बिहार के राजनीतिक माहौल में इस समय ज़बरदस्त हलचल है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण सीट-शेयरिंग व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए शीर्ष नेतागण अति आवश्यक बैठकें कर रहे हैं। नई दिल्ली में इन बैठकों का दौर चल रहा है। सभी राजनीतिक दलों के पास समय बहुत कम बचा है। नॉमिनेशन प्रोसेस जल्द ही शुरू होना है। महागठबंधन द्वारा अंतिम घोषणा की व्यापक रूप से प्रतीक्षा की जा रही है। यह घोषणा 13 अक्टूबर को होने की उम्मीद है। राजनीतिक विश्लेषक इन सभी घटनाक्रमों पर करीब से नज़र बनाए हुए हैं। सभी प्रतिभागियों के लिए इस समय दाँव बहुत ऊँचे हैं।
Article Contents
दिल्ली में अहम मीटिंग: राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे संभालेंगे कमान
कांग्रेस पार्टी ने एक अहम हाई-लेवल मीटिंग बुलाई है। यह बैठक आज दिल्ली में हो रही है। इसका मुख्य उद्देश्य बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीट-शेयरिंग फ़ॉर्मूले को अंतिम रूप देना है। यह मीटिंग बहुत अधिक महत्व रखती है। इसकी अध्यक्षता पार्टी के वरिष्ठ नेता कर रहे हैं। राहुल गांधी इन चर्चाओं का नेतृत्व कर रहे हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे भी इस बैठक में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। दोनों नेता अंतिम रणनीतिक निर्णय लेने में मार्गदर्शन कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, इस मीटिंग में अंतिम निर्णय आने की उम्मीद है। वे सीट वितरण पर एक समाधान की अपेक्षा कर रहे हैं। विशिष्ट उम्मीदवारों के नामों पर भी निर्णय लिया जाएगा। यह कदम कांग्रेस पार्टी की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है। पार्टी को जल्दी से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। पूरा महागठबंधन समय के दबाव में है। नेतृत्व ने बार-बार बचे हुए कम समय पर ज़ोर दिया है। सभी सहयोगियों के बीच तुरंत सर्वसम्मति बनना ज़रूरी है। इससे नॉमिनेशन प्रोसेस बिना किसी देरी के शुरू हो सकेगी। इस प्रक्रिया की सुचारु शुरुआत अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोई भी विलंब गठबंधन की चुनावी तैयारी पर असर डाल सकता है।
यह बैठक कांग्रेस पार्टी की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। वे राज्य चुनावों में एक मज़बूत स्थिति चाहती है। बिहार के परिणाम राष्ट्रीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण हैं। राहुल गांधी की उपस्थिति इस परिणाम के महत्व का संकेत देती है। वह व्यक्तिगत रूप से इन वार्ताओं में शामिल हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे अपने विशाल संगठनात्मक अनुभव का उपयोग कर रहे हैं। उनका संयुक्त प्रयास पार्टी अनुशासन को लागू करने के लिए है। इसका उद्देश्य निर्णय लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना भी है। लक्ष्य है एक एकजुट मोर्चा प्रस्तुत करना।
बैठक कई विवादास्पद बिंदुओं पर केंद्रित है। आंतरिक और बाहरी विवादों को हल करना मुख्य प्राथमिकता है। कांग्रेस सीटों की अधिक संख्या के लिए ज़ोर दे रही है। उनका मानना है कि उनका राष्ट्रीय प्रोफाइल इस आवंटन के योग्य है। अन्य सहयोगी दलों के विचार अलग हैं। इन आंतरिक दबावों को आज संबोधित किया जा रहा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों को शाम तक एक निश्चित सूची की उम्मीद है। यह सूची तब अन्य सहयोगियों को प्रस्तुत की जाएगी। यह अंतिम चरण 13 अक्टूबर की घोषणा का मार्ग प्रशस्त करेगा।
