नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च अदालत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा इन दिनो सुर्खियों में है। सुर्खियां इस लिए नही की वह मृदुभाषी है। इसलिए भी नही कि उन्होंने गरीब क़ैदियों को मुफ़्त क़ानूनी सलाह दिए जाने और एफ़आईआर को 24 घंटे के भीतर वेबसाइट पर डाले जाने जैसे अहम आदेश दिए हैं।
आपको याद ही होगा कि श्री मिश्रा देश के पहले चीफ जस्टिस है, जिन्होंने सिनेमाघरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने का हुक्म दिया था। इसी प्रकार जस्टिस मिश्रा ने महाराष्ट्र के डांस बार पर लगी रोक को हटा कर भी राजनेताओं से बैर मोल लिया था। आपको याद ही होगा कि मुंबई में सीरियल बम धमाकों के सिलसिले में दिए गए उनके फ़ैसले से आतंक का कारोबार करने वाले काफी घबरा गए थे और आतंकियो ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी। आतंकियो ने जस्टिस मिश्रा के घर के पीछे के दरवाज़े पर एक चिट्ठी फेंककर धमकी दी थी कि चाहे तुम्हारे पास कितनी भी कड़ी सुरक्षा हो, हम तुम्हें ख़त्म कर देंगे। इसी धमकी के बाद जस्टिस मिश्रा को ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई गई और उन्हें बुलेटप्रूफ़ कार मुहैय्या कराई गई। उनके साथ पुलिस के गाड़ियों का एक दल भी होता है। यहां आपको जानना जरुरी है कि जस्टिस मिश्रा उस बेंच के मुख्य जज थे, जिसने 1993 के सीरियल ब्लास्ट के दोषी याक़ूब मेमन की दया याचिका ख़ारिज की थी और इसी फैसले के बाद से वे राष्ट्र विरोधी तत्वो के निशाने पर आ गये थे। हद तो ये कि जस्टिस मिश्रा देश के पहले चीफ जस्टिस बन गए, जिन पर महाभियोग चलाने के लिए सांसदो का एक बड़ा ग्रुप ने नोटिस तक दे दिया। हालांकि, उपराष्ट्रपति ने महाभियोग के नोटिस को खारिज कर दिया है।
बहरहाल, उन पर आरोप लग रहे हैं कि वे ख़ास तरह के मुक़दमों को कुछ ख़ास जजों को देते हैं, यहां तक कि ग़लत हलफ़नामे पर ज़मीन लेने के पुराने आरोप भी उन पर लगाए गयें हैं। वे भारतीय न्याय-व्यवस्था के इतिहास में पहले मुख्य न्यायधीश हैं, जिनके साथ काम करने वाले चार सीनियर जजों ने प्रेस-कॉन्फ़्रेंस करके देश की सबसे ऊंची अदालत के कामकाज पर सवाल उठाए थे।
दरअसल, कांग्रेस और छह अन्य दल जस्टिस लोया की मौत की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग को नकारने की वजह से मुख्य न्यायाधीश से नाराज़ हैं। नाराजगी का एक और बड़ा कारण अयोध्या विवाद से जुड़ा है। जस्टिस मिश्रा ने अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद के मालिकाना हक़ के मुकदमे की नियमित सुनवाई का आदेश देकर राजनीतिक हलको में खलबली मचा दी है।
भारत के पूर्व क़ानून मंत्री और मशहूर वकील शांति भूषण ने तो एक लेख लिखकर जस्टिस दीपक मिश्रा को मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने की नैतिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। शांति भूषण ने अपने लेख में ज़मीन आवंटन और दूसरे मामलों का ज़िक्र करते हुए अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल के सुसाइड नोट का भी ज़िक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट में जारी रिश्वतख़ोरी की बात कही गई थी।
स्मरण रहें कि चीफ़ जस्टिस श्री मिश्रा ओडिशा के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके दादा पंडित गोदाबरिश मिश्रा ओडिशा के नामी कवि थे और स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे थे। इसी प्रकार चीफ़ जस्टिस मिश्रा के पिता रघुनाथ मिश्रा कांग्रेस पार्टी के सक्रिय नेता थे और बानपुर विधानसभा क्षेत्र से कॉग्रेस की टिकट पर दो बार विधायक भी रह चुके हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके रंगनाथ मिश्रा उनके सगे चाचा थे और उनके दूसरे चाचा लोकनाथ मिश्रा 1990 के दशक में असम के राज्यपाल रह चुके है। अंत में देश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल इतना नाटकीय हो जाएगा, शायद उन्होंने भी नही सोचा होगा।
This post was published on अप्रैल 29, 2018 20:50
या आप जानते हैं कि गिद्ध क्यों विलुप्त हो गए? और इसका मानव जीवन पर… Read More
भारत और पाकिस्तान के 1947 के बंटवारे में केवल जमीन ही नहीं, बल्कि घोड़ागाड़ी, बैंड-बाजा,… Read More
7 दिसंबर 1941 का पर्ल हार्बर हमला केवल इतिहास का एक हिस्सा नहीं है, यह… Read More
सफेद बर्फ की चादर ओढ़े लद्दाख न केवल अपनी नैसर्गिक सुंदरता बल्कि इतिहास और संस्कृति… Read More
आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया और चीन ने साम्यवाद का पथ चुना।… Read More
मौर्य साम्राज्य के पतन की कहानी, सम्राट अशोक के धम्म नीति से शुरू होकर सम्राट… Read More