बिहार में क्यों नही थम नही रहा एके 47 व 56 की गर्जना, कठघरे में शासन
मुजफ्फपुर। बिहार में बार बार एके 47 व 56 की गर्जन से आम लोग दहशत में है। वही, यहां की पुलिस पर भी सवाल उठने लगे हैं। इस तरह की प्रतिबंधित हथियार आखिरकार गिरोह तक कैसे पहुंच जाती है। कैसे भीड़ भाड़ वाले जगह पर अपराधी एके 47 व 56 का खुलेआम इस्तेमाल करके, पुलिस की नजरो से बच निकलता है?
मुजफ्फरपुर में ठेकेदार अतुल शाही की हत्या में एके 47 के इस्तेमाल के बाद एक बार फिर से यह हथियार सुर्खियों में है। दो दशक पहले तक इस हथियार के किस्से सुने जाते थे। किंतु, अब यही हथियार साधारण आपराधिक गिरोहों तक पहुंच जाना, चिंता का कारण बनता जा रहा है। पुलिस सूत्रो की माने तो एके 47 और 56 राइफल की सप्लाई का बड़ा जरिया उत्तर पूर्व के राज्य नागालैंड से होता है। नागालैंड में वर्मा और बाग्लादेश के रास्ते विदेशी हथियार पहुंचते रहें हैं। यही से खतनराक हथियार बिहार में सक्रिय अपराधी व नक्सलियों तक पहुंच रहे हैं।
संतोष झा गैंग के मुकेश पाठक की गिरफ्तारी के बाद जो एके 56 शिवहर से बरामद हुआ वह नेपाल से लाया गया था। इसी हथियार का इस्तेमाल दरभंगा के बहेड़ी में दो इंजीनियरों की हत्या में किया गया था। सीवान में गिरफ्तार त्रिभुवन तिवारी के पास से भी एके 47 बरामद किया था। 2016 में ही मोतिहारी के पकड़ीदयाल में एके 47 से चार लोगों को गोली मारी गई थी। कई वर्ष पहले मीनापुर पुलिस ने नक्सलियों से एक एके 47 बरामद किया था।
बतातें हैं कि एके 47 राइफल की कीमत 6 से 8 लाख के बीच है। हालांकि इसकी कोई तय कीमत नहीं होती है। कहा जाता है कि बिहार में सबसे पहले एके 47 राइफल खरीदने वाला डॉन अशोक सम्राट था। सूत्रो की माने तो बिहार के चुनिंदा अपराधियों के पास शुरू में जो एके 47 थे वे पुरूलिया में गिराए गए हथियारों की खेप से उनतक पहुंचे थे। बाद में एक माफिया तक यह जम्मू-कश्मीर के आतंवादी गिरोह के जरिए पहुंचने लगी।