यह तेज़ी चुनाव कार्यक्रम से प्रेरित है। उम्मीदवारों को अपने कागज़ात तैयार करने के लिए समय चाहिए। उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से प्रचार भी करना होगा। घोषणा में देरी से प्रचार की गति को नुकसान होता है। कांग्रेस नेतृत्व इस तथ्य से पूरी तरह अवगत है। उनका ध्यान त्वरित, रणनीतिक फैसलों पर बना हुआ है। वे किसी भी अंतिम क्षण की अराजकता से बचना चाहते हैं। यह बैठक पूर्ण स्पष्टता प्राप्त करने का अंतिम प्रयास है।
कांग्रेस की मांग: चार महत्वपूर्ण सीटों से गठबंधन में तनाव
सीट-शेयरिंग की बातचीत ने कई मतभेदों को उजागर किया है। विश्वसनीय पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस को कथित तौर पर 54 सीटें मिलने वाली हैं। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व और अधिक सीटों की मांग कर रहा है। वे सक्रिय रूप से चार अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्रों की मांग कर रहे हैं। इस मांग ने महागठबंधन के भीतर स्पष्ट तनाव पैदा किया है। पार्टी इन चार सीटों को अत्यंत महत्वपूर्ण मानती है।
विवाद के तहत चार निर्वाचन क्षेत्र विशिष्ट स्थान हैं। वे हैं बछवाड़ा, औराई, हरलाखी, और मटिहानी। कांग्रेस इन सीटों को जीतने लायक मानती है। वे बिहार में पार्टी के विकास के लिए प्रमुख क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन सीटों को सुरक्षित करना बातचीत की एक प्रमुख प्राथमिकता है। पार्टी इन चार अतिरिक्त सीटों के बारे में दृढ़ है। वे इनके आवंटन के लिए एक महत्वपूर्ण ज़ोर लगा रहे हैं।
विशेष रूप से बछवाड़ा सीट एक प्रमुख केंद्र बिंदु बन गई है। यह कांग्रेस के लिए एक कड़ा मुकाबला प्रस्तुत करती है। पार्टी के दिमाग में इस सीट के लिए एक विशिष्ट उम्मीदवार है। यह उम्मीदवार हैं शिव प्रकाश गरीबदास। वह वर्तमान में यूथ कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। उन्हें यहाँ मैदान में उतारना एक रणनीतिक कदम है। इसका उद्देश्य पार्टी के युवा विंग को सक्रिय करना है। इसलिए बछवाड़ा सीट का अपार प्रतीकात्मक मूल्य है। इसे जीतने से पूरी राज्य इकाई का मनोबल बढ़ेगा। कांग्रेस की रणनीति इस महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र के इर्द-गिर्द घूमती है।
औराई, हरलाखी, और मटिहानी की मांग भी उतनी ही दृढ़ है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र अलग-अलग कारणों से रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इन चार अतिरिक्त सीटों को हासिल करने से कांग्रेस की कुल संख्या में काफी वृद्धि होगी। यह पार्टी को और अधिक क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की अनुमति देगा। यह विस्तार उनके दीर्घकालिक बिहार पॉलिटिक्स उद्देश्यों के लिए केंद्रीय है। बातचीत इस विशिष्ट चार-सीट गतिरोध को हल करने पर केंद्रित है। दिल्ली मीटिंग की सफलता इस समाधान पर निर्भर करती है।
प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों पर कांग्रेस को वाम दलों की चुनौती
महागठबंधन कई पार्टियों का एक गठबंधन है। यह संरचना स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धी दावों को जन्म देती है। वाम दल गठबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। वे भी उन्हीं सीटों पर दाँव लगा रहे हैं। यह ओवरलैप वर्तमान वार्ताओं को और जटिल बना रहा है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, या सीपीआई, विशेष रूप से मुखर है। सीपीआई कांग्रेस द्वारा मांगी गई कई सीटों की मांग कर रही है।
