राजकुमार सहनी
अक्सर कांग्रेस के नेताओं और उसके चाटुकार बुद्धिजीवी तत्वों को कहते देखा होगा की, नेहरू ने आज़ादी के लिए संघर्ष किया। गाँधी ने बिना लाठी चलाये ही भारत को आज़ादी दिला दी। वे लोग उस समय क्या कर रहे थे यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। जहाँ एक तरफ देश में आजादी के दीवानों को लगातार फाँसी हो रही थी। उस समय एक नेता अपना राजनितिक समीकरण साध रहा था तो एक देशभक्त एक धर्म विशेष के लोगों को फायदा पहुचां कर पता नहीं क्या साबित करने में मशगूल था। वही दूसरी तरफ मंगल पांडे फाँसी, तात्या टोपे फाँसी, रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज सेना ने घेर कर मारा, भगत सिंह फाँसी, सुखदेव फाँसी, राजगुरु फाँसी, चंद्रशेखर आजाद एनकाउंटर या आत्महत्या, अंग्रेज पुलिस द्वारा, भगवती चरण वोहरा बम विस्फोट में मृत्यु, रामप्रसाद बिस्मिल फाँसी, अशफाकउल्लाह खान फाँसी, रोशन सिंह फाँसी, लाला लाजपत राय लाठीचार्ज में मृत्यु, वीर सावरकर कालापानी की सजा, चाफेकर बंधू (3 भाई) फाँसी, मास्टर सूर्यसेन फाँसी के तख्ते पर झुल रहे थे।
ये तो कुछ ही नाम है। जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम और इस देस की आजादी में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया कई वीर ऐसे है है हम जिनका नाम तक नहीं जानते। इसमें कोई कांग्रेस का कोई नेता है या नहीं है? क्योकि, कांग्रेस केवल सत्ता चाहती थी, तभी तो इन कांग्रेसी गद्दारों के समूह को इकट्ठा कर एक अंग्रेज जिसका नाम “ए ओ ह्यूम” था उसने कांग्रेस नाम की इस पार्टी की स्थापना 1885 में की थी। क्योकि, अंग्रेजो को इस देश में शासन करने के लिए इसी देश के उन लोगो की जरुरत थी, जो उनके कहे अनुसार चले और बदले में इन चाटुकारो को राजपाट की रोटी के टुकड़े फेंक दिए गये। नेहरू के रूप में इन्हें ऐसे लोग मिल भी गए। ये इस देश का दुर्भाग्य है की, ऐसे लोगो ने देश पर शासन किया। इस देश के टुकड़े किये, कश्मीर जैसा नासूर दिया, जातिवाद का जहर घोला, देश को घटिया सौगात देकर इस सामाजिक ढांचे को ध्वस्त किया, घोटाले कर देश को मुगलो ,अंग्रेजो के तरीके से ही लूटा। आज़ादी दिलाने के लिए संघर्ष किसी और ने किया और प्रधानमंत्री बन गया कोई और।