चीन ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि दलाई लामा के चयन का अधिकार सिर्फ उसके पास है। चीन के अनुसार, यह अधिकार एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत 1793 में किंग राजवंश के समय हुई थी। इस परंपरा के अनुसार, दलाई लामा के संभावित नामों को एक सोने के कलश से निकाला जाता है। चीन का कहना है कि दलाई लामा का चयन हमेशा से इस प्रक्रिया के तहत ही किया गया है, और यही प्रक्रिया आज भी लागू है।
यह बयान चीन ने हाल ही में उस समय दिया जब दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर सवाल उठने लगे हैं। 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, जो अब 80 वर्ष से अधिक आयु के हो चुके हैं, अपनी उम्र और स्वास्थ्य कारणों से जल्द ही अपने उत्तराधिकारी के चयन पर विचार कर सकते हैं। इस मुद्दे ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर ध्यान आकर्षित किया है, विशेष रूप से भारत और अमेरिका जैसे देशों में, जो तिब्बत की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं।
दलाई लामा का चयन: ऐतिहासिक परंपरा और प्रक्रिया
दलाई लामा का चयन एक बहुत ही पवित्र और जटिल प्रक्रिया है, जो तिब्बतियों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस प्रक्रिया में, दलाई लामा को अपने पिछले अवतार के रूप में माना जाता है और उनका पुनर्जन्म एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से तय किया जाता है। इस प्रक्रिया में, तिब्बती बौद्ध समुदाय के धार्मिक गुरु और प्रमुख लामा एक विशेष सोने के कलश से संभावित नामों को निकालते हैं।
चीन का दावा है कि इस परंपरा की शुरुआत 1793 में हुई थी, जब किंग राजवंश के दौरान दलाई लामा के चयन के लिए यह विधि स्थापित की गई थी। इसके बाद, तिब्बत के धार्मिक प्रमुखों द्वारा इस प्रक्रिया को अपनाया गया और इसे पारदर्शिता और न्याय के रूप में देखा गया।
यह प्रक्रिया तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि वे मानते हैं कि दलाई लामा उनके धर्म के आध्यात्मिक नेता हैं और उनके उत्तराधिकारी का चयन धार्मिक विश्वास और परंपराओं के आधार पर किया जाना चाहिए।
चीन की भूमिका: तिब्बत पर नियंत्रण और धार्मिक हस्तक्षेप
चीन का यह दावा कि दलाई लामा के चयन का अधिकार उसके पास है, एक राजनीतिक और धार्मिक विवाद बन चुका है। चीन ने 1950 के दशक में तिब्बत पर अपना कब्जा कर लिया था, और उसके बाद से तिब्बत के धार्मिक मामलों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश की है। इस बीच, चीन ने दलाई लामा के राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव को चुनौती दी है, और उसकी सरकार इस बात पर जोर देती है कि भविष्य में दलाई लामा का उत्तराधिकारी उसे चुनने का अधिकार है।
चीन का कहना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म उसकी राष्ट्रीय नीति के तहत होना चाहिए और इसे चीन के धार्मिक कानूनों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। यह स्थिति तिब्बत के निर्वासित समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए लड़ रहे हैं।
दलाई लामा ने हमेशा यह कहा है कि उनका पुनर्जन्म कहीं भी हो सकता है और वह तिब्बत के बाहर भी हो सकते हैं। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि उनका पुनर्जन्म किसी राजनीतिक दबाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए। यह बयान चीन के दृष्टिकोण से बिल्कुल विपरीत है, जो भविष्य में एक तिब्बत-समर्थक दलाई लामा को सत्ता में नहीं देखना चाहता।
भारत और अमेरिका की भूमिका: दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर समर्थन
भारत और अमेरिका जैसे देशों ने हमेशा तिब्बत की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन पर चीन का हस्तक्षेप न करने की अपील की है। भारत, जहां दलाई लामा लंबे समय से निर्वासन में रह रहे हैं, ने यह स्पष्ट किया है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म तिब्बतियों की आस्था और परंपरा के अनुसार होना चाहिए।
भारत सरकार का मानना है कि यह एक धार्मिक मुद्दा है और इसे चीन द्वारा राजनीतिक रूप से नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, अमेरिका ने भी तिब्बत की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए यह कहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन पूरी तरह से तिब्बतियों की आस्था और संस्कृति पर आधारित होना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस मुद्दे को लेकर एक समान समर्थन देखा गया है, जिसमें चीन के धार्मिक दखल के खिलाफ आवाज उठाई गई है। यह एक आध्यात्मिक और राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, जो केवल तिब्बत या चीन तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रहा है।
तिब्बती बौद्ध धर्म: दलाई लामा का प्रभाव और भविष्य
दलाई लामा का प्रभाव केवल तिब्बत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में है। वह शांति, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। उनके द्वारा किए गए प्रयासों ने उन्हें वैश्विक सम्मान और प्रेरणा का स्रोत बना दिया है।
दलाई लामा का उत्तराधिकारी तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि वह धर्म के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा। इस समय, दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर कई तरह के धार्मिक प्रश्न उठ रहे हैं, जिनमें यह प्रमुख सवाल है कि भविष्य में दलाई लामा का पुनर्जन्म कैसे और कहां होगा।
दलाई लामा ने अपनी उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कहा है कि उनके पुनर्जन्म का निर्णय तिब्बतियों और धार्मिक गुरु करेंगे, और यह कोई राजनीतिक फैसला नहीं हो सकता।
चीन और तिब्बत के बीच चल रहे विवाद का केंद्र दलाई लामा का उत्तराधिकारी बन चुका है। चीन का यह दावा कि वह ही दलाई लामा के चयन का अधिकार रखता है, तिब्बती समुदाय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक गंभीर चर्चा का विषय बन चुका है।
हालांकि, दलाई लामा के अनुयायी और दुनिया भर के देशों का यह मानना है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म का चयन धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में होना चाहिए, न कि राजनीतिक प्रभाव के तहत। भविष्य में यह देखना होगा कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी किस प्रकार और किस प्रक्रिया से चुना जाता है और क्या चीन अपनी राजनीतिक ताकत के जरिए इसमें हस्तक्षेप करता है।
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