महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा में बड़ी कारवाई करते हुए पांच लोगो को गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तार होने वालों पर प्रतिबंधित संगठन माओवादियों से संपर्क रखने का आरोप है। पुणे पुलिस ने कई राज्यों में एक साथ छापामारी करके अलग- अलग ठिकानो पर रह रहे पांचों संदिग्ध को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार होने वालों में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण परेरा, गौतम नवलखा व वर्णन गोन्साल्वेज शामिल है।
31 दिसम्बर को भड़की थी हिंसा
आपको याद ही होगा वर्ष 2017 के 31 दिसंबर को पुणे में एल्गार परिषद के कार्यक्रम के बाद वर्ष 2018 के 1 जनवरी को महाराष्ट्र के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़क गई थी। स्मरण रहें कि वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव भीमा की लड़ाई हुई थी। दरअसल, यह लड़ाई अंग्रेज और पेशबा के बीच हुई थी। किंतु, अंग्रेजो की ओर दलितो ने युद्ध में हिस्सा लिया था। यहां यह भी बताना जरुरी है कि इस लड़ाई में पेशबा पराजित हुए थे और अंग्रेजो ने महराष्ट्र पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। दलित समुदाय के लोग इसी लड़ाई की जीत की खुशी में प्रत्येक साल विजय उत्सव मनाते है। किंतु, इस वर्ष एल्गार परिषद ने युद्ध के 200 साल पूरे होने के मौके पर पिछले साल 31 दिसंबर को विजय दिवस मनाया था और इसी दौरान भड़काउ भाषण देने के बाद कोरेगांव भीभा में हिंसा भड़क गई थी।
माओवादियों से जुड़े है एल्गार परिषद के तार
बतातें चलें कि कार्यक्रम का आयोजन करने वाली एल्गार परिषद का माओवादी कनेक्शन उजागर होते ही पुलिस चौकन्ना हो गई। महराष्ट्र के विश्रामबाग थाना में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक कार्यक्रम में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण करने के बाद कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा भड़क गई थी। इसके बाद माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में इसी वर्ष जून में पांच लोगों की गिरफ्तारी हुयी थी। इसमें दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले को मुंबई में उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। जबकि, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता महेश राऊत और शोमा सेन को नागपुर से और रोना विल्सन को दिल्ली में मुनिरका स्थित उनके फ्लैट से गिरफ्तार किया गया था।
एल्गार परिषद के खिलाफ पुलिस को मिला पुख्ता सबूत
महाराष्ट्र पुलिस की माने तो एल्गार परिषद का प्रतिबंधित संगठन माओवादी के सदस्यों से संबंध रखने के कई पुख्ता सबूत मिले है। जिसके बाद पुलिस ने छत्तीसगढ़, मुंबई और हैदराबाद में छापे मारे और पांचों लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस के अधिकारी अब इन लोगो के वित्तीय लेन-देन व संवाद के उनके तरीके की भी छानबीन कर रही हैं। पुलिस तकनीकी साक्ष्य जुटाने की भी कोशिश कर रही हैं। पुणे पुलिस के अधिकारी की माने तो भीमा कोरेगांव हिंसा से माओवादियों के तार जुड़े होने का पता नहीं चला है। स्मरण रहें कि पुणे में एल्गार परिषद के आयोजन में फासीवाद विरोधी मोर्चा की भूमिका भी उजागर हुई है। बतातें चलें कि फांसीवाद विरोधी मोर्चा दरअसल, माओवादियों की फ्रंट आर्गेनाइजेशन है।
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