बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय कर लिया है, लेकिन इसके बावजूद गठबंधन के अंदर की असहमति साफ नजर आ रही है। सूत्रों के अनुसार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन नौ सीटों को लेकर ऐतराज़ है, जो भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने उनके पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) [जद(यू)] को अलॉट की हैं। यह सीटें जद(यू) की उम्मीदों के खिलाफ रही हैं, और इस मुद्दे को लेकर पार्टी में निराशा है।
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नीतीश कुमार की नाराजगी और सीटों पर विवाद
नीतीश कुमार को पहले 103 सीटों का वादा किया गया था, लेकिन एनडीए के फाइनल फॉर्मूले में उन्हें केवल 101 सीटें दी गईं। इस फैसले से मुख्यमंत्री असंतुष्ट हैं, क्योंकि इनमें से नौ सीटें ऐसी हैं जो जद(यू) को नहीं दी गईं। यह सीटें कथित तौर पर लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) [एलजेपी (आरवी)] को दी गईं, जो जद(यू) के लिए एक बड़ा विवाद का कारण बनी है।
नीतीश कुमार इस बात से नाराज हैं कि उनकी पार्टी को इन पारंपरिक और मजबूत सीटों से वंचित किया गया है, जो उनके लिए महत्वपूर्ण चुनावी क्षेत्र मानी जाती हैं। इस असहमति के बाद जद(यू) और भा.ज.पा. नेताओं के बीच एक देर रात बैठक आयोजित की गई, जिसमें नीतीश कुमार ने अपने पार्टी नेताओं को यह निर्देश दिया कि वे इस मुद्दे को भा.ज.पा. के शीर्ष नेताओं के सामने उठाएं।
राजगीर और सोनबरसा सीटों पर जद(यू) और एलजेपी (आरवी) के बीच विवाद
जद(यू) और एलजेपी (आरवी) के बीच सोनबरसा और राजगीर विधानसभा सीटों पर विशेष विवाद है। ये दोनों सीटें वर्तमान में जद(यू) के पास हैं, लेकिन एलजेपी (आरवी) ने इन्हें नई सीट बंटवारे के तहत अपने नाम करने का दावा किया है।
इस विवाद के बीच नीतीश कुमार ने व्यक्तिगत रूप से मंत्री रत्नेश सादा को पार्टी का प्रतीक सौंपा और उन्हें सोनबरसा सीट से उम्मीदवार घोषित किया। सादा आज अपना नामांकन दाखिल करेंगे, और इस कदम के जरिए नीतीश कुमार ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि जद(यू) अपनी पारंपरिक सीटों को किसी भी हालत में छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
जद(यू) के उम्मीदवारों का ऐलान
इन विवादों के बावजूद, जद(यू) ने अपनी कई सीटों के लिए उम्मीदवारों का चयन भी कर लिया है। पार्टी के मजबूत उम्मीदवारों में से एक अनंत सिंह होंगे, जो मोकामा सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा, जद(यू) के अन्य उम्मीदवारों में उमेश सिंह कुशवाहा, सुनील कुमार, शैलेश कुमार, दामोदर रावत, संतोष निराला, सिद्धार्थ पटेल, बिजेंद्र प्रसाद यादव और रत्नेश सादा के नाम सामने आए हैं। ये उम्मीदवार जद(यू) की चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं, जो पार्टी के प्रभाव क्षेत्र को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
भा.ज.पा. ने 48 उम्मीदवारों की सूची की पुष्टि की
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने अपनी उम्मीदवारों की सूची को लगभग अंतिम रूप दे लिया है। पार्टी ने 48 उम्मीदवारों की नामांकन प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है। भा.ज.पा. ने 45 उम्मीदवारों को तत्काल अपने नामांकन दाखिल करने के निर्देश दिए हैं और कहा है कि इन सीटों पर कोई विवाद नहीं है।
भा.ज.पा. के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को तारापुर (मुंगेर) से उम्मीदवार घोषित किया गया है। सम्राट चौधरी 16 अक्टूबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे, और उनके भाई रोहित चौधरी ने बताया कि इस कार्यक्रम में लगभग 15,000 समर्थकों के शामिल होने की संभावना है। इसके साथ ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी कार्यक्रम में शामिल होने की संभावना है।
भा.ज.पा. ने कुछ मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं देने का निर्णय लिया है। पटना सिटी के विधायक नंद किशोर यादव और कुम्हरार के विधायक अरुण कुमार को टिकट नहीं दिया गया है। इसके स्थान पर, संजय गुप्ता कुम्हरार से चुनाव लड़ेंगे, जबकि पटना सिटी से रत्नेश कुशवाहा को उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना है।
मंगल पांडेय की उम्मीदवारी, संभावना सेवानिवृत्ति पर
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, जो वर्तमान में विधान परिषद के सदस्य हैं, को भा.ज.पा. ने सिवान सीट से उम्मीदवार बनाने का मन बनाया है। उनकी उम्मीदवारी भा.ज.पा. की बिहार में अपनी स्थिति को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
बैठक और सुलह की प्रक्रिया जारी
चुनाव से पहले गठबंधन में जारी मतभेदों को सुलझाने के लिए सोमवार को कई दौर की बैठकें हुईं। पहले भा.ज.पा. के राज्य नेताओं की बैठक हुई, फिर केंद्रीय मंत्री और चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान की बैठक हुई। इसके बाद, देर रात जद(यू) के संजय झा से भी भा.ज.पा. नेताओं की बैठक हुई, ताकि सीटों के बंटवारे पर अंतिम रूप से बातचीत की जा सके।
गिरिराज सिंह का चिराग पासवान पर निशाना
गठबंधन में जारी गतिरोध के बीच, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने चिराग पासवान पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला किया। उन्होंने कहा, “कुछ लोग स्ट्राइक रेट की बात कर रहे हैं, लेकिन उनके बिना एनडीए ने 2010 में इतिहास रच दिया था।” गिरिराज सिंह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से “फील-गुड पॉलिटिक्स” से दूर रहने की अपील की और यह कहा कि बिहार में गठबंधन के लिए केवल नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ही प्रमुख चेहरे हैं।
उन्होंने 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों का हवाला देते हुए यह याद दिलाया कि उस समय एनडीए ने 243 में से 206 सीटें जीती थीं, जिसमें जद(यू) ने 115 में से 81% और भा.ज.पा. ने 102 में से 89% सीटें जीती थीं। इस जीत के बाद से अब तक ऐसा रिकॉर्ड नहीं बना है।
राजनीतिक माहौल: असमंजस और असहमति
इस समय बिहार में चल रहे राजनीतिक हलचल के बीच, एनडीए के भीतर की असहमति और सीटों के बंटवारे पर विवाद पार्टी के भीतर कमजोर एकता का संकेत दे रहे हैं। हालांकि, दोनों पक्ष सार्वजनिक रूप से यह दावा कर रहे हैं कि गठबंधन मजबूत है, लेकिन बैठकें और अंदरूनी बातचीत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए का रास्ता अब तक आसान नहीं रहा है। जद(यू) और भा.ज.पा. के बीच सीटों को लेकर असहमति और अंदरूनी विवाद इस बात का संकेत हैं कि चुनावी मैदान में यह गठबंधन कितनी मजबूती से आगे बढ़ेगा, यह भविष्य के चुनावी माहौल पर निर्भर करेगा। दोनों पार्टियां अपनी रणनीतियों और उम्मीदवारों के चयन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, लेकिन भीतर की असहमति को सुलझाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।