बछवाड़ा सीट इस संघर्ष का एक सही उदाहरण है। यह गठबंधन के भीतर एक महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान बन गया है। कांग्रेस शिव प्रकाश गरीबदास को नामांकित करने पर अडिग है। हालांकि, सीपीआई ने पहले ही अपने उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया है। वाम दल ने उसी सीट के लिए अवधेश राय की घोषणा की है। यह दोहरी उम्मीदवारी तत्काल समस्या पैदा करती है। अंतिम घोषणा से पहले इसे हल किया जाना चाहिए। बछवाड़ा पर विवाद एक प्राथमिक बाधा है। यह बहु-दलीय सीट-शेयरिंग की कठिनाई को उजागर करता है।
वाम दल अपनी ऐतिहासिक उपस्थिति के लिए तर्क देते हैं। वे कुछ क्षेत्रों में अपनी संगठनात्मक शक्ति का हवाला देते हैं। उनका मानना है कि उनके उम्मीदवारों के जीतने की संभावना बेहतर है। यह ऐतिहासिक दावा उनकी वर्तमान मांगों का आधार बनता है। वे बिहार विधानसभा चुनाव को खोई हुई ज़मीन वापस पाने के अवसर के रूप में देखते हैं। सीपीआई इन स्थितियों को आसानी से छोड़ने को तैयार नहीं है। वे वरिष्ठ गठबंधन नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं। उनकी आवाज़ मौजूदा बातचीत में महत्वपूर्ण जटिलता जोड़ती है।
एकता की आवश्यकता सर्वोपरि बनी हुई है। सभी दल विपक्ष को हराने के महत्व को पहचानते हैं। फिर भी, आंतरिक प्रतिद्वंद्विता को संभालना मुश्किल साबित हो रहा है। नेतृत्व को एक समझौता समाधान खोजना होगा। इस समाधान को कांग्रेस और सीपीआई दोनों को संतुष्ट करना होगा। बछवाड़ा में सामान्य आधार खोजना आवश्यक है। इस विशिष्ट खींचतान का परिणाम एक मिसाल कायम करेगा। यह बिहार भर में अन्य सीट आवंटनों को प्रभावित करेगा। पूरा महागठबंधन सद्भाव प्राप्त करने पर केंद्रित है।
आरजेडी का दृढ़ रुख: पारंपरिक गढ़ अपरिवर्तनीय
महागठबंधन का मुख्य स्तंभ आरजेडी है। राष्ट्रीय जनता दल बिहार पॉलिटिक्स में महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है। कांग्रेस ने आरजेडी नेतृत्व के सामने भी मांगें रखी हैं। कांग्रेस आरजेडी कोटे से कुछ और सीटों के लिए ज़ोर दे रही है। इन निर्वाचन क्षेत्रों को क्षेत्रीय पार्टी के गढ़ के रूप में देखा जाता है। आरजेडी अपने राष्ट्रीय सहयोगी के इस दबाव का विरोध कर रही है।
कांग्रेस द्वारा मांगी गई विशिष्ट सीटें स्पष्ट हैं। वे हैं कहलगाँव, बौसी, सहरसा, बहादुरगंज, और रानीगंज। ये आरजेडी के लिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र हैं। वे उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जहाँ पार्टी की गहरी जड़ें हैं। यहाँ की स्थानीय संगठनात्मक संरचना बहुत मज़बूत है। आरजेडी इन सीटों को अपना पारंपरिक क्षेत्र मानती है। वे पार्टी की समग्र शक्ति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
बातचीत से जुड़े सूत्रों ने प्रतिरोध का संकेत दिया है। आरजेडी नेतृत्व इन रियायतों को देने को तैयार नहीं है। उन्हें लगता है कि इन सीटों को छोड़ना रणनीतिक रूप से मूर्खतापूर्ण होगा। इससे राज्य में पार्टी का आधार कमज़ोर हो सकता है। पार्टी अपनी स्वयं की जीत की क्षमता को अधिकतम करना चाहती है। तेजस्वी यादव आरजेडी की बातचीत टीम का नेतृत्व कर रहे हैं। वह पार्टी के स्थापित क्षेत्रों की रक्षा पर दृढ़ हैं।
जल्द ही एक आमने-सामने की चर्चा अपेक्षित है। यह हाई-लेवल मीटिंग तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के बीच होगी। सभी दलों द्वारा इस बातचीत का बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा है। यह गतिरोध को तोड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस विशिष्ट संवाद का परिणाम निर्णायक होगा। यह सीट-शेयरिंग सौदे के अंतिम रूप को निर्धारित करेगा। दोनों पक्षों पर एक मध्य मार्ग खोजने का दबाव है। एक सफल गठबंधन के लिए आपसी बलिदान की आवश्यकता होती है। हालांकि, आरजेडी अपने मुख्य निर्वाचन क्षेत्रों को प्राथमिकता दे रही है। वे इन सीटों को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
