खतरे का संकेत तो नही?
भारत की मौजूदा राजनीति दलित ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है। भाजपा के विजयीरथ को रोकने की काट के तौर पर गैर भाजपाई दलो के लिए दलितकार्ड एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आया है। कॉग्रेस की अगुवाई में तमाम विपक्षी दलितकार्ड को राजनीति का हथकंडा बनाने लगे हैं, इससे भाजपा के रणनीतिकार भी सकते में है। हालिया दिनो में भारत की राजनीति में दलित-मुस्लिम समीकरण के भी संकेत मिलें है। इस बीच भाजपा ने भी दलित को अपने खेमे में बनाए रखने की मुहिम को तेज कर दिया है। लिहाजा, आनेवाले दिनो में भारत की राजनीति पर दलित फैक्टर का हावी होना लगभग तय माना जा रहा है।
कोरेगांव भीमा बना टर्निंग प्वाइंट
वैसे से रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही गैर भाजपाई दल दलितकार्ड को अपना हथकंडा बनाने लगे थे। किंतु, भारत की राजनीति में दलितो के बढ़ते प्रभाव का स्पष्ट संकेत कोरेगांव भीमा से शुरू हुआ माना जाता है। इसी वर्ष 1 जनवरी को कोरेगांव भीमा में दलितो के विजय उत्सव के दौरान भड़की हिंसा के बाद दलितकार्ड राजनीति का बड़ा मुद्दा बन गया है। कहतें हैं कि साढ़े 9 हजार साल पहले समाप्त हो चुकी मनुवाद को दलितो के मन में दुबारा से जिन्दा करने की कोशिश कामयाब होती दिख रही है। आप इसे, भले ही राजनीतिक लाभ कह लें। पर, सच तो ये है कि इस आर में देश को खंडित करने की एक गहरी साजिश रची जा रही है।
पेशवा पर दलितो की फतह
कोरेगांव भीमा में 100 साल पहले एक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजो की ओर से दलित और भारत की ओर से पेशवा सेना आमने-सामने लड़ी थी। किंतु, अंग्रेजो की तोफखाना के सामने पेशवा की विशाल सेना टीक नही सकी और इस युद्ध में अंग्रेजो की जीत हो गई। इस युद्ध के बाद अंग्रेजो ने महाराष्ट पर अपना अधिकार जमा लिया। दरअसल, इसी जीत को दलित अपना जीत मानतें हैं और पिछले 100 वर्षो से कोरेगांव भीमा में इखट्ठा होकर जीत का जश्न भी मनाते आए हैं।
सुप्रीमकोर्ट के निर्णय से भड़का हिंसा
इसी कड़ी में भारत के सुप्रीमकोर्ट का एक बड़ा निर्णय आया, जिससे दलितो का आक्रोश भड़क गया। दरअसल, सुप्रीमकोर्ट ने एससी,एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रेाकने के लिए इस धारा के तहत तहरीर देने पर शुरूआत सात दिनो में जांच पूरा करने के बाद एफआईआर दर्ज करने का निर्णय दिया था। भारत बिरोधी गैंग ने सुप्रीमकोर्ट के इस निर्णय को मनुवाद से जोड़ कर दलितो के आक्रोश को भड़का दिया। नतीजा, इसको लेकर दलित संगठनो ने इसी वर्ष 2 अप्रैल को भारतबंद बुलाया और इस दौरान जम कर हिंसा हुई। गैर भाजपाई दल भी दलितो के साथ खड़े हो गए और दलितो को भाजपा से अलग करने की कवायत शुरू हो गई।
सक्रिय हुआ इशाई मशीनरी
इशाई मशीनरी ने भी दलितो के इस दुखते नब्ज पर हाथ डाल दिया है। दलितो को बताया जा रहा है कि हिन्दू धर्म ही उनके पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारक है। लिहाजा, दलितो की बड़ी आबादी अब इसाई धर्म को कबूल करने लगा है। यानी दलित समुदाय के लोग 100 साल पहले की अपनी गलती को फिर से दुहराने लगे है। इससे भारत बिरोधी ताकतो को देश के अंदर ही एक और ताकत मिल गया है। लिहाजा, अब सवाल उठने लगा है कि पिछले सात दशक से आरक्षण के नाम पर विशेषाधिकार होने के बावजूद भी दलितो की मानसिकता से कुंठा समाप्त क्यों नहीं हुई?
भारत बिरोधी गैंग के निशाने पर दलित
बामपंथ की आर लेकर भारत बिरोधी गैंग इस वक्त काफी सक्रिय हो गया है। पाकिस्तान में बैठे आतंकी आकाओं ने दलितो पर डोरे डालने शुरू कर दिए है। कोरेगांव भीमा हिंसा की जांच कर रही टीम को इसके पुख्ता सबूत मिलें हैं। इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या तक की साजिश रचने की बात सामने आ रही है। हालांकि, जांच पूरा होना अभी बाकी है। ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि दलित समुदाय के लोग कोरेगांव भीमा की तरह फिर से राष्ट्रविरोधी ताकतो के साथ खड़ा होंगे या समय रहते अपनी ऐतिहासिक गलती से सीख लेंगे?
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