बिहार चुनाव 2025 ने इस बार खास ध्यान खींचा है, खासकर गायघाट विधानसभा क्षेत्र पर, जो बागमती और बूढ़ी गंडक नदियों से घिरा हुआ है। यहां का चुनावी परिदृश्य बहुत दिलचस्प हो गया है। चुनाव से ठीक पहले एनडीए में बगावत खुलकर सामने आई थी, जिससे इस क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। इस बार यहां सांसद वीणा देवी और एमएलसी दिनेश सिंह की बेटी कोमल सिंह ने जदयू से चुनावी मैदान में कदम रखा है, जबकि वर्तमान विधायक और राजद के प्रत्याशी निरंजन राय भी चुनावी जंग में शामिल हैं। गायघाट में राजपूत और यादवों की बड़ी आबादी है, जिसके चलते इस क्षेत्र में जनसुराज के अशोक सिंह ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करने की कोशिश की है। जदयू से निकाले गए पूर्व विधायक महेश्वर यादव और उनके पुत्र प्रभात किरण अब राजद में शामिल हो गए हैं, और इनका प्रभाव चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है।
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गायघाट: कड़ी प्रतिस्पर्धा और जातीय समीकरण
गायघाट, जो बागमती और बूढ़ी गंडक नदियों के बीच स्थित है, इस बार चुनावी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण बन गया है। यहां एनडीए में खुले तौर पर बगावत सामने आने के बाद राजनीतिक तापमान और बढ़ गया है। इस बार जदयू से कोमल सिंह, सांसद वीणा देवी और एमएलसी दिनेश सिंह की बेटी ने अपनी किस्मत आजमाई है, जो कि चुनावी मुकाबले में है। वहीं, राजद के निरंजन राय इस सीट पर मौजूदा विधायक हैं और उनका दावा मजबूत है। इस क्षेत्र में यादव और राजपूत दोनों बड़ी जातियाँ हैं, जो चुनावी गणित को प्रभावित कर सकती हैं। जनसुराज के अशोक सिंह का भी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण रोल है। उनकी कोशिश है कि वह इस क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला बनाकर जीत की संभावनाओं को अपने पक्ष में कर सकें।
गायघाट में हाल ही में हुए घटनाक्रमों को देखते हुए, कई स्थानों पर वोटों के बंटने की चर्चा जोरों पर है। जारंग चौक पर मिले गुड्डू सिंह का कहना है, “वोट कट रहा है, और इसका फायदा किसी और को मिल सकता है।” वहीं, प्लंबर मुश्ताक अहमद का कहना है, “यहां यादव भी टूट रहे हैं और अल्पसंख्यक भी।” नदी किनारे बैठे 95 वर्षीय राम विलास पासवान का मानना है कि इस बार वोट बंटे हुए हैं और यह चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
सकारात्मक और नकारात्मक बदलाव का प्रभाव
सकरा विधानसभा क्षेत्र, जो फिलहाल जदयू के अशोक चौधरी के पास है, में चुनावी हलचल लगातार बनी हुई है। इस बार उनके बेटे आदित्य कुमार चुनावी मैदान में हैं और उनके सामने कांग्रेस के उमेश राम हैं। सकरा क्षेत्र में राजपूत, सहनी और मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या है, और यह समीकरण चुनावी जंग में अहम भूमिका निभाएंगे। चुनावी दौरे के दौरान, केंद्र संचालक कौशल बताते हैं, “यहां लड़ाई सीधी है, दोनों पक्षों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है।” वहीं, सीहो चौक पर बासमती देवी का कहना है, “गांव में हम फास्ट फूड की दुकान चला रहे हैं, पैसा आ रहा है और काम भी बढ़ रहा है।”
मीनापुर: जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों की अहमियत
मीनापुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार राजद के मुन्ना यादव और जदयू के अजय कुमार के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। अजय कुमार, जो पूर्व मंत्री दिनेश कुशवाहा के बेटे हैं, को यहां अपने क्षेत्रीय प्रभाव का फायदा मिल सकता है। नरकटिया पंचायत के बुजुर्ग फिरंगी सहनी का मानना है, “यह लड़ाई सीधी है, समाज का उम्मीदवार होना मायने नहीं रखता, केवल काम और नीतियां महत्वपूर्ण हैं।” मीनापुर में स्थानीय मुद्दों जैसे पेंशन, सड़क, बिजली की सुविधा पर भी बहस हो रही है। चाय दुकानदार की बेटी बच्ची देवी का कहना है, “अगर खलिययी है तो सरीयत देना चाहिए।” यहां की जनता सड़कों और बिजली की सुविधाओं की खामियों से नाराज है, और यह मुद्दा चुनावी बहस का अहम हिस्सा बना हुआ है।
