प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी पहली उम्मीदवारों की सूची गुरुवार को जारी करने जा रही है। पार्टी के सूत्रों के अनुसार, इस पहली सूची में 40 आरक्षित सीटों के लिए नाम शामिल किए जाएंगे, जो कि प्रशांत किशोर के चुनावी मैदान में उतरने की शुरुआत को दर्शाता है। यह सूची बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है और इसके साथ ही किशोर की राजनीति में एंट्री को लेकर काफ़ी चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
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पदयात्रा से जुड़े उम्मीदवारों की उम्मीदवारी करगहर
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस सूची में वह लोग शामिल होंगे जो प्रशांत किशोर की बिहार में आयोजित व्यापक पदयात्रा का हिस्सा रहे हैं। इसमें शिक्षित युवा, समाजसेवी और किसान संगठनों से जुड़े लोग प्रमुखता से शामिल हो सकते हैं। यह संकेत देता है कि जन सुराज पार्टी पुराने और पारंपरिक राजनीतिक चेहरों से हटकर नए, स्वच्छ और जमीनी स्तर के नेतृत्व पर ध्यान दे रही है। पार्टी का यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि उनका लक्ष्य स्थानीय मुद्दों और वास्तविक बदलाव के साथ चुनावी मैदान में उतरना है।
क्या प्रशांत किशोर भी होंगे उम्मीदवार?
जबकि जन सुराज पार्टी अपनी पहली सूची जारी करने जा रही है, सबकी नजरें इस बात पर हैं कि क्या प्रशांत किशोर खुद चुनावी मैदान में उतरेंगे। हालाँकि, उन्होंने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि वह किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उनके द्वारा दिए गए संकेतों से यह साफ होता है कि वह दो सीटों के बीच में कोई एक सीट चुन सकते हैं। ये सीटें हैं – करगहर (रोहतास जिला) और राघोपुर (वैशाली जिला)।
करगहर या राघोपुर: किस सीट से लड़ सकते हैं प्रशांत किशोर?
हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा था, “चुनाव किसी दो जगहों से ही लड़ा जाना चाहिए – एक तो जन्म स्थान से और दूसरा काम करने के स्थान से। अगर मैं अपने जन्म स्थान को ध्यान में रखूं तो मुझे करगहर से लड़ना चाहिए और अगर मैं अपने काम करने के स्थान को ध्यान में रखूं तो मुझे राघोपुर से लड़ना चाहिए।”
उनके इस बयान ने इस बात को लेकर काफ़ी चर्चा शुरू कर दी है कि प्रशांत किशोर का निर्णय राजनीतिक रणनीति पर आधारित होगा, न कि केवल प्रतीकात्मक कारणों पर।
करगहर : जातिवादी सीट का राजनीतिक महत्व
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि करगहर सीट, जो कि ब्राह्मण-प्रधान लेकिन कुरी-मजोरिटी वाली सीट है, प्रशांत किशोर के लिए एक रणनीतिक सीट हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार गोविंदा मिश्रा के अनुसार, “अगर प्रशांत किशोर करगहर से चुनाव लड़ते हैं, तो यह संदेश जाएगा कि वह बिहार में राजनीति को बदलने के लिए आए हैं, और यह बदलाव उनकी अपनी घर की सीट से शुरू होगा।”
विश्लेषकों के अनुसार, करगहर सीट पर कुरी और कोएरी वोटरों का जमावड़ा लगभग 50,000 से 60,000 तक है, जबकि ब्राह्मणों की संख्या करीब 30,000 से 35,000 के बीच है। पिछले चुनाव में कुरी वोटरों की ओर से ब्राह्मण नेतृत्व की ओर रुझान देखा गया था, जब वशिष्ठ सिंह को संतोष मिश्रा ने हराया था।
करगहर की चुनावी महत्ता
करगहर सीट का चुनावी महत्व इस कारण भी है कि यहां चुनाव दूसरे चरण में 11 नवंबर को होंगे। यदि प्रशांत किशोर यहां से चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीट राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। इस सीट से उनका चुनाव लड़ने का निर्णय बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
