हिमालय पर्वत माला की सबसे उंची चोटी है माउंट एवरेस्ट। इस नाम को लेकर एक बड़ा रहस्य है, जो हमसे छिपाया गया। बतादें कि दुनिया के कई देशो में माउंट एवरेस्ट को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। आपको जान कर हैरानी होगी कि हमारे पड़ोसी देश नेपाल में माउंट एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से जाना जाता है। वहीं, तिब्बत में हिमालय के इस चोटी को चोमो लुंगमा के नाम से जाना जाता है। भारत के प्रचीन ग्रंथो में इसको देवगिरि पर्वत कहा गया। पश्चिम में इसको पीक फिप्टिन के नाम से जाना जाता था। अब सवाल उठता है कि इस पर्वत शिखर का नाम माउंट एवरेस्ट कैसे हो गया?
KKN न्यूज ब्यूरो। ब्रिटिश इंडिया की गुलामी से पहले भारत में हिमालय के इस पर्वत शिखर को देवगिरि पर्वत के नाम से जाना जाता था। जबकि, पश्चिम के लोग इसको पीक फिप्टिन के नाम से जानते थे। नेपाल में माउंट एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से जाना जाता है। वहीं, तिब्बत में हिमालय के इस चोटी को चोमो लुंगमा के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश शासन काल के दौरान हिमालय के इस पर्वत चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया गया। आज हम इसको माउंट एवरेस्ट के नाम से जानते थ। यह जानकारी बहुत ही दिलचस्प है।
बात वर्ष 1830 की है। वह जून का महीना था। एक अंग्रेज अधिकारी जिनका नाम जॉर्ज एवरेस्ट था। वह सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बन कर भारत आया। जॉर्ज एवरेस्ट ट्रिकोणमेट्री का जानकार था। वह हिमालय के पीक फिप्टिन की उंचाई का पता लगाना चाहता था। इसके लिए भारत के देहरादून के सर्वे ऑफिस को चूना गया। उनदिनो देहरादून में गणक का एक पद खाली था। भारत आते ही र्जार्ज एवरेस्ट ने इस पद पर किसी जानकार को नियुक्त करने का आदेश दे दिया। सर्वे ऑफ इंडिया के ऑफिस में उनदिनो जॉन टाइटलर नाम का एक अंग्रेज अधिकारी हुआ करता था। जॉर्ज एवरेस्ट ने जॉन टाइटलर को अपना सलाहाकार बनाया और देहरादून के ऑफिस में गणक की बहाली के लिए स्फेरिकल ट्रिकोणमेट्री के किसी जानकार को नियुक्त करने का आदेश दे दिया।
जॉन टाइटलर ने अपने मातहत के साथ मिल कर खोजबीन शुरू की। इस दौरान उनकी मुलाकात बंगाल के राधानाथ सिकदर से हो गई। राधानाथ सिकदर को ट्रिकोणमेट्री में महारथ हासिल था। जॉर्ज एवरेस्ट ने 19 दिसम्बर 1831 को राघानाथ सिकदर को देहरादून में पदस्थापित कर दिया। इस पद के लिए राधानाथ सिकदर को उनदिनो 40 रुपये की तनख्वाह पर रखा गया था। दिलचस्प बात ये है कि सिकदर को कम्प्यूटर के पद पर नियुक्त किया गया था। यह बात तब की है, जब कम्प्यूटर का आविष्कार नहीं हुआ था। ऐसे में तेज गणना करने वाले इंसान को ही कम्प्यूटर कहा जाता था।
काम शुरू हुआ और लम्बा चला। हिमालय की सबसे उंची चोटी की उंचाई मापने का काम शुरू हो चुका था। इस बीच जॉर्ज एवरेस्ट रिटायर हो गए और उनकी जगह पर सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया के पद पर एन्ड्रू स्कॉटवा को नियुक्त कर दिया गया। यहां आपको जान लेना जरुरी है कि जॉर्ज एवरेस्ट और स्कॉटवा के बीच गुरू-शिष्य का रिश्ता हुआ करता था। इधर, राधानाथ सिकदर अपने काम में लगे थे और उनके काम से खुश होकर स्कॉटवा ने वर्ष 1849 में राधानाथ सिकदर को चीफ कम्प्यूटर बना दिया। उनदिनो राधानाथ सिकदर पीक फिप्टिन की उचांई मापने में जुटे थे। वर्तमान के माउंट एवरेस्ट को उनदिनो अंग्रेजो ने पीक फिप्टिन का सिम्बोलिक नाम दिया था। स्मरण रहें कि उनदिनो दुनिया में कंचजंघा पर्वत चोटी को सबसे उंचा चोटी माना जाता था।
राधानाथ सिकदर ने अपनी काबिलियत और गणना की जोर पर करीब 800 मीटर दूर से थियोडोलाइट मशीन लगाकर वर्ष 1852 में ही पीक फिप्टिन को माप लिया था। सिकदर ने अपना रिपोर्ट स्कॉटवा को सौप दिया। हालांकि, स्कॉटवा ने इसकी सार्वजनिक घोषणा करने में चार साल की देरी कर दी। वर्ष 1856 में इसकी सार्वजनिक घोषणा की गई। तब इसकी उचांई 29 हजार 2 फीट बताई गई थी। यानी 8 हजार 840 मीटर। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 सेंटी. मीटर. के हिसाब से बढ़ रही है। इसी के साथ स्कॉटवा ने पीक फिप्टिन का नाम बदल दिया। स्कॉटवा ने अपने गुरु जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर इसका नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया। तब से आज तक लोग हिमालय के इस चोटी को माउंट एवरेस्ट के नाम से जानते है।
सच्चाई यह है कि इसकी उंचाई मापने में जॉर्ज एवरेस्ट की कोई भूमिका नही थी और इसका संपूर्ण श्रेय राधानाथ सिकदर को मिलना चाहिए था। पर, गुलामी की वजह से ऐसा नही हो सका। इस तरह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को मापनेवाले राधानाथ सिकदर को इतिहास में हासिए पर धकेल दिया गया। कायदे से जिस चोटी का नाम माउंट सिकदर होना चाहिए था। उसको माउंट एवरेस्ट बना दिया गया। कहतें है कि नेपाल जब इसको सागरमाथा कह सकता है। तिब्बत के लोग इसको चोमो लुंगमा कह सकते है। तो हम भारत के लोग इसको माउंट सिकदर क्यों नहीं कह सकते?
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