बेटियो को “जीवनदान” दे रही है सादिया और आफरीन

​मीनापुर की “झांसी की रानी” पर नाज है समाज को/ 2012 से दोनो बहने 350 महिलाओ की कोख को कर चुकी है आबाद/ नेउरा की दो बेटिया भ्रूण हत्या के खिलाफ समाज को कर रही है जागरूक/ पटना मे मिल चुका है झांसी की रानी विरता पुरूस्कार

संतोष कुमार गुप्ता

मीनापुर। “मासूम सी कली है खिलने ना पा रही है, पैदा नही हुइ है दुनिया से जा रही है” । यह गीत मीनापुर के गलियो मे सुनाई दे तो जरूर यह आवाज सादिया परवीन और आफरीन खातून की है। नेउरा बाजार से सटे खानेजादपुर गांव के मो तस्लीम की दोनो बेटिया गांव ही नही देश के कोने कोने मे “सेव गर्ल” के लिए नजीर बन गयी है। दोनो बहनो के भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान से मुजफ्फरपुर जिले का

लिंगानुपात सुधर कर 1059 हो गया है। सादिया और आफरीन कोख मे पल रहे बच्चो को नया जीवन दे रही है। गरीबी से जूझ रहे  मो तस्लीम की दोनो बेटियो ने इस अभियान से समाज को नयी दिशा दी है। वर्ष-2012 से पहले पिता तस्लीम की कुछ कहानियो ने दोनो बेटियो को झकझोर कर रख दिया था। पिता ने बताया था कि अब भी उनके समाज मे कैसे बेटियो को नीच दृष्टी से देखा जाता है। कई घरो के बारे मे उन्होने बताया कि वहां बेटी को दुनिया मे आने से पहले ही कोख मे मार दिया जाता था। बेटियो को अच्छी शिक्षा नही दिया जाता था। वर्ष 2012 मे दोनो बहने अपने मौसी के घर जमालाबाद गयी थी। समीप के घर मे ही एक महिला तीन से चार माह की गर्भवती थी। उसको कई बेटी पहले से था। आब्र्सन कराने की चुपके से तैयारी चल रही थी। जब दोनो बहनो को पता चला तो वह उसके यहां धमक गयी। उसने उस महिला को काफी समझाया। उसने महिला को यह कविता “औलाद खुदा की दी हुई अमानत है,जिसको जी ला देकर रौशन नही किया तो इसकी जिम्मेदार आप खुद है” सुनाकर हैरान कर दिया। इसके बाद उस महिला ने बच्चे को सुरक्षित जन्म दिया। गांव से निकल कर शहर के पिछड़ा वर्ग के लिए बने कन्या उच्च विधालय मे दोनो  दी गयी। उस पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाया गया। इसके बाद से दोनो बहनो ने मुड़ कर पीछे नही देखा। बेटी बचाओ-बेटी पढाओ के नारे के साथ साथ दोनो बहने भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान मे उतर गयी । दोनो बहनो की इस अभियान मे उसके अब्बुजान बखूबी साथ निभा रहे है। दोनो का कहना है कि जब बेटी बचेगी तब ही वह पढेगी। शुरूआती दौर मे उसने नेउरा,जमालाबाद,दाउदछपड़ा,रामसहाय छपड़ा सहित दर्जनो गांवो मे महिलाओ के बीच अभियान चलाया। इसके लिए दो दर्जन गीत व बीस कविता को खुद तैयार किया। सदाबहार नगमो की धुन पर महिलाओ को बखूबी समझाया। इसके लिए दोनो बहनो ने कुरान शरीफ,मनु स्मृति व अग्नी पुराण का अध्ययन भी किया है। वह महिलाओ को बताती है कि किसी भी ग्रंथ मे बेटियो को मारने का हक नही दिया गया है। दोनो ने हरियाणा मे अभियान चलाकर गुजर्रो को भी जागरूक किया। वहां अब भी लिंगानुपात बिगड़ा हुआ है। वावजूद वहां नारी को देवी समझा जाता है। सादिया ने इस अभियान को शुरू करने के लिए सिलाई बुनाई का काम घर पर शुरू कर दी। वह अन्य महिलाओ को भी ट्रेनिंग देकर स्वरोजगार से जोड़ने लगी। अभियान व घर चलाने के लिए उसको सिलाई से पैसे आने लगे। वह पढाई भी जारी रखा था। टीइटी करने के बाद सादिया परवीन प्राथमिक विधालय रामसहाय छपड़ा मे टीचर बन गयी है। छोटी बहन आफरीन खातून मैट्रीक टॉपर करने के बाद बीए पार्ट टू मे पढ रही है। वावजूद दोनो बहनो का अभियान जारी है। दोनो बहनो को मानव डेवलपमेंट फाउंडेशन से भी जोड़ दिया गया है। पिछले साल महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र मे मिसाल पेश करने वाली दोनो बहनो को सुशील मोदी व मंगल पांडे ने पटना के एसके मेमोरियल हॉल मे सम्मानित किया था। पिछले महिने दोनो को विधापति भवन पटना मे झांसी की रानी वीरता पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। दोनो बहने कहते है कि अल्ट्रासाउंड का बेजा इस्तेमाल बंद हो। इस पर सख्त कानून बने। बेटा बेटी मे भेदभाव नही हो। दोनो बहनो ने अब तक गर्भ मे पल रहे करीब 350 भ्रूण को जमीन पर लाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

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