अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर चहुओर महिलाओ की बातें कही और सुनी जा रही है। मौजूद दौर में महिलाएं सभी क्षेत्रो में अपनी मौजूदगी दर्ज कर रही हैं। जमीन से लेकर आसमान तक और अंतरिक्ष में भी उनके कदमों की छाप मौजूद है। जिस तरह से उनका कद बढ़ा है, तो अब वे अपने हक और उससे जुड़े कानूनों के बारे में भी जानना चाती हैं। लिहाजा, इस रिपोर्ट में महिला अधिकार को जानिए।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बलात्कार की शिकार महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवाती है, उस वक्त वहां किसी और व्यक्ति को उपस्थित होने की मनाही है। वैकल्पिक रूप से वह एक ऐसे सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी या महिला कांस्टेबल के साथ बयान रिकॉर्ड कर सकती है। पुलिस अधिकारियों के लिए एक महिला की निजता को बनाए रखना जरूरी है और मीडिया को भी पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने पर रोक है।
बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना के काफी समय बीत जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के लिए डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।
प्रत्येक ऑफिस में एक यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना नियोक्ता का कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा-निर्देश के अनुसार यह भी जरूरी है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर उसमें पचास फीसदी महिलाएं ही शामिल हों। साथ ही, समिति के सदस्यों में से एक महिला कल्याण समूह से भी हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप एक स्थायी कर्मचारी हैं या नहीं।
एक महिला को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेष अधिकार है। यदि किसी कारणवश वह पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है, तो वह एक पंजीकृत डाक के माध्यम से लिखित शिकायत भेज सकती है, जो पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित की गई हो। इसके अलावा, एक बलात्कार पीड़िता जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता है कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता।
शादी नहीं टूटनी चाहिए, यह विचार भारतीय महिलाओं के जेहन में इतना जड़ें जमा चुका है कि वे अकसर बिना आवाज उठाए घरेलू हिंसा झेलती रहती हैं। आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है। इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है। इस धारा के तहत एक बार इस पर दर्ज की गई एफआईआर इसे गैर-जमानती अपराध बना देती है। शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार धारा 498-एक के तहत आता है। आईपीसी की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है।
सहमति के बिना किसी भी महिला की तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। किसी भी माध्यम से इंटरनेट या व्हाट्सएप पर साझा की गई आपत्तिजनक या अश्लील तस्वीरें या वीडियोज किसी भी महिला के लिए बुरे सपने से कम नहीं है। वेबसाइट कानून के अधीन हैं और इनका अनुपालन करने के लिए बाध्य भी। आप न्यायालय से एक इंजेक्शन आदेश प्राप्त करने का विकल्प भी चुन सकती हैं, ताकि आगे आपकी तस्वीरों और वीडियो को प्रकाशित न किया जाए। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती वसेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है। भू्रण हत्या को रोकने में यह कानून उपयोगी है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। इस संशोधन के तहत बेटियों को वही अधिकार दिए गए, जो पहले बेटों तक सीमित थे। हालांकि बेटियों को इस संशोधन का लाभ तभी मिलेगा, जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो।
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