ मिल सकता है। यानी बीजेपी ने करहल सीट के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आपको बतादें कि वर्ष 1956 के परिसिमन के बाद पहली बार करहल विधानसभा स्तित्व में आई थीं। वर्ष 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से पहलवान नत्थू सिंह यादव यहां से पहला विधायक निर्वाचित हुए थे। इसके बाद तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते। कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 1980 में पहली बार शिवमंगल सिंह जीते। वर्ष 2002 से सोबरन सिंह यादव भाजपा की टिकट पर करहल से जीते। लेकिन कुछ दिनो के बाद ही सपा में आ गए और उसके बाद हुए तीनों चुनाव में सपा की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जितते रहें हैं।
करहल का सियासी समीकरण देता है संकेत
करहल का सीट समाजवादियों के लिए मुफीद क्यों है? दरअसल, करहल की वजह से ही मैनपुरी को यादव बाहुल्य इलाका माना जाता है। करहल में अकेले यादव जाति के करीब 40 फीसदी मतदाता हैं। जबकि, करीब 6 फीसदी अल्पसंख्यक मतदता है। जो करहल में जीत और हार का फैक्टर बनता रहा है। इसको सपा का कोर वोट माना जाता है और इसी के दम पर अखिलेश यादव को करहल से चुनाव जीतने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त् करहल में अनुसूचित जाति के करीब 17 फीसदी मतदता है। जबकि, 13 फीसदी शाक्य, 9 फीसदी ठाकुर और 7 फीसदी ब्राह्मण मतदाता है। करहल में अन्य कई छोटी जातियों की संख्या करीब 8 फीसदी हैं। और इन्हीं छोटी-छोटी जातियों के दम पर बीजेपी ने करहल से एस.पी सिंह बधेल को मैदान में उतारा है। करहल सीट पर तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होना है। अब देखना है कि उंट किस करबट बैठता है।