राजकिशोर प्रसाद
आधुनिक शिक्षा स्वत्रंत्रता आंदोलन की चेतना महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम तथा विभिन्न सामाजिक एव सांस्कृतिक संगठनो के लगातार प्रयासों के कारण समता के लिये महिलाओ को संघर्ष का एक आधार प्राप्त हुआ। अपने देश में बहुल समाज की भरमार है। जिसके सामाजिक संरचना में बहुल संस्कृति के तत्व मौजूद है। विभिन्न जाति प्रजाति धर्म तथा क्षेत्र के लोग भारत में रहते है। फलतः महिला समता के लिये संघर्ष अधिक धारदार नही हो सका।
भारत में मुस्लिम समाज की एक विशिष्ट पहचान एंव संस्कृति है। इसी तरह अन्य धार्मिक समूहों का भी अपना अलग अलग सरोकार, संस्कृति तथा पहचान है। इन विशिष्टताओं के कारण महिलाओ के समता संघर्ष की दिशा सुसंगठित नही हुई। सांस्कृतिक मानसिकता पितृसत्तात्मक के कारण पैतृक सम्पति में महिलाओ की उचित भागीदारी के सवाल पर समाज में स्पष्टता एव एक सीमा तक ईमानदारी का आभाव है। ग्रामीण क्षेत्रो में अभी भी समता के लिये महिलाओ में जुझारू संघर्ष का आभाव है।
जाति पंचायत नातेदारी रिश्तो के नियमो का उलंघन समान्यतः असम्भव है। जो महिलाओ ले लिये एक लक्षण रेखा है। उन्हें इस लक्षण रेखा की याद बार बार दिलाई जाती है। जिससे अशिक्षित, अर्थहीन, धार्मिक मतवाद पुरानी परम्पराओं में उलझी महिलाओ को कोई स्पष्ट मंजिल दिखाई नही पड़ता। इन परम्पराओ और वर्ग भेद को खत्म किये बगैर महिलाओ के समता संघर्ष न सबल होगी और न सफल।
This post was published on अप्रैल 7, 2017 19:49
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