मुश्किल महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करने में है। कांग्रेस अपना पदचिह्न बढ़ाना चाहती है। आरजेडी अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती है। यह गतिशीलता महागठबंधन की जटिलता को परिभाषित करती है। इन पाँच विशिष्ट सीटों पर बातचीत करना कठिन काम है। बिहार विधानसभा चुनाव का भविष्य इस अंतिम समझौते पर निर्भर करता है। हर एक सीट की सावधानीपूर्वक जाँच की जा रही है। आरजेडी का संकल्प मौजूदा तनाव में एक प्रमुख कारक है।
मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी की 25 सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग
जटिलता में एक और गठबंधन सहयोगी जुड़ गया है। यह है विकासशील इंसान पार्टी, या वीआईपी। इस पार्टी का नेतृत्व मुकेश सहनी कर रहे हैं। वीआईपी ने महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं। उनकी अपेक्षाएं शुरुआती ऑफ़र से कहीं अधिक हैं। यह पूरी वितरण मैट्रिक्स को जटिल बनाता है। केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव काफी बढ़ रहा है।
वीआईपी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 25 सीटों की मांग कर रही है। यह संख्या एक छोटी पार्टी के लिए काफी बड़ी है। आरजेडी ने अब तक केवल 14 सीटों की पेशकश की है। ग्यारह सीटों का यह अंतर एक बड़ी चुनौती है। इस अंतर को पाटने के लिए कठिन समझौतों की आवश्यकता होगी। वीआईपी अपनी उच्च मांग पर दृढ़ है। मुकेश सहनी अपनी पार्टी के महत्व पर ज़ोर दे रहे हैं।
इसके अलावा, वीआईपी एक प्रमुख पद की मांग कर रही है। वे उप मुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) के पद की मांग कर रहे हैं। यह मांग राजनीतिक प्रकृति की है। यह गठबंधन के भीतर वीआईपी के कद को बढ़ाता है। यह पार्टी को महत्वपूर्ण शक्ति भी देता है। ऐसी मांग जटिलता की एक और परत जोड़ती है। यह चल रही वार्ताओं में एक महत्वपूर्ण बिंदु है। महागठबंधन को यह तय करना होगा कि इस अनुरोध को कैसे समायोजित किया जाए।
वीआईपी दो विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों की भी मांग कर रही है। वे वैशाली और हरनौत दोनों के लिए ज़ोर दे रहे हैं। ये सीटें उनके राजनीतिक आधार के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्हें सुरक्षित करना मुकेश सहनी की प्राथमिकता है। ये दावे आवंटन प्रक्रिया को और अधिक खींचते हैं। वे उपलब्ध सीटों पर अधिक दबाव डालते हैं। पूरी सीट-शेयरिंग की ‘पाई’ छोटी होती जा रही है। नेताओं को इन सभी मांगों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना होगा। वीआईपी को नज़रअंदाज़ करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उनका समावेश गठबंधन की व्यापक अपील के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए वीआईपी की मांगों का समाधान तत्काल ज़रूरी है।
अंतिम वार्ता से पहले कांग्रेस ने किया आपातकालीन सत्र
आंतरिक स्पष्टता की आवश्यकता पहले ही पहचान ली गई थी। कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में एक आपातकालीन बैठक की थी। यह बैठक पिछले शनिवार को हुई थी। यह दिल्ली चर्चाओं से पहले एक महत्वपूर्ण कदम था। इसका उद्देश्य पार्टी की समग्र स्थिति की समीक्षा करना था। वे अंतिम वार्ता में अच्छी तरह से तैयार होकर प्रवेश करना चाहते थे।
