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बाढ़ की समस्या का क्यों नहीं हो रहा है स्थायी समाधान

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खैरात की आर में मरहम लगाने की कोशिश

न्यूज ब्यूरो। मानसून की पहली बारिश हुई और पूर्वी भारत का बड़ा इलाका बाढ़ की चपेट में आ गया। खबर नई नहीं है। बल्कि, साल दर साल की एक कड़बी हकीकत बन चुकी है। दरअसल, बिहार सहित भारत के कई अन्य राज्यों में प्रत्येक साल आने वाली बाढ़ की समस्या, जीवन का हिस्सा बन चुकी है। गुलामी के दिनो में लोगो को उम्मीद थीं, कि आजादी मिलते ही इस समस्या से छुटकारा मिल जायेगा। किंतु, आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद, आज भी हम बाढ़ की विभिषिका को झेल रहे है। आखिर क्यों…? आज यह बड़ा सवाल बन चुका है। सवाल यह भी कि हमारी सरकारें कब तक खैरात की आर में जख्म पर मरहम लगाती रहेगी? प्रत्येक साल तबाही मचाने वाली इस बाढ़ का कोई स्थायी समाधान क्यों नहीं होता? एसे और भी कई सवाल है। .

खैरात

सालो भर रहता है तबाही के निशान

बिहार की कोसी, गंगा और बागमती नदी के बेसिन में बसे गांवों में तबाही के निशान सालो भर देखा जा सकता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी गंगा किनारे वाले इलाके में तबाही के निशान सालो भर देखा जा सकता है। कमोवेश यही हाल ब्रह्मपुत्र बेसिन का है। जो, असाम के बड़े इलाके में तबाही का कारण बन चुकी है। दक्षिण भारत में कावेरी और कृष्णा नदी के इलाके भी बाढ़ की चपेट में है। मध्य प्रदेश में नर्मदा और छत्तीसगढ़ की कुछ नदियां भी प्रत्येक साल भारी तबाही मचाती हैं। इसके अतिरिक्त और भी कई छोटी छोटी नदियां देश के अन्य इलाको में तबाही का कारण बन चुकी है। सवाल उठता है कि बाढ़ की रोकथाम के लिए सरकार क्या कर रही है? ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सरकार ने बाढ़ की समस्या की रोकथाम के लिए कुछ नहीं किया हो। इस रिपोर्ट में हम सरकारी प्रयासो को आंकड़ो की मदद से समझने की कोशिश करेंगे।

केन्द्रीय बाढ़ नियंत्रण आयोग के कार्य

भारत सरकार ने 1978 में ही केन्द्रीय बाढ़ नियंत्रण आयोग का गठन करके बाढ़ की रोकथाम के दिशा में पहल शुरू कर दी है। इस आयोग ने अपने एक रिपोर्ट में सरकार को बताया है कि देश में प्रत्येक साल औसत 4 हजार बिलियन घनमीटर बारिश होती है। इसमें मानसून के दौरान होने वाली बारिश के साथ बर्फबारी के बाद बनने वाला पानी को भी शामिल किया गया है। केन्द्रीय बाढ़ नियंत्रण आयोग ने सरकार को जो जानकारी दी है। इसके मुताबिक भारत का करीब 40 मिलियन हेक्टेयर भूभाग पर प्रत्येक साल बाढ़ के पानी फैलने का खतरा बना रहता है। इस सब के बीच आंकड़े खुद गवाही दे रहें कि भारत में बाढ़ पर काबू पाने में सरकारें कितनी कारगर साबित हुई हैं। दरअसल, आयोग के ही एक रिपोर्ट पर गौर करें तो इसमें बताया गया है कि बाढ़ के खतरे वाले 40 मिलियन हेक्टेयर इलाके में से अभी तक मात्र 16.45 हेक्टेयर को ही बाढ़ से संरक्षित किया जा सका है। अब इस आंकड़ा को आप क्या कहेंगे?

