KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के गांवो में बनी अधिकांश क्वारंटीन सेंटर पर सुविधओं का अभाव है और अधिकारी सुन नहीं रहें हैं। इन दिनो इस प्रकार की खबरो का सोशल मीडिया पर भरमार है। वेशक, यह एक हकीकत भी है। पर, एक हकीकत और भी है… और वह ये कि सिस्टम ओवरलोड हो चुका है। आने वाले दिनो में यह ध्वस्त हो जायेगा। कहने वाले इतना कहेंगे कि सुनने वाला कोई नहीं होगा। नतीजा, अराजकता और अफरा-तफरी के बीच समस्या सिर्फ कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने का नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा के ध्वस्त होने का भी नहीं है। बल्कि, असली समस्या तो विधि-व्यवस्था को सम्भाल पाने की होगी। दुनिया की कई देश इस तरह की समस्या पहले से झेल रहें हैं। अब बारी हमारी है। राजनीतिक नफा-नुकसान हेतु हमने स्वयं ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने का रास्ता खोल दिया है और विधि व्यवस्था के समक्ष भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
ताज्जुब की बात है कि इटली और अमेरिका जैसी विकसित देशो से हम सीख नहीं पाये और राजनीतिक कारणो से हमारे सियासतदानो ने पूरे बिहार को संक्रमण के उस दावानल में झोंक दिया है, जहां से निकल पाना, शायद अब मुश्किल होगा। गौर करने वाली बात ये है कि अभी तो महज दो से ढ़ाई लाख प्रवासी कामगार बिहार लौटे है और सिस्टम हाफने लगा है। अगले दो सप्ताह में 15 लाख और लौटेंगे, तब क्या होगा? बेशक, इस सियासत से किसी का नुकसान होगा और किसी को लाभ मिल जायेगा। पर, जो संक्रमण की भेंट चढ़ जायेंगे… उनका क्या होगा? जो, पैदल, साइकिल से या किराया के गाड़ी से ऑफ द रिकार्ड लौट रहें हैं… उनका क्या होगा? ट्रेन के आउटर सिग्नल से भाग कर सीधे घर पहुंच रहें हैं … उनका क्या होगा? ऐसे दर्जनो सवाल है, जिसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।
बिहार के गांवों में अफरा-तफरी मची है। कोई क्वारंटाइन सेंटर से निकल कर रात में अपने घर चला जाता है और कोई चौक-चौराहे पर घुमने पहुंच जाता है। अधिकारी चाहे जो दावा करलें। पर, यह भी सच है कि कई लोग क्वारंटाइन सेंटर से निकल कर घर पर रह रहें है। ऐसा नहीं है कि गांव के लोग, अधिकारी को इसकी सूचना नहीं देते है। उल्टा दर्जनो वार फोन करने पर भी अधिकारी संज्ञान लेने को तैयार नहीं है। आम तो आम… खास की बातो को भी तबज्जो नहीं दी जा रही है। दरअसल, सिस्टम के पास मौजूद संसाधन फुल हो चुका है। कर्मियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है। अब सवाल उठता है कि क्या यह बात पहले से पता नहीं था? बड़ा सवाल ये कि बिहार के गांवों में मची इस अफरा-तफरी के लिए जिम्मेदार कौन है? दूसरी ओर क्वारंटाइन सेंटर में रहने वालों की अपनी अलग दास्तन है। रहने के लिए विस्तर और खाने के लिए भोजन, जैसे-तैसे मिल भी जाये। पर, शौचालय और पेयजल का अभाव खटक रहा है। कई सेंटरो पर रौशनी का अभाव है। मच्छरदानी के बिना रात में सो-पाना दुष्कर हो रहा है। यह आलम तब है, जब महज दस फीसदी कामगार बिहार लौटे है। सोचिए बाकी के 90 फीसदी भी आ गये तो क्या होगा? साधन सीमित है और कामगारो का सैलाव रोज व रोज बढ़ता चला जा रहा है। यानी आने वाले दिनो में क्या होगा? यह सोच कर सिहरन होना स्वभाविक है।
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