मौजूदा दौर में अपराध का एक और नया चेहरा

अपराध का मतलब हत्या, डकैती, चोरी या बलात्कार ही नहीं होता हैं। बल्कि, व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को आहत करने वाला सभी कृत्य, अपराध की श्रेणी में आता है। एक कालखंड के कृत्यों को खंडित करके, दूसरे कालखंड में इरादतन प्रस्तुत करना और मौजूदा कालखंड के मूल्यों की कसौटी पर, बीते कालखंड के तथ्यों को हूबहू परखना भी एक अपराध ही तो है।

जींजों को समग्रता में नहीं समझने की विवेकशुन्यता भी इसी अपराध की श्रेणी में आता है। दुर्भावनाओं से ग्रसित होकर मूल्यहीन तथ्यों को प्रचारित करने से उत्पन्न होने वाला तनाव भी किसी जधन्य अपराध से कम नहीं हैं। दुर्भाग्य से हम में से कई लोग ऐसे कृत्यों को अंजाम देते हुए, खुद में अपराधबोध का अहसास भी महसूस नहीं करतें हैं। इससे अपराध का समाजीकरण हो जाता है और इसका सर्वाधिक लाभ, असमाजिक तत्व उठा लें जातें हैं।
कुंठा से अपराधीकरण तक
दरअसल, आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर खुद के ज्ञानी होने का स्वांग भरने वालों की बेजा हरकत से उत्पन्न कुंठा ने अपराध का समाजीकरण कर दिया है। नतीजा, हालिया वर्षो में अपराध के आंकड़ें खतरनाक रूप से विराट रूप धारण करने लगा है। यदि हम बात आंकड़ों की करें तो, भारत में प्रति पन्द्रह सेकेंड में कहीं न कहीं अपराधिक कृत्य का घटित होना भी अब किसी को चौकाता नहीं है? हालात ये हो गए है कि उन इलाको में भी अपराध पनपने लगा है, जहां पहले समाजिक सौहार्द का वातावरण होता था। अपराध और असमाजिक कृत्यों का विरोध करने वाले वर्ग को आज एक गहरे साजिश की बुनियादी पर, हासिए पर धकेल दिया गया है। नतीजा, गांव और कस्वा भी, अब इन्हीं अपराधियों की चंगूल में कराहने लगा है, या यूं कहें कि घूटन महसूस करने लगा है। इसे हमारे कालखंड की बिडंबना कह लें कि आज तथ्यों को तोड़-मरोर कर जाबांजी दिखाने वालों की फेहरिश्त लम्बी होती जा रही है। अब इस नवोदित अपराध का खामियाजा, आमलोग तो भुगतन ही रहें हैं। कथित बुद्धिजीवी भी इससे खुद को अछूता नहीं रख पा रहें हैं। इससे उत्पन्न होने वाला तनाव ही कालांतर में अपराध का रूप धारण कर लेता है।
सक्रिय है एक नया गैंग
दरअसल, तथ्यों की बाजीगरी दिखाने वालों का एक पूरा गैंग इन दिनो तेजी से सक्रिय हो गया है। ऐसे लोगो का मकसद मूल समस्या से ध्यान बाटने का होता है। यह गैंग फर्जी आंकड़ो की आर लेकर समस्या का जातिकरण करने में लगा हुआ है। चंद मिसालो की कूबत पर, पूरा चेहरा दिखाने में लगा हुआ है। ताकि, अपराध का समाजीकरण किया जा सके। इनका मकसद विकासवाद को दरकिनार करके वर्ग संघर्ष का स्वांग भरना मात्र रह गया है। इससे बचने का एक मात्रा रास्ता है कि आप खुद से तथ्यों का अध्ययन करें और किसी के बहकावे में आने से बचे। खुदसर ही तथ्यों को समग्रता में समझने की कोशिश करें। खुद में उत्पन्न होने वाले कुंठा से निकाल कर चित्त को सकारात्मकता की ओर अग्रसर करने की कोशिश करें। दोस्त को दुश्मन समझने की अज्ञानता से बचने की कोशिश करें और समाज की समरशता को नष्ट करके, उसे कुंठा की अन्तहीन दल-दल में धसने से बचाने की भी कोशिश करें।
यह अपराध नहीं तो और क्या है
दरअसल, जो लोग समाज का अपराधीकरण करने पर तुले हैं, वह नही चाहते कि हमारा आज का युवा और अर्द्ध युवा पीढ़ी राजनीति का समीकरणवादी चेहरा देखें। वह नहीं चाहते हैं कि आप अपने रहनुमाओं को आकंट भ्रष्टाचार में डूबा हुआ देखें। वह नहीं चाहतें कि आप लालफीताशाही की निरंकुश होती प्रवृत्ति को देखें। दरअसल, वह आपको वास्तविक समस्या से इतर ले जाने के मकसद से ही सक्रिय हुआ है। लिहाजा, वह आपको, अपनो से खिलाफत कराने को ही खुद की जीत समझता है। चंद मिशालो की कूबत पर पूरा तानबाना बनाने को ही जीत समझता है। दरअसल, वह आपको मानसिक तौर पर कमजोर करके आपकी सोच को खुद का गुलाम बनाने की स्वांग को ही अपना जीत समझता है। यह एक अपराध नहीं, तो और क्या है…?

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