भोजपुरी अभिनेता और बीजेपी नेता पवन सिंह ने अपनी पत्नी ज्योति सिंह के साथ चल रहे विवाद पर सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखी है। विधानसभा चुनावों के करीब आते ही दोनों के निजी मामले अब सियासी विमर्श का हिस्सा बन चुके हैं। पवन सिंह ने पहली बार इस मुद्दे पर खुलकर बयान दिया, जिसमें उन्होंने इस विवाद को अनावश्यक रूप से राजनीति से जोड़े जाने का आरोप लगाया। पवन ने यह भी कहा कि निजी मुद्दों को मीडिया में लाकर उनका गलत उपयोग किया जा रहा है, जो कि बिल्कुल अनुचित है।
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पवन सिंह का ज्योति सिंह पर सियासी आरोप
पवन सिंह ने अपने बयान में ज्योति सिंह की नीयत पर सवाल उठाया और पूछा, “अगर घर में कोई प्यार था तो वो छह महीने पहले क्यों नहीं दिखा? क्यों अब, चुनाव से एक महीना पहले यह सब शुरू हुआ है? कोई कितनी नीचे गिर सकता है सिर्फ MLA बनने के लिए?” पवन सिंह ने यह भी कहा, “परिवार के मामले कैमरे के सामने नहीं होते, वो कमरे में होते हैं।” उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि ज्योति सिंह द्वारा इस विवाद को चुनावी मुद्दा बनाने के पीछे सियासी मकसद हो सकता है।
ज्योति सिंह के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और कोर्ट में लंबित मामले
पवन सिंह ने यह भी बताया कि उनका तलाक का मामला अभी कोर्ट में लंबित है। साथ ही, ज्योति ने आरा में maintenance की याचिका भी दायर की है। पवन ने यह भी खुलासा किया कि ज्योति के पिता, रामबाबू सिंह ने एक बार उनसे कहा था, “मेरी बेटी को MLA बना दो, फिर अगर चाहो तो उसे छोड़ देना।” पवन सिंह ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उन्हें इस तरह के राजनीतिक दबाव स्वीकार करना उचित नहीं लगा।
पवन सिंह की भावनात्मक प्रतिक्रिया
पवन सिंह ने इस पूरे मामले को लेकर अपनी भावनाओं का इज़हार किया। उन्होंने कहा, “राजनीति में रिश्तों को तमाशा बना दिया गया है। मैं अपनी सीमाएं जानता हूँ। मैं 40 साल का इंसान हूं, केवल पावर स्टार नहीं। महिलाओं की बातें सुनकर आँसू आते हैं, लेकिन कोई यह नहीं देखता कि एक आदमी की भी पीड़ा होती है।” उनका यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि उन्हें इस सार्वजनिक विवाद और मीडिया के दबाव से काफी मानसिक तकलीफ हो रही है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और भविष्य की योजना
पवन सिंह ने 2017 में बीजेपी जॉइन की थी और 2024 में उन्होंने करकट से स्वतंत्र रूप से लोकसभा चुनाव लड़ा था। हाल ही में उन्होंने बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी उन्हें आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार के रूप में उतार सकती है। यह संभावना जताई जा रही है कि पवन सिंह को आरा या करकट विधानसभा सीट से मैदान में उतारा जा सकता है।
इस राजनीतिक स्थिति ने इस विवाद को और भी जटिल बना दिया है। अब यह सवाल उठता है कि पवन सिंह के व्यक्तिगत विवाद और उनका राजनीतिक भविष्य एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं। इस मामले के राजनीतिक नतीजे पर ध्यान दिया जा रहा है, खासकर चुनावी सीजन में।
सुरक्षा संबंधी चिंताएं और केंद्रीय सुरक्षा की स्वीकृति
पवन सिंह को केंद्रीय सरकार द्वारा Y-प्लस सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसके तहत उन्हें 11 सुरक्षा कर्मियों के साथ यात्रा करनी पड़ती है। यह कदम उन्हें मिले कई धमकियों के बाद उठाया गया है। इनमें सोशल मीडिया पर उत्पीड़न और सितंबर में बाबा खान के सहयोगियों द्वारा भेजे गए धमकी भरे वीडियो शामिल हैं। पवन सिंह ने बाद में अभिनेत्री अंजली राघव से माफी मांगी थी, जिन्हें उन्होंने लखनऊ में एक इवेंट के दौरान गले लगाया था। अंजली ने पवन की माफी स्वीकार की, लेकिन इस घटना ने विवाद को जन्म दिया, जिसके कारण पवन को सुरक्षा प्रदान की गई।
व्यक्तिगत मामले को राजनीति से अलग रखने की अपील
पवन सिंह ने अपनी पारिवारिक समस्या को सियासत से दूर रखने की अपील की। उन्होंने कहा, “जो लोग इस विवाद को सियासी मंच बना रहे हैं, वे सिर्फ तमाशा कर रहे हैं।” उन्होंने भावुक होते हुए यह आग्रह किया कि उनके वैवाहिक विवाद को एक व्यक्तिगत मामला समझा जाए और इसे राजनीतिक मंच पर उठाने का कोई कारण नहीं है। पवन सिंह का यह बयान स्पष्ट करता है कि वह अपनी निजी जिंदगी में हो रही समस्याओं को राजनीति से अलग रखना चाहते हैं।
पवन सिंह और ज्योति सिंह के बीच चल रहा विवाद अब सिर्फ एक पारिवारिक मामला नहीं रह गया है। यह घटना यह दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत मुद्दे कभी-कभी राजनीति का हिस्सा बन जाते हैं, खासकर जब चुनाव नजदीक हों। पवन सिंह ने इस विवाद को सियासी मुद्दा बनाने के खिलाफ अपनी आवाज उठाई है और इसे एक निजी मामला रखने की अपील की है।
वहीं, पवन सिंह के राजनीतिक करियर के संदर्भ में यह भी देखा जा रहा है कि इस विवाद का असर उनकी आगामी चुनावी योजना पर क्या पड़ेगा। इस समय, पवन सिंह को राजनीतिक और व्यक्तिगत दोनों ही मोर्चों पर एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस मुद्दे की तह में जाने से यह समझ में आता है कि कभी-कभी मीडिया और राजनीति के बीच का अंतर धुंधला हो जाता है।
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