राघोपुर: लालू परिवार का मजबूत गढ़
वहीं, राघोपुर सीट एक अलग तरह की चुनौती पेश करती है। यह सीट फिलहाल तेजस्वी यादव द्वारा प्रतिनिधित्व की जा रही है, और यह सीट पहले लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के पास रही है। राघोपुर सीट पर यादव परिवार का वर्चस्व काफी मजबूत रहा है, जिससे यह सीट किसी भी प्रतिद्वंदी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
प्रशांत किशोर ने पहले यह संकेत दिया था कि अगर वह चुनाव लड़ते हैं, तो वह तेजस्वी यादव के खिलाफ सीधा मुकाबला करेंगे। एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “अगर मैं चुनाव लडूंगा, तो मैं तेजस्वी यादव के खिलाफ ही लड़ूंगा। अगर मुझे किसी और जगह से लड़ना है तो उसका कोई मतलब नहीं है।” उनके इस बयान से यह साफ होता है कि वह सीधे तौर पर यादव परिवार की लंबे समय से चली आ रही सत्ता चुनौती देने के लिए तैयार हैं।
राघोपुर का जातीय गणित
राघोपुर की जातीय संरचना को समझना यहां के चुनावी परिणामों को समझने में मदद करता है। यहां लगभग 30% यादव वोटर हैं, इसके अलावा महत्वपूर्ण बीसी और पासवान जातियों के वोटर भी हैं। इसलिए, किसी भी चैलेंजर के लिए जातीय गणित बहुत महत्वपूर्ण होगा। अगर प्रशांत किशोर राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीधे तौर पर लालू परिवार के वर्चस्व को चुनौती देने का एक प्रयास होगा। यह उसी तरह का संघर्ष हो सकता है जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
नितीश कुमार के खिलाफ भी चुनाव लड़ सकते हैं किशोर
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा है कि अगर मुख्यमंत्री नितीश कुमार चुनावी मैदान में आते हैं, तो वह उनके खिलाफ भी चुनाव लड़ने से नहीं हिचकेंगे। “अगर नितीश कुमार चुनाव लड़ते हैं, तो मैं निश्चित रूप से उनके खिलाफ चुनाव लड़ूंगा। मैं पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा और वहीं से टिकट प्राप्त करूंगा,” किशोर ने कहा। यह बयान बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को और भी दिलचस्प बना देता है, क्योंकि वह नितीश कुमार की “बैकडोर राजनीति” को सार्वजनिक रूप से चुनौती दे रहे हैं।
बिहार की राजनीति में नया मोड़
जन सुराज पार्टी की पहली उम्मीदवारों की सूची बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकती है। पार्टी का लक्ष्य पारंपरिक राजनीतिक चेहरों से हटकर ऐसे उम्मीदवारों को आगे लाना है जो समाज के विभिन्न तबकों से जुड़े हुए हैं और जिनकी जड़ें जमीनी स्तर पर हैं। प्रशांत किशोर का यह कदम बिहार में एक नई राजनीतिक हवा का संकेत हो सकता है। उनके द्वारा किस सीट से चुनाव लड़ा जाता है, यह बिहार के आगामी चुनावी परिदृश्य पर गहरा असर डालेगा।
प्रशांत किशोर का चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय बिहार के राजनीतिक माहौल को बदल सकता है, और यह तय करेगा कि आने वाले समय में बिहार में सत्ता की दिशा किस ओर मुड़ेगी। चाहे वह करगहर चुनाव लड़ें, राघोपुर से या नितीश कुमार के खिलाफ सीधे मुकाबला करें, उनकी रणनीति आने वाले चुनावों को काफी प्रभावित करने वाली है।
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से, जन सुराज पार्टी की पहली उम्मीदवारों की सूची राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का बड़ा अवसर हो सकती है। यह एक ऐसी राजनीति को बढ़ावा देने का प्रयास है जो पारंपरिक नेताओं से हटकर समाज के हर वर्ग से जुड़ी हो। प्रशांत किशोर के चुनावी कदम से बिहार की राजनीति में एक नई दिशा आ सकती है।
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