ध्वनि प्रदूषण
तेज आवाज का मानव जीवन के अतिरिक्त पालतु जानवर और पेंड़ पौधो पर भी असर पड़ रहा है। लम्बे समय तक तेज आवाज के बीच रहने से मनुष्य का रक्तचाप यानी ब्लडप्रेसर अनियंत्रित हो सकता है। एक बार ब्लडप्रेसर की चपेट में आ गए तो कालांतर में ब्रेन हैम्ब्रेज, हर्ट अटैक और पारालाइसिस यानी लकबा मारने का खतरा रहता है। लम्बे समय तक तेज आवाज में रहने वालो के नपुंसक होने और मेमोरी लॉस यानी यादाश्त के कमजोर होने का खतरा भी रहता है। चूंकी यह सभी कुछ बहुत ही धीरे-धीरे होता है। लिहजा आम इंसान तेज आवाज से होने वाली खतरो को समय रहते पहचान ही नहीं पाता और चुपचाप इस तेज आवाज को सहन कर लेता है।
दरअसल, तेज ध्वनि के कारण हमारी धमनियां संकुचित हो जाती है। इससे रक्त में प्रवाहित होने वाली एड्रीशन हार्मोन का शरीर में सम्यक वितरण नहीं होता है। नतीजा, शरीर में थकाबट और स्वभाव में चिरचिरापन उत्पन्न होने लगता है। आगे चल कर यह समस्या ब्लड प्रेसर का रुप धारण कर सकता है। हममें से बहुत ही कम लोग जानतें हैं कि अत्यधिक शोर के कारण हृदय, मस्तिष्क, किडनी एवं यकृत को काफी नुकसान होता है। मनुष्य में भावनात्मक विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं। कार्य करने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी होने लगता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मनुष्य का शरीर अधिकतम 80 डेसिवल के तरंगो को झेल सकता है। जबकि, 100 डेसेवल से अधिक की ध्वनि तरंगो के बीच रहने वालों में बहरा होने या कम सुनने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
तेज आवाज के बीच सोने की कोशिश करने वाले अक्सर गहरी नींद नहीं ले पाते है। हालिया शोध से पता चला है कि अधिक शोर में लम्बे समय तक सोने की कोशिश करने वालो के शरीर में पेप्टिक अल्सर बन सकता है। इससे कम उम्र के बच्चो में नपुंसक होने का खतरा रहता है। आपको जान कर हैरानी होगी कि पिछले एक दशक के भीतर भारत में नपुंसक लोगो की तादात 25 फीसदी से बढ़ कर 35 फीसदी हो गई है। इसके कई कारण है। पर, इसमें से सबसे बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण यानी तेज आवाज को माना जा रहा है। अधिक शोर या तेज आवाज का असर गर्भ में पल रहे शिशु को भी प्रभावित करता है। गर्भश्त शीशू में जन्मजात बहरापन होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि गर्भवती स्त्री लम्बे समय तक तेज आवाज की चपेट में आ गई। तो शीशु पर इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है।
हर्ड अटैक और ब्लड प्रेसर के रोगियों के लिए यह अवस्था अत्यधिक खतरनाक माना गया है। यानी जो पहले से हर्डअटैट या बीपी की चपेट में है। उनके लिए तेज आवाज जान लेवा हो सकता है। मेडिकल साइंस की माने तो अधिक शोर की वजह से मनुष्य में ईओ सिनोफीलिया, हायपर ग्लाइसेमिया और हायपो क्लेमिया आदि गंभीर रोग हो सकता है। दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर होने का खतरा रहता है। इससे मष्तिस्क में कई प्रकार की विकृतियां उत्पन्न हो जाती है। कुल मिला कर अत्यधिक शोर को नजरअंदाज करना जानलेवा हो सकता है।
मनुष्य की आधुनिक जीवनशैली की वजह से ध्वनि प्रदूषण घातक स्तर को पार करने लगा है। भीड़-भाड़ वाले शहर में परिवहन के नाम पर चलने वाली मोटर गाड़ियां और तेज बजने वाली हॉरन यानी लाउडस्पीकर या डीजे ध्वनि प्रदूषण की बड़ी वजह बन गई है। धार्मिक और समाजिक आयोजन के साथ-साथ, मनोरंजन के नाम पर गांव में भी लाउडस्पीकर और डिजे का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। लिहाजा, आधुनिक दौर में गांव, ध्वनि प्रदूषण की जबरदस्त चपेट में है। बिडम्बना देखिए, कुछ ही साल पहले तक लोग शांति की तलाश में गांव आते थे। अनजाने में ही सही पर तेज ध्वनि के बीच रहने वाला समाज आज बीमार होने की ओर बढ़ चला है। परीक्षा या किसी कम्पटिशन की तैयारी करने वाले छात्र- छात्राएं तेज आवाज के बीच ठीक से पढ़ाई नहीं कर पातें हैं और उनका भविष्य दाव पर होता है।