बाढ़ की बड़ी वजह

भारत में बाढ़ आने की कोई एक वजह नहीं है। असम समेत पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ की बड़ी वजह चीन है। चीन के उपरी इलाकों में भारी बारिश होने से वह पानी निचले इलाका में प्रवेस करके प्रत्येक साल तबाही मचा देता है। इसी प्रकार नेपाल के तराई में भारी बारिश होने की वजह से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रत्येक साल बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो जाता है। बिहार के सीमांचल को सर्वाधिक नुकसान भुगतना पड़ रहा है। हालांकि, तिरहुत, सारण और मिथिलांचल इससे अछूता नहीं है। कोसी नदी का उदगत स्थल तिब्बत और नेपाल से होकर आता है। कहतें हैं कि चीन इन दिनों तिब्बत में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करा रहा है। इसलिए वहां की नदियों के जरिए भूमि क्षरण की मिट्टी बहती हुई सीमांचल के इलाके में गाद बन कर उपजाउ मिट्टी को बर्बाद कर रही है। इसके अतिरिक्त नदी के मैदानी इलाको में प्रवेस करतें ही वहीं गाद नदियों के पेटी में सिल्ट बन कर जमा हो जाती है। इससे नदी की गहराई प्रत्येक साल कम होती जा रही है। यह बाढ़ का एक बड़ा कारण बनने लगा है।

 

क्लाइमेट चेंज का असर

क्लाइमेंट चेंज को भी बाढ़ से जोड़ कर देखा रहा है। इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज के एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के तापमान में करीब 0.78 डिग्री की वृद्धि हो गई है। इसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगा है। इन ग्लेशियरों के पिघलने से कई बार प्रलयंकारी बाढ़ आ जाता है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेयर रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने नदी के धारा की बनाबट में आ रही बदलाव को बाढ़ के लिए बड़ा कारण बताया है। वैज्ञानिको ने अपने अध्ययन में पाया है भारत में गंगा नदी और ब्रह्मपुत्र नदी की धारा में कई बदलाव आया है। वैज्ञानिकों ने 1948 से 2004 के बीच धाराओं के प्रवाह पर विस्तार से अध्ययन किया है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि दुनिया की करीब एक तिहाई बड़ी नदियों के जल प्रवाह में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। इस दौरान कुछ नदियों की प्रवाह में बढ़ोतरी हुई है। वहीं, अधिकांश नदियों की प्रवाह सिकुड़ गई है। वैज्ञानिको ने पाया है कि उत्तर चीन की पीली नदी और भारत की गंगा नदी सहित पश्चिम अफ्रीका की नाइजर और अमेरिका की कोलोराडो में बहने वाली कई प्रमुख नदियो की प्रवाह में अश्चर्यजनक कमी आ गई है।

करोड़ो रुपये का होता है नुकसान

भारत में बाढ़ की समस्या कितना विकराल है। इसका अन्दाजा वर्ष 2008 में आई कोसी की बाढ़ से कर सकतें है। कोसी की इस बाढ़ में करीब एक हजार 500 करोड़ के नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था। बाढ़ नियंत्रण आयोग के अनुमान के मुताबिक 1951 से 2004 तक देश में आई बाढ़ से करीब साढ़े 800 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।

चार स्तर पर जारी है प्रयास

बाढ़ रोकने के लिये सरकारी स्तर पर चार तरह से काम किये जा रहें हैं। इसमें बाढ़ प्रभावित इलाकों में बांध का निर्माण करना और कटाव की रोकथाम करना शामिल है। इसके अतिरिक्त पानी की तेजी से निकासी हेतु नदियों की सफाई करके सिल्ट को बाहर निकालने की योजना है। सरकार नदी के तलहटी में बसे गांवों को उचाई पर बसाने का भी काम कर रही है। यहां आपको बताना जरुरी है कि भारत के अधिकांश शहर नदियों के किनारे बसे हैं और उनका सीवर ज्यादातर नदियों में गिरता है। लेकिन बारिश और बाढ़ के दिनों में उनकी राह बदल जाती है और ये सीवर ही शहर में जल भराव की वजह बन जाता हैं। पटना, वाराणसी, भागलपुर, गोरखपुर और विशाखापत्तनम में इन्हीं सीवर के सहारे अक्सर पानी का भराव होता है। कोलकाता शहर भी इससे अछूता नहीं है। लिहाजा, सरकार अब इन सीवरों की सफाई पर विशेष ध्यान दे रही है और इसको वनवे बनाने का काम किया जा रहा है।

