दुनिया के सबसे प्राचीन बसे शहरों में शुमार वाराणसी एक बार फिर बाढ़ की मार झेल रहा है। आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व से भरे इस शहर में गंगा का पानी बढ़ते ही एक पुरानी धार्मिक कथा याद आने लगती है, जिसमें भगवान शिव अपनी जटाओं में गंगा को रोककर उसका प्रवाह नियंत्रित करते हैं। मान्यता है कि शिव ने गंगा को धीरे-धीरे बहने दिया ताकि वह शहर में समृद्धि लाए, तबाही नहीं। गंगा और शिव का यह रिश्ता वाराणसी की पहचान का अहम हिस्सा है।
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धार्मिक परंपराओं पर बाढ़ का असर
वाराणसी के लोग अक्सर दिन की शुरुआत बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से करते हैं। ऊंचाई पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर बाढ़ से सुरक्षित है, लेकिन गंगा जल चढ़ाने की परंपरा इस समय रुकी हुई है। 84 ऐतिहासिक घाट, जिनमें गंगा द्वार भी शामिल है, पूरी तरह जलमग्न हैं। Ganga aarti को दशाश्वमेध घाट से हटाकर ऊपरी हिस्से में करना पड़ रहा है। मोक्ष के इच्छुक लोगों के अंतिम संस्कार अब मणिकर्णिका घाट की छत पर हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री की परियोजना और गंगा-शिव का जुड़ाव
गंगा और शिव के इस आध्यात्मिक संबंध को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ₹900 करोड़ की Kashi Vishwanath Corridor परियोजना ने और मजबूत किया। यह कॉरिडोर मंदिर को गंगा से सीधे जोड़ने के लिए बनाया गया था। हालांकि बाढ़ के समय यह संपर्क अस्थायी रूप से टूट जाता है, जिससे स्पष्ट होता है कि flood management की योजना में और सुधार की जरूरत है।
अतिक्रमण और कटाव से बढ़ रहा खतरा
बाढ़ से इतर, गंगा किनारे बढ़ते अतिक्रमण और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां वाराणसी के घाटों को धीरे-धीरे बदल रही हैं। कई ऐतिहासिक घाट कटाव की चपेट में हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशासन इन समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा, जबकि बढ़ती आबादी और लगातार आने वाले श्रद्धालु शहर के बुनियादी ढांचे पर दबाव डालते हैं।
तीर्थयात्रियों और अर्थव्यवस्था पर असर
बाढ़ का असर धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। नाव चालकों, घाट किनारे दुकानदारों और शिल्पकारों की आमदनी में कमी आ गई है। धार्मिक पर्यटन से जुड़े कई कार्यक्रम रद्द या बदले जा रहे हैं। दशाश्वमेध घाट की Ganga aarti को ऊपर ले जाने से उसका पारंपरिक वातावरण भी बदल गया है।
ढांचा और सफाई व्यवस्था पर दबाव
शहर की जल निकासी और बाढ़ नियंत्रण प्रणाली बढ़ते जलस्तर के सामने कमजोर साबित हो रही है। काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास की गलियां और बाजार जलमग्न हो जाते हैं, जिससे श्रद्धालुओं की आवाजाही बाधित होती है और सफाई की समस्या भी बढ़ जाती है। प्रशासन राहत कार्य चलाता है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान की कमी स्पष्ट है।
विरासत के संरक्षण की चुनौती
हर घाट का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। बाढ़ आने पर इन घाटों से जुड़ी सदियों पुरानी परंपराएं बाधित होती हैं। मणिकर्णिका घाट पर मुक्ति संस्कार और दशाश्वमेध घाट पर शाम की Ganga aarti का खुला माहौल दोनों ही बाढ़ के समय बदल जाता है। विरासत विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बार-बार आने वाली बाढ़ और लापरवाही से घाटों की मूल संरचना को नुकसान हो रहा है।
भविष्य की राह
विशेषज्ञ मानते हैं कि वाराणसी के लिए एक समग्र नदी किनारा प्रबंधन योजना जरूरी है, जिसमें बाढ़ नियंत्रण, विरासत संरक्षण और सतत पर्यटन का संतुलन हो। इसमें निर्माण पर सख्त नियम, घाटों का नियमित रखरखाव और आधुनिक पूर्वानुमान तकनीक शामिल होनी चाहिए। तब तक, हर मानसून में यह शहर अपनी आस्था और धैर्य की परीक्षा देता रहेगा।
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