गुजरात। गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सत्ता के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस की तरफ से पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद मोर्चा संभाले हुए हैं। वही, बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के संयुक्त नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रियों की फौज डेरा जमाए हुए हैं।
दोनों दल जातीय समीकरण साधने के साथ लुभावने वादों और धर्म के आधार पर वोटरों को अपने पाले में करने की जुगत में हैं। दिलचस्प बात यह है कि लंबे समय बाद गुजरात के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आक्रामक रुख अपनाए हुए है। सोशल मीडिया पर कैंपेन से लेकर रैलियों और जातीय समीकरण बिठाने में कोई कसर बाकी नही छोड़ा जा रहा है। बीजेपी अपने काम के दम पर वोटरों का विश्वास हासिल करने की कोशिश में है। वही, कॉग्रेस ने बीजेपी पर विकास से मुकर जाने का आरोप लगाते हुए हमले तेज कर दिए हैं। ऐसे में हम आपका ध्यान उन पांच मुद्दों पर ले जाना चाहते हैं, जिसके इर्द-गिर्द गुजरात में चुनाव प्रचार चल रहे हैं।
पाटीदार आरक्षण
पहली बार गुजरात चुनाव में पाटीदार समाज सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। हार्दिक पटेल समेत पाटीदार समाज के कई नेता बीजेपी को लेकर गुस्सा जाहिर कर चुके हैं। यहां बताना जरूरी है कि गुजरात में विधानसभा की 182 सीटों में से 60 पर पाटीदार वोटरो का अहम रोल हैं। पाटीदार समाज के लोगे ओबीसी कैटेगरी के तहत आरक्षण मांग रहे हैं। जबकि, अन्य दूसरी ओबीसी जातियां इसके विरोध में हैं। कांग्रेस ने पाटीदारों को आरक्षण देने की बात तो कही है, लेकिन हार्दिक के अल्टीमेटम के बाद भी स्पष्ट तौर पर कोई रोडमैप नहीं बताया है। कांग्रेस ने ये जाहिर नहीं किया है कि आखिर वे किस कानूनी तरीके से पाटीदारों को आरक्षण देंगे? इस बीच सत्ताधारी बीजेपी ने पाटीदार समाज के वरुण और रेशमा को पार्टी में शामिल कराकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है।
जीएसटी
कारोबारियों का राज्य कहे जाने वाले गुजरात में जीएसटी यानी वस्तु एंव सेवाकर, चुनाव में बड़ा मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी लगातार अपनी रैलियां में जीएसटी के मुद्दे को उठा रहे हैं। सूत्र बतातें हैं कि गुजरात के कपड़ा व्यापारी सरकार से टेक्सटाइल उद्योग पर 5 फीसदी के जीएसटी लगाने के फैसले से खुश नही है। इस फैसले के विरोध में यहां के लाखों कारोबारी प्रदर्शन भी कर चुके हैं। कॉग्रेस ने भाजपा के इसी दुखती नस पर हाथ डाल दिया है। इस बीच केंद्र सरकार ने आभूषणों की 2 लाख रुपए तक की खरीद पर PAN कार्ड की अनिवार्यता खत्म करके कारोबारियो का भरोसा फिर से हासिल करने की कोशिश की है। इसके अलावा ज्वेलरी कारोबार को मनी लांड्रिंग केस से बाहर करके केन्द्र बड़ा दाव खेल दिया है। इन दोनों फैसलों से गुजरात के सर्राफा कारोबारियों को राहत देने की कोशिश की गई है। हालांकि, जानकार मानतें हैं कि गुजरात का टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े कारोबारी अब भी भाजपा से नाराज हैं।
बेरोजगारी
गुजरात की गिनती विकसित राज्यों की जाती है। लेकिन, हाल के वर्षो में यहां के ओबीसी युवाओं के बीच बेरोजगारी बड़े पैमाने पर बढ़ी है। रोजगार के लिए आंदोलन कर रहे ओबीसी समाज के करीब 700 युवाओं को रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सख्त निर्णय लेने पड़े थे। नतीजा, बेरोजगारी के चलते ही ओबीसी समाज ने आंदोलन की राह पकड़ रखी है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को भांपते हुए ही बेरोजगारी भत्ता के अलावा युवाओं को स्मार्टफोन देने का भी प्रलोभन देकर बड़ा दाव खेल दिया है। अब देखना है कि इसका चुनाव पर क्या असर क्या पड़ता है?
संविदा कर्मचारी
गुजरात सहित पूरे देश में आज भी युवा वर्ग सरकारी नौकरी को प्राथमिकता देते है। लिहाजा, लोग संविदा पर भी सरकारी नौकरी करने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे सोच रखने वाले लोगों में ज्यादातर ग्रामीण और मध्यम आय वाले परिवार से जुड़े युवा शामिल होते हैं। गुजरात में मौजूदा और पिछली सरकारों ने कम खर्च में काम चलाने के लिए बड़े पैमाने पर शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और कर्मचारियों की संविदा पर भर्ती की हुई है। इन्हें निश्चित मानदेय का भुगतान होता है। अब यही लोग मौजूदा सरकार के गले की फांस बन गए हैं। वे समान काम के लिए समान वेतन की डिमांड कर रहे हैं। पिछले तीन साल में ये छिटपुट तरीक से आंदोलन भी करते रहे हैं और इस चुनाव में इस असर से भी इनकार नही किया जा सकता है।
दलितों पर हमले
गुजरात चुनाव में इस बार पाटीदारों के अलावा दलित बड़ा मुद्दा बन गया है। आनंद जिले में एक अक्टूबर को गरबा आयोजन में शामिल होने पर एक समूह ने कथित तौर पर दलित युवक प्रकाश सोलंकी की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। गांधीनगर के कलोल के लिंबोदरा गांव में कथित तौर पर मूंछ रखने पर 17 और 24 साल के दो युवकों के साथ मारपीट हुई थी। लिहाजा, दशहरा पर अहमदाबाद में 300 दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म कबूल करके अपने आक्रोश का इजहार किया था। दरअसल, गुजरात में दलितों की जनसंख्या 7.1 फीसदी है। यही कारण है कि कांग्रेस गुजरात चुनाव में दलित के मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है। दूसरी ओर भाजपा ने कट्टर राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार और विकासवाद को मुद्दा बना कर कॉग्रेस को हासिए पर धकेलने की पुरजोर कोशिश शुरू कर दी है। बहरहाल, गुजरात के मतदाताओं के फैसले पर पूरे राष्ट्र की नजर है। अब देखना है कि गुजरात के मतदाता को पीएम मोदी की बातो पर अधिक भरोसा है या कॉग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर…?
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