इसे बिडंबना कह लें या विवशता कह लें। पर, इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय रेलवे के टिकट चेकिंग स्टाफ आज भी अंग्रेजो की दी सजा भुगत रहें हैं। हुआ ये कि आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को ट्रेन में बर्थ देने और सहयोग करने के कारण अंग्रेज अधिकारी ने रेलवे के टिकट चेकिंग कर्मचारियों को रनिंग स्टाफ श्रेणी से उन्हें बाहर कर दिया था। इससे उनके भत्ते व अन्य कई सुविधाएं छिन गईं। जो, आज तक टिकट जांच करने वालों को मुहै़य्या नहीं हो सका। ताज्जुब की बात ये है कि भारत से ही अलग होकर गठित पाकिस्तान और बंग्लादेश ने अपने कर्मियों को रनिंग स्टाफ का दर्जा दे दिया है।
ब्रिटिशकालीन सजा को माफ करने की मांग
यहां आपको बताना जरुरी है कि भारतीय रेल के टिकट चेकिंग स्टाफ वर्ष 1968 से ही निरंतर इस सजा को माफ करने की मांग करते रहें हैं। टकिट जांच करने वाले कर्मचारियों ने रेल मंत्री को पत्र लिख कर ब्रिटिशकालीन सजा को माफ करने और उन्हें रनिंग स्टाफ का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। पर, आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है।
मिलते रहे कोरे आश्वासन
स्मरण रहें कि इस वक्त भारतीय रेल में करीब 36,700 से अधिक टिकट चेकिंग स्टाफ है। इनके एसोसिएशन ने पिछले पांच दशकों से टिकट चेकिंग कर्मियों को रनिंग स्टाफ में शामिल करने के लिए रेल मंत्री से लिखित मांग कर रही है। पर, आश्वासन के सिवाय इन्हें आज तक कुछ नहीं मिला। दूसरी ओर रेल मंत्रालय का अपना अलग ही तर्क है। उनका मानना है कि ट्रेन परिचालन में टिकट चेकिंग कर्मियों की कोई भूमिका नहीं होती है। लिहाजा, इन्हें रनिंग स्टाफ में शामिल करना मुश्किल है।
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