क्या भारत के सियासी आग को फिर भड़कायेगी पेट्रोल?

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भारत। पेट्रोल की बढ़ती कीमत भारत के सियासी को आग को एक बार फिर से भड़का दे, तो किसी को आश्चर्य नही होगा। बतातें चलें कि देश में इस वक्त पेट्रोल और डीजल की कीमतें सातवें आसामान पर पहुंच गई हैं।

मशलन, दिल्ली में बुधवार को पेट्रोल की कीमत 77.17 रुपये प्रति लीटर हो गई, वहीं देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पेट्रोल की कीमत 84.99 रुपये के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। बताया जा रहा है कि इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी से पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
पड़ोसी देशो में सस्ता है पेट्रोल
भारत में लगातार बढ़ रही पेट्रोल की कीमतों के बीच अब पड़ोसी देशो में इसके कम कीमत को लेकर भी इन दिनो सोशल मीडिया में चर्चा जोरो पर है। कहा ये जा रहा है कि भारत से गरीब देश जब सस्ती कीमत पर पेट्रोल बेच सकते हैं तो भारत में ऐसा संभव क्यों नहीं है? सवाल में दम है। बतातें चलें कि 21 मई के एक आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत 51.70 रुपये, नेपाल में 69 रुपये, श्रीलंका में 64 रुपये, भूटान में 57 रुपये और बांग्लादेश में 71 रुपये प्रति लीटर बताया जा रहा हैं।
ऐसे भी देश है, जाहां महंगा है पेट्रोल
ऐसा नही है कि दुनिया का सबसे महंगा पेट्रोल भारत में ही बिकता है। बल्कि, दुनिया का सबसे महंगा पेट्रोल आइसलैंड और हांगकांग में है। यहां पर एक लीटर पेट्रोल के लिए 144 रुपये खर्च करने होते हैं। दूसरे नंबंर पर नार्वे का नाम है। यहां एक लीटर पेट्रोल के लिए 140 रुपये देने होते हैं।
पेट्रोल में टैक्स का खेल
पेट्रोल और डीजल की कीमतों के निर्धारण में केन्द्र और राज्य सरकार की तरफ से लगाए जाने वाले टैक्स की अहम भूमिका को समझना होगा। दरअसल, पेट्रोल को अभी तक जीएसटी में शामिल नही किया गया है। लिहाजा, इस पर केन्द्र और राज्य की सरकारें अलग अलग टैक्स लगाती है और इसके अतिरिक्त उपभोक्ता को उत्पाद कर, वैट, चुंगी और सेस भी देना पड़ता है। यदि इसको जीएसटी में शामिल कर दिया जाए तो आज की तारीख में पेट्रोल की कीमत घट कर 41 रुपये हो जायेगी।
पेट्रोल के जीएसटी में शामिल होने के नही है आसार
जानकारों का मानना है कि किसी भी राज्य की सरकार पेट्रोल और डीजल से मिलने वाले राजस्व में कटौती नहीं करना चाहती। आपको बतादें कि पेट्रोल और डीजल से राज्य सरकारों को राजस्व का अच्छा खासा हिस्सा मिलता है। इसके कम होने का सीधा असर उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। यहां आपको बताना जरुरी है कि जीएसटी कॉउंसिल में राज्य की सर्वाधिक प्रतिनिधि होता है। लिहाजा, निकट भविष्य में पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाना लगभग मुश्किल है।
थोथी दलीलो के बीच महंगे पेट्रोल खरीदने की मजबूरी
पेट्रोल की बढ़ती कीमतो के बीच भाजपा और कॉग्रेस के समर्थको में ठन गई है। कॉग्रेस के समर्थक जहां पेट्रोल की आग में मोदी सरकार की विदाई तय मान कर चल रहें हैं। वही, भाजपा समर्थको ने इसका भी काट खोज निकाला है। भाजपा समर्थको का कहना है कि वर्ष 2004 के मई में पेट्रोल की कीमत 38.69 रुपये थी, जो वर्ष 2014 के मई में बढ़ कर 79.26 रुपये हो गई। यानी की दस वर्षो में 40.57 रुपये की बढ़ोतरी हुई। जबकि, भाजपा के शासनकाल में इस हिसाब से देखें तो पेट्रोल की कीमत अभी बढ़ी नही है। रिपोर्ट का लब्बोलुआब ये कि आपको पेट्रोल की मौजूदा कीमत को अंगीकार करने की आदत डाल लेनी चाहिए।

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