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रेपो रेट में बेसिस पॉइंट की कमी

रेपो रेट

कोरोना से संकट में अर्थव्यवस्था

न्यूज ब्यूरो। भारत के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट के कमी की घोषणा कर दी है। कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यस्था पर अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिए यह कदम उठाये गयें है। केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की। कहा कि कोरोना वायरस संकट की वजह से मौद्रिक नीति की समीक्षा समय से पहले की गई। उन्होंने रिवर्स रेपो रेट में भी 90 बेसिस पॉइंट की कमी की घोषणा की है।

रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को समझिए

दरअसल, रेपो वह रेट है, जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक अपने पास बैंकों के रखे फंड पर ब्याज देता है। कर्ज की मांग बढ़ने पर बैंक रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं और जब उनके पास अधिक पैसा होता है तो वह आरबीआई के पास जमा करते हैं। इस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज मिलता है।

कटौती का फायदा

आरबीआई जब रेपो रेट में कटौती करता है तो प्रत्यक्ष तौर पर बाकी बैंकों पर वित्तीय दबाव कम होता है। आरबीआई की ओर से हुई रेपो रेट में कटौती के बाद बाकी बैंक अपनी ब्याज दरों में कटौती करते हैं। इसकी वजह से आपके होम लोन और कार लोन की ईएमआई में कमी आती है। रेपो रेट कम होता है तो महंगाई पर नियंत्रण लगता है। ऐसा होने से देश की अर्थव्यवस्था को भी बड़े स्तर पर फायदा मिलता है। ऑटो और होम लोन क्षेत्र को फायदा होता है। रेपो रेट कम होने से कर्ज सस्ता होता है।

बयाज पर मिलेगा राहत

कंपनियां जिन पर काफी कर्ज है उन्हें इसका फायदा होगा। क्योंकि रेपो रेट कम होने के बाद उन्हें पहले के मुकाबले कम ब्याज चुकाना होता है। आरबीआई के इस फैसले से प्राइवेट सेक्टर में इनवेस्टमेंट को बढ़ावा मिलता है। इस समय देश में निवेश को आकर्षित करना सबसे बड़ी चुनौती है। इनफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ता है और सरकार को इस सेक्टर को मदद देने के लिए बढ़ावा मिलता है। रेपो रेट कम होता है तो कर्ज सस्ता होता है और इसके बाद कंपनियों को पूंजी जुटाने में और आसानी होती है।


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