जल का संवैधानिक अधिकार

आपको जान कर हैरानी होगी कि भारत एक ऐसा देश है, जहां जल को भी संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। आज की दौर में जल की यही हैसियत बाढ़ की वजह बन गई है। दरअसल, संविधान में पानी की समस्या को राज्य सूची में रखा हुआ है। यानी इस पर केन्द्र की सरकार चाहे जितनी भी योजना बना लें। किंतु, उस पर अमल करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। लिहाजा, कई बार बाढ़ नियंत्रण के लिए बनी योजनाएं, राजनीतिक कारणो से धरातल पर उतरने से पहले ही दम तोड़ देती है।

पेंड़ो की कटाई

भारत सहित पूरी दुनिया में जिस तरह से पेड़ो की अंधाधूंध कटाई हो रही है। वह भी बाढ़ की बड़ी वजह बन गई है। दरअसल, जंगलो को काटकर मैदान बनाए जा रहे हैं। कंकरीट की कॉलोनियां खड़ी हो रही हैं। इससे प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। इसका खतरनाक पहलू ये कि इससे जल प्रबन्धन का संतुलन भी तेजी से बिगड़ने लगा है। इससे भारत सहित पूरी दुनिया में बाढ़ का खतरा बढ़ने लगा है। इस सब के बीच एक सच यह भी है कि बाढ़ को स्थायी तौर पर रोका नहीं जा सकता है। क्योंकि बारिश और सूखा इंसान के हाथों में नहीं होता है। वर्ष 2005 की जुलाई में मुम्बई में और 2006 में सूरत में हुई बारिश की घटना इसके सबसे बड़े मिशाल है। यहां बाढ़ से नहीं, बल्कि बारिश से तबाही मची थी। हालांकि, यहां एक सच यह भी है कि हम बारिश को भले ही रोक नहीं सकते हो। पर, हम कटाव को जरुर रोक सकते हैं और हमें इस दिशा में इमानदरी से काम करना चाहिए।

अन्तर्राष्ट्रीय नोडल एजेंसी

संयुक्त राष्ट्र संघ ने दक्षिण पूर्व एशिया में पानी के प्रबंधन के लिए एक नोडल एजेंसी बनाया हैं। इसके तहत वाटर मैनेजमेंट के लिए एक नॉलेज हब बनाने की योजना है। ताकि, पानी के प्रबंधन से जुड़ी सूचनाएं, बाढ़ और सूखा से जुड़े अध्ययन, और इससे प्राप्त सभी आंकड़े, एक ही मंच पर उपलब्ध हो सके। मेरा मानना है कि बाढ़ पर काबू पाने के लिये सरकार को एक साथ दो मोर्चा पर काम करना होगा। पहला मोर्चा इंजीनियरिंग समाधान की है। जिसके तहत बाढ़ प्रभावित इलाकों में बांधो का निर्माण और कटाव की रोकथाम की कोशिश जारी रखना चाहिए। जबकि, दूसरे मोर्चा पर लोगों को बाढ़ के प्रति जागरूक बनाना होगा। ताकि, आम आवाम पारिस्थिति की सन्तुलन को बनाए रखने की दिशा में खुदसर सजग हो सकें। क्योंकि, अपने भौगौलिक बनाबट की वजह से भारत के लोग कही सूखा तो कहीं बाढ़ की समस्या से अमूमन प्रत्येक साल जूझते है। ऐसे में प्राकृतिक आपदा के समय नुकसान को न्यूनतम करने के लिए आवाम का जागरुक होना अब बहुत जरुरी है।


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