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बिहार विधानसभा चुनाव: सीट बंटवारे में देरी का राजनीतिक प्रभाव और संदेश

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KKN ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भी महागठबंधन में सीट बंटवारा अटका हुआ है, जबकि एनडीए ने अपना फॉर्मूला फाइनल कर लिया है। हालांकि, कुछ सीटो पर यहां अभी पेंच फसा बताया जा रहा है। यह देरी न केवल राजनीतिक रणनीति को प्रभावित कर रही है बल्कि गठबंधन की एकजुटता पर भी सवाल खड़े कर रही है।​

वर्तमान स्थिति और तत्काल प्रभाव

एनडीए की स्थिति

एनडीए ने 12 अक्टूबर 2025 को अपना सीट बंटवारा पूरा कर लिया है। इस फॉर्मूले के तहत बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें, चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को 6 सीटें और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 सीटें मिली हैं। यह निर्णय गठबंधन में सौहार्दपूर्ण माहौल में लेने का दावा किया जा रहा है। लेकिन, अंदरखाने कुछ सीटो को लेकर अभी भी जिंच होने की खबरें छन-छन का बाहर आ रही है। नतीजा, नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने के चार रोज बाद भी उम्मीदवारो का चयन करना मुश्किल​ हो रहा है।

महागठबंधन की चुनौती

महागठबंधन में अभी तक सीट बंटवारा अटका हुआ है। राजद और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर लंबी खींचतान चल रही है। सूत्रों के अनुसार राजद 135 सीटों पर अड़ी है जबकि कांग्रेस 60-61 सीटों की मांग कर रही है। इस देरी से गठबंधन के छोटे दलों में भी बेचैनी बढ़ रही है।​ जानकारी के मुताबिक कुछ छोटे दलो ने अपना सिंबल बांटना शुरू कर दिया है। इससे गठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती है।

गठबंधन की एकजुटता पर सवाल

सीट बंटवारे में देरी से दोनो गठबंधन की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रामनरेश पांडेय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि कार्यकर्ताओं में निराशा फैल रही है और बड़ी पार्टियों को त्याग की भावना दिखानी चाहिए। इससे यह संदेश जाता है कि महागठबंधन में आंतरिक मतभेद गहरे होने लगे हैं।​ इससे पहले आरएलएम नेता उपेन्द्र कुशवाहा के ट्वीट में उनका दर्द छलक चुका है। वेशक इन तमाम बातों का चुनाव पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।

मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव

शुरू में लगा कि सीटो के बंटबारे में एनडीए ने बढ़त हासिल कर ली है। लेकिन, एलजेपीआर को मिले 29 सीटो में से कुछ पर जेडीयू की नानुकर से मामला एक बार फिर फंसता हुआ प्रतीत हो रहा है। दूसरी ओर महागठबंधन की अनिश्चितता के बीच मतदाताओं के मन में कई सवाल उठने शुरू होने हो गयें है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, चुनावी तैयारी में यह देरी परिणाम पर असर डाल सकता है। ​

व्यावहारिक नुकसान और चुनौतियां

पहले चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर है और दूसरे चरण के लिए 20 अक्टूबर है। दोनो गठबंधन के पास अब केवल 3-6 दिन का समय बचा है, जो उम्मीदवार चयन और प्रचार की तैयारी के लिए अपर्याप्त है। इससे इलाके में उहापोह की स्थिति बन गई है। समर्थको में निराशा घर करने लगा है।​

उम्मीदवार चयन में देरी

सीट बंटवारे में देरी से उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है। जबकि, कुछ दल अपने उम्मीदवारों को सिंबल देना शुरू कर चुके हैं। जबकि, दोनो खेमा- ‘ऑल इज वेल’ का दावा करतें हैं। ऐसे में समर्थको को यह समझ नहीं आ रहा है कि क्या वास्तव में ऑल इज वेल है भी.. या नही।

प्रचार अभियान की हानि

देर से शुरू होने वाले प्रचार अभियान से राजनीतिक दलो को नुकसान हो सकता है। इस बीच एनडीए ने गृहमंत्री के शुरू होने वाले प्रचार कार्यक्रम की घोषणा कर दी है।​ जबकि, महागठबंधन अभी सीटो को लेकर उलझा हुआ है।

पिछले चुनावों का अनुभव

बिहार की राजनीतिक इतिहास में सीट बंटवारे को लेकर विवाद नया नहीं है, लेकिन इस बार की देरी विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह अधिसूचना के बाद हो रही है। 2020 के चुनाव में भी महागठबंधन में देर से सीट बंटवारा हुआ था, लेकिन तब समय अधिक था।​

अन्य राज्यों से तुलना

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो गठबंधन राजनीति में सीट बंटवारे की देरी आम है, लेकिन बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में यह देरी राजनीतिक रूप से महंगी पड़ सकती है।

सबसे अधिक नुकसान

महागठबंधन के छोटे दल: वामपंथी दलों और वीआईपी जैसी पार्टियों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। इधर, एनडीए के घटक दलों में भी निराशा का भाव हावी होने लगा है। क्योंकि, उनके कार्यकर्ता निराश हो रहे हैं और तैयारी का समय कम मिल रहा है। राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस की छवि प्रभावित हो रही है। क्योंकि, वह सीटों पर अड़ी हुई दिख रही है।​

तत्काल समाधान की आवश्यकता

महागठबंधन को अगले 24-48 घंटों में सीट बंटवारा पूरा करना होगा, वरना नामांकन प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होगी। दूसरी ओर कमोवेश यही हाल एनडीए का भी है। सीटो का बंटबारा होने के बाद भी उम्मीदवारो का चयन नहीं होना एनडीए को नुकसान कर सकता है। ​

चुनावी रणनीति पर प्रभाव

देर से होने वाली घोषणा से चुनावी रणनीति बिखर सकती है। उम्मीदवारों के पास प्रचार का समय कम होगा और मतदाता जुटाने में कठिनाई होगी।

निष्कर्ष और मुख्य संदेश

सीट बंटवारे में देरी से निकलने वाले मुख्य संदेश हैं:

  1. संगठनात्मक कमजोरी: गठबंधनो में एकजुटता की कमी स्पष्ट दिख रही है
  2. नेतृत्व संकट: स्पष्ट नेतृत्व के अभाव में निर्णय लेने में देरी हो रही है
  3. प्राथमिकताओं का अभाव: व्यक्तिगत हितों को गठबंधन के हित से ऊपर रखा जा रहा है
  4. चुनावी तैयारी की कमी: एनडीए और महागठबंधन में तैयारी का दावा अधूरी दिख रही है

यह स्थिति बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है, जहां गठबंधन की राजनीति की सफलता सिर्फ सीटों के बंटवारे पर ही नहीं बल्कि समय पर लिए गए निर्णयों पर भी निर्भर करती है।​

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