इसका खतरनाक पहलू ये है कि अधिकांश लोगो को तेज आवाज से होने वाली परेसानियों के संबंध में ठीक से जानकारी नहीं है। लोग तेज आवाज को हल्के में लेतें हैं। तेज आवाज को बेहद ही खामोशी के साथ धार्मिक आयोजन की आर में सहन कर लिया जाता हैं। कई बार आपने महसूस किया होगा कि तेज आवाज की वजह से आप किसी से बात नहीं कर सके और फोन पर जरुरी कॉल छूट गया। इससे कई बार बड़ा नुकसान हो जाता है। समाजिक आयोजन के दौरान तेज आवाज की वजह से एक दूसरे से बात करना मुश्किल होता है। एक दूसरे से बात रकने के लिए लोगो को चिल्लाते हुए आपने अक्सर देखा होगा।
ताज्जुब की बात ये है कि आज हर कोई इस तरह की समस्या से परेसान है। पर, कोई भी इसका मुखर विरोध करने को तैयार नहीं है। हम इसे चुपचाप सहन कर लेते हैं। लिहाजा, अनजाने में समाज का एक बड़ा हिस्सा श्लो डेथ यानी धीमी मौत की और तेजी से बढ़ रहा है। अक्सर लोग अपने आसपास बजने वाले लाउडस्पीकर या डीजे को गंभीरता से नहीं लेते है। इससे तेज आवाज को प्रसारित करने वालों का हौसला बढ़ता है और वह रात या दिन यानी कभी भी लाउडस्पीकर बजाने लगता है। मंदिरो में सुबह और शाम लाउडस्पीकर बजाना धार्मिक कृत्य माना जाता है। जबकि, यह समय बच्चो के पढ़ने का समय होता है। धार्मिक लोगो को सोचना होगा। दूसरी ओर युवाओं को आगे आना होगा। शोसल साइट पर ध्वनि प्रदूषण की महत्ता बताने वाले पोस्ट लिखने होंगे। ताकि, इसके घातक परिणाम को आसानी से समझा जा सके।
सामान्य तौर पर ध्वनि प्रदूषण को दो भागों में विभाजित किया गया है। इसमें प्राकृतिक कारक और कृत्रिम कारक शामिल है। प्राकृतिक कारक में बादलों की गड़गड़ाहट, तूफानी हवाएं, झड़ना, ज्वालामुखी विस्फोट, कोलाहल, वन्य जीवों की आवजें और चिड़ियों की चहचहाट। इस पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नही है। प्राकृतिक ध्वनि से जीवन को अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है। दूसरी ओर स्वयं मनुष्य के द्वारा तैयार की गई कृत्रिम कारक अत्यन्त ही घातक साबित हो रहा है। इसके अन्तर्गत कल कारखानो से निकलने वाली तेज आवाज, मशीनो से निलने वाली आवाज, परिवहन के साधन टीवी और मोबाइल से निकलने वाला तरंग शामिल है। यह ध्वनि प्रदूषण के लिए खतरनाक होता है। आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण की बड़ी वजह बन चुकी है। हालिया दिनो में लाउडस्पीकर और डीजे से निकलने वाली आवाज। जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुका है।
ध्वनि प्रदूषण या तेज आवाज की रोकथाम के लिए कानून है। सरकार ने शोर प्रदूषण अधिनियम-2000 की अधिसूचना जारी किया हुआ है। इसमें मानक के मुताबिक सुबह के छह बजे से रात के दस बजे तक 75 डेसीबल तक के ध्वनि का प्रसारण किया जा सकता है। किंतु, इससे अधिक ध्वनि का प्रसारण करना गैर कानूनी माना गया है। जबकि, डीजे से निकलने वाला न्यूनतम ध्वनि 130 डेसीबल होता है। साधारन लाउडस्पीकर भी 100 डिसीबल से अधिक का ध्वनि प्रसारित करता है। ऐसे में एक साथ कई लाउडस्पीकर या डीजे बजाने का शरीर पर कितना खतरनाक असर पड़ता होगा? आप खुद ही तय कर सकते है। इसका कुप्रभाव मनुष्यों के ऊपर ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी एवं वनस्पतियों पर भी पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार रात के समय वातावरण में अधकतम 35 डेसीबेल और दिन के समय 45 डेसीबेल से अधिक का शोर घातक हो सकता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 290 और 291 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत सरकार के द्वारा निर्धारित मानक से अधिक ध्वनि का प्रसारण करते हुए पकड़े जाने पर जुर्माना अथवा कारावास का प्रावधान है। विशेष परिस्थिति में अनुमति लेकर आप तेज ध्वनी का प्रसारण कर सकते है। पर, किसी भी परिस्थिति में इस तरह की अनुमति एक साल के भीतर अधिक से अधिक 15 दिन से ज्यादा की नहीं होगी। नियम के मुताबिक आपको अधिकार है कि रिहायशी इलाकों में यानी आवासीय क्षेत्र में ध्वनि का स्तर सुबह 6 बजे से रात के 10 बजे तक 55 डेसीबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 40 डेसीबल से अधिक होने पर आप स्थानीय थानो में इसकी शिकायत दर्ज करा सकते है।
This post was published on मार्च 5, 2022 13:09
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