मुजफ्फरपुर: कांग्रेस की मजबूत स्थिति और नए चेहरों की चुनौती
मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र, जो उत्तर बिहार में कांग्रेस के कब्जे में है, इस बार सबसे दिलचस्प मुकाबलों में से एक है। यहां पांच बार विधायक रहे कांग्रेस के विजयेंद्र चौधरी फिर से चुनावी मैदान में हैं। भाजपा ने रंजन कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर जन सुराज के डॉक्टर एके दास और संजय केजरीवाल भी मैदान में हैं, जो चुनावी परिदृश्य को और भी दिलचस्प बना रहे हैं। मिठनपुरा चौक पर सुमित कुमार और प्रताप नारायण का कहना है कि “पीएम और योगी की सभा से सब बदल गया है। अब कोई बगावत नहीं होगी।”
बोचहां और कांटी: स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरण
बोचहां में राजद के अमर पासवान और लोजपा (आर) की बेबी कुमारी के बीच कड़ी टक्कर है। दोनों उम्मीदवार एनडीए का हिस्सा हैं और इस बार दोनों के बीच वोटों के बंटने की संभावना है। बोचहां की जनता, जो मुख्य रूप से यादव, मुस्लिम और वैश्य समाज से आती है, चुनावी जंग के प्रमुख कारक बन सकती है। कांटी में, जहां भूमिहार और मुस्लिम मतदाता प्रभावशाली हैं, जदयू के अजीत कुमार और राजद के इसराइल मंसूरी के बीच मुकाबला है। इस सीट पर बिजली और जल निकासी जैसी समस्याएं चुनावी मुद्दों के रूप में सामने आई हैं।
बरुराज और औराई: कृषि और बाढ़ की समस्याएं प्रमुख मुद्दे
बरुराज में, जो चंपारण जिले से सटा हुआ है, मोतीपुर चीनी मिल के बंद होने से स्थानीय लोग नाराज हैं। यहां भाजपा के विधायक अरुण कुमार सिंह और महागठबंधन के वीआईपी के राकेश कुमार के बीच सीधा मुकाबला देखा जा रहा है। स्थानीय समाजसेवी गोना महतो इसे अस्मिता का चुनाव मानते हैं। वहीं, औराई में, जो दशकों से बाढ़ से जूझ रहा है, यहां बागमती और लखनदेई नदियों पर पुल का निर्माण प्रमुख मुद्दा बन गया है। इस क्षेत्र में रामसूरत राय का टिकट कटने के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी रमा निषाद को उम्मीदवार बनाया है।
बिहार चुनाव 2025 में हर विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक हलचल और स्थानीय मुद्दों की खासी अहमियत है। जातीय समीकरण, विकास कार्य, और नेता की छवि इस बार चुनावी परिणामों को प्रभावित करेंगे। गायघाट, मुजफ्फरपुर, मीनापुर, और औराई जैसे क्षेत्रों में चुनावी जंग अब केवल स्थानीय मुद्दों तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर राजनीतिक भविष्य और क्षेत्रीय संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
बिहार चुनाव 2025: कौन सी सीट किसके कब्जे में
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एनडीए: 06
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महागठबंधन: 05
गायघाट: राजद, निरंजन राय
औराई: भाजपा, रामसूरत राय
मीनापुर: राजद, राजीव कुमार
बोचहां (सु.): राजद, अमर पासवान
सकरा (सु.): जदयू, अशोक कुमार चौधरी
कुढ़नी: भाजपा, केदार गुप्ता
मुजफ्फरपुर: कांग्रेस, विजयेंद्र चौधरी
कांटी: राजद, इसराइल मंसूरी
बरुराज: भाजपा, अरुण कुमार सिंह
साहेबगंज: भाजपा, राजू कुमार सिंह
पारू: भाजपा, अशोक कुमार सिंह
बिहार में इस चुनाव का परिणाम राज्य की राजनीति के भविष्य का निर्धारण करेगा, और यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसे चुनते हैं।



