कमजोर विपक्ष और हताश मानसिकता
KKN न्यूज ब्यूरो। भारत में पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में लगातार बढ़त जारी है। इसका सीधा असर आम लोगो पर पड़ा और महंगाई बढ़ने लगा। बावजूद इसके आम लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश नहीं होना चौका देता है। चौक-चौराहे पर इसको लेकर पहले की तरह कोई चर्चा या बहस नहीं हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई में लोग सरकार से इतने संतुष्ट हैं कि तेल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी से वे जरा भी चिंतित नहीं हैं? इसका दुसरा पहलू- कमजोर विपक्ष भी हो सकता है। लोगो को लगता होगा कि कमजोर विपक्ष की वजह से उनकी आवाज कोई नहीं सुनेगा। लिहाजा, चुप्पी साध लेना ही मुनासिब है। कारण, और क्या हो सकता है? इससे पहले विपक्ष भूमिका पर गौर कर लेतें है।
विपक्ष की भूमिका
देश की प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मसले में केंद्र की सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की है। कॉग्रेस ने बीजेपी के सरकार पर आम लोगों की दिक्कतों से सरोकार नहीं रखने का आरोप लगाया है। कहा कि पेट्रोल, डीजल और एलपीजी गैस की कीमतो में लगातार उछाल से लोगो को आर्थिक सुस्ती की मार झेलनी पड़ रही है। कोविड-19 से परेसान लोगों को और ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर सब्सिडी को खत्म करके इसका बोझ आम जनता पर डालने का आरोप लगाया है। देश के अन्य कई विपक्षी दल भी सरकार पर इसी तरह का आरोप लगा रहें है। दूसरी ओर ऐसा दिखाई दे रहा है कि आम लोगों ने विपक्ष के आरोपो को गंभीरता से नहीं लिया है। चौक-चौराहा हो या गांव की चौपाल। इस महंगाई पर कोई चर्चा या बहस नहीं हो रही है। ऐसे में महंगाई को लेकर लोगो के उदासिनता पर सवाल उठना लाजमी हो जाता है।
सरकारी टैक्स का खेल
आपने कभी सोचा है कि देश के अलग-अलग राज्यों में ईंधन की कीमतें अलग-अलग क्यों है? इसका सबसे बड़ा कारण है राज्य में लगने वाला वैट, जिसको राज्य की सरकारे निर्धारित करती है। इसके अलावा इसमें केंद्र सरकार का टैक्स भी शामिल होता हैं। दूसरी ओर क्रूड ऑयल की कीमत और फॉरेक्स रेट का भी इस पर असर होता है। इसको ठीक से समझने के लिए इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड के 16 फरवरी 2021 को दिल्ली के लिए जारी किए गए ब्रेकअप को समझना होगा। पेट्रोल की कीमतों के ब्रेकअप से पता चलता है कि पेट्रोल की बेस कीमत 32.10 रुपये प्रति लीटर है। इसमें पेट्रोल की बेस कीमत पर लगने वाला 0.28 रुपये प्रति लीटर का ढुलाई भाड़ा शामिल है। इसके बाद इस पर 32.90 रुपये का एक्साइज़ ड्यूटी लगती है। इसके बाद 3.68 रुपये डीलर कमीशन देना होता है। अब इस पर वैट लगता है, जो कि 20.61 रुपये प्रति लीटर के करीब होता है। इन सब को जोड़कर दिल्ली में पेट्रोल की रिटेल कीमत 89.29 रुपये प्रति लीटर हो जाती है। यानी, ग्राहकों को 53.51 रुपये टैक्स के तौर पर देने पड़ते हैं।
महंगाई बढ़ना तय
भारत के कई पड़ोसी देशों समेत दुनिया के कई देशों में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम हैं। श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान में कीमते भारत से कम है। कहतें है कि पेट्रोलियम पदार्थों और खासतौर पर डीज़ल की कीमतें बढ़ने से आम लोगों के लिए ज़रूरत की चीजों के दाम महंगी होना लाजमी हैं। भारत के जीडीपी में लॉजिस्टिक्स की लागत करीब 13-14 फीसदी है। ऐसे में अगर डीज़ल के दाम बढ़ते हैं तो इसका सीधा असर बाकी वस्तुओं पर पड़ेगा। सब्जी और दाल जैसी आम लोगों के इस्तेमाल की चीजें महंगी हो जायेगी। ट्रांसपोटेशन कॉस्ट भी बढ़ेगा। जानकार बतातें है कि ट्रांसपोर्ट बिजनेस में डीजल की हिस्सेदारी 65-70 फीसदी की होती है। पिछला पूरा साल महामारी की वजह से खराब रहा है। इसके चलते छोटे ट्रांसपोर्टरों के लिए अपनी गाड़ियों के लोन की किस्त भरना भी अब मुश्किल हो रहा है। सरकार पर डीज़ल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए कोई मैकेनिज्म तैयार करने का दबाव नहीं डाला गया तो हालात बेकाबू हो सकता है।
ये है महंगाई की असली वजह
पिछले साल कोविड-19 महामारी की वजह से सरकार को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। सरकार का रेवेन्यू घट गया। जीएसटी, कॉरपोरेट टैक्स और इनकम टैक्स जैसे रेवेन्यू के जरिए होने वाली कमाई आशातीत नहीं हुई। दूसरी ओर सरकार का खर्च इस दौरान काफी बढ़ गया। ऐसे में सरकार अपने रेवेन्यू बढ़ाने और फिस्कल डेफिसिट को बढ़ने से रोकने के लिए ईंधन पर टैक्स कम नहीं कर रही है। सरकार के लिए शराब के बाद पेट्रोल और डीजल से होने वाला कमाई, एक बढ़िया जरिया होता हैं। गौरकरने वाली बात ये है कि यह जीएसटी के दायरे में नहीं आता हैं। ऐसे में इन पर टैक्स बढ़ाने के लिए सरकार को जीएसटी काउंसिल में नहीं जाना पड़ता है। यही वो बड़ी कारण है, जिसके वजह से क्रूड के दाम नीचे गिरने के बाद भी सरकार ने पेट्रोल के दाम कम नहीं किये। दरअसल, सरकार ईकोनॉमी को ग्रोथ के रास्ते पर लाने की कोशिशें कर रही है। दूसरी ओर पेट्रोलियम उत्पादों की ऊंची कीमतों से गरीब के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र के मजदूर और किसानों की कमाई पर इसका प्रतिकूल असर पड़ना तय है। महंगाई की वजह से बाजार में मांग निचले स्तर पर चली जाएंगी और इसका खामियाजा देर सवेरे उत्पाद सेक्टर को भी भुगतना पड़ेगा। लब्बोलुआब ये कि पेट्रोलियम पदार्थो की कीमते इसी तरह बढ़ती रही तो इसका सर्वाधिक खामियाजा मध्यम वर्ग को भुगतना तय माना जा रहा है।