आपातकालीन सत्र वस्तुतः आयोजित किया गया था। इसे एक सुरक्षित ज़ूम प्लेटफॉर्म का उपयोग करके आयोजित किया गया था। तकनीक ने व्यापक भागीदारी की अनुमति दी। स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख सदस्य उपस्थित थे। दिल्ली के वरिष्ठ पर्यवेक्षकों ने भी भाग लिया। इस बैठक में कई संभावित उम्मीदवार शामिल थे। इन उम्मीदवारों का सीधे साक्षात्कार लिया गया था। यह उनकी तैयारी के उन्नत चरण को दर्शाता है।
बैठक में सभी आवश्यक आंतरिक मुद्दों को शामिल किया गया। स्वाभाविक रूप से सीट-शेयरिंग एक केंद्रीय विषय था। हर बात पर बहुत विस्तार से चर्चा हुई। राजेश राम ने इसकी पुष्टि की। वह बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि सीट-शेयरिंग सहित सभी मुद्दों की पूरी तरह से समीक्षा की गई। उनका बयान अंतिम वार्ता के लिए पार्टी की तत्परता की पुष्टि करता है।
राजेश राम ने परिणाम में विश्वास व्यक्त किया। उन्होंने संकेत दिया कि सीट-शेयरिंग फ़ॉर्मूला लगभग पूरा हो चुका है। उन्होंने “लगभग फ़ाइनलाइज़्ड” वाक्यांश का इस्तेमाल किया। यह आंतरिक समझौते पर पहुँचने का सुझाव देता है। अगला कदम एक सामूहिक घोषणा है। यह घोषणा पूरे महागठबंधन द्वारा की जाएगी। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कांग्रेस ने पहले ही अपने उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट कर लिया था। इसका मतलब है कि पार्टी तेज़ी से कार्रवाई करने के लिए तैयार है। वे बस अंतिम 13 अक्टूबर की घोषणा का इंतज़ार कर रहे हैं। आपातकालीन बैठक एक महत्वपूर्ण तैयारी थी। इसने मौजूदा हाई-स्टेक वार्ताओं के लिए मंच तैयार किया।
13 अक्टूबर तक उलटी गिनती: महागठबंधन की अंतिम लिस्ट तैयार करना
अगले 48 घंटे निस्संदेह महत्वपूर्ण हैं। वे समझौते के लिए अंतिम विंडो का प्रतिनिधित्व करते हैं। पूरा महागठबंधन जल्दी में है। उन्हें सभी सीटों और सभी उम्मीदवारों के नामों को फ़ाइनलाइज़्ड करना होगा। समय सीमा बड़ी और भारी लग रही है। चुनाव आयोग की सख्त नॉमिनेशन डेडलाइन शुरू होने वाली है। एक बार वे समय सीमा शुरू होने के बाद, लचीलापन खत्म हो जाता है।
वर्तमान स्थिति भारी दबाव से परिभाषित होती है। गठबंधन को आंतरिक विवादों को सफलतापूर्वक हल करना होगा। इसमें अतिरिक्त सीटों के लिए कांग्रेस की मांगें शामिल हैं। इसमें आरजेडी की ओर से आया विरोध भी शामिल है। इसके अलावा, वाम दलों के दावों को हल किया जाना चाहिए। मुकेश सहनी की वीआईपी की बड़ी मांगें जटिलता को बढ़ाती हैं। इन सभी विभिन्न हितों को तेज़ी से संरेखित करना होगा। इस दबाव को प्रबंधित करने की क्षमता कुंजी है।
एक सफल सीट-शेयरिंग फ़ॉर्मूला एकता का प्रतीक है। यह संकेत देता है कि गठबंधन एकजुट और तैयार है। एक विलंबित या खंडित घोषणा हानिकारक होती है। यह राजनीतिक विपक्ष को एक स्पष्ट लाभ देगा। नेता अब चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य किसी भी सार्वजनिक असंतोष को रोकना है। उनका उद्देश्य पूर्ण सहमति की एक तस्वीर प्रस्तुत करना है।
13 अक्टूबर की तारीख तय है। यह अंतिम घोषणा के लिए व्यापक रूप से अपेक्षित दिन है। सभी गठबंधन सहयोगी इस तारीख की दिशा में काम कर रहे हैं। वे अपने उम्मीदवारों को नॉमिनेशन प्रोसेस के लिए तैयार कर रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव तेज़ी से निकट आ रहे हैं। महागठबंधन की सफलता पूरी तरह से इस अंतिम समझौते पर टिकी हुई है। एक सुव्यवस्थित, एकजुट मोर्चा आवश्यक है। अगले कुछ घंटे बिहार के राजनीतिक भाग्य का निर्धारण करेंगे। देश की नज़रें नई दिल्ली और पटना पर टिकी हुई हैं। अंतिम सूची अब बहुत जल्द अपेक्षित है। महत्वपूर्ण समय सीमा को किसी के द्वारा भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक पार्टी को अंतिम समाधान में योगदान देना होगा।



