तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना पर PM मोदी को लिखा पत्र, BJP के पुराने रुख पर उठाए सवाल

Tejashwi Yadav Writes to PM Modi on Nationwide Caste Census: Questions BJP’s Past Resistance

KKN गुरुग्राम डेस्क | केंद्र सरकार द्वारा देशभर में जातीय जनगणना कराने के फैसले के बाद बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। इस मुद्दे पर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखते हुए केंद्र सरकार और भाजपा पर निशाना साधा है।

तेजस्वी यादव ने इस पत्र की जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर दी और कहा कि वर्षों तक जातीय जनगणना का विरोध करने के बाद अब केंद्र सरकार का यह निर्णय जनता के दबाव और सच्चाई की जीत है।

क्या लिखा तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री को?

अपने पत्र में तेजस्वी ने लिखा:

“देशभर में जाति जनगणना कराने की घोषणा के बाद मैं आज आपको सतर्क आशावाद की भावना के साथ पत्र लिख रहा हूं। वर्षों से आपकी सरकार और एनडीए गठबंधन ने इस मांग को विभाजनकारी और अनावश्यक बताते हुए खारिज किया था।”

उन्होंने आगे लिखा कि जब बिहार सरकार ने अपने संसाधनों से जातीय सर्वेक्षण कराने की पहल की, तो केंद्र सरकार और उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने उस प्रयास को विधिक और प्रशासनिक रूप से रोकने की कोशिश की।

भाजपा नेताओं पर साधा निशाना

तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में यह भी लिखा कि भाजपा के सहयोगी नेताओं ने न केवल जातीय डेटा की आवश्यकता पर सवाल उठाया, बल्कि इस प्रयास को बदनाम करने के लिए फूहड़ और अशोभनीय टिप्पणियां भी कीं।

“अब जब आपकी सरकार जातीय जनगणना का निर्णय ले रही है, तो यह माना जाए कि आप भी उन हाशिए पर खड़े वर्गों की आवाज़ को सुन रहे हैं, जो दशकों से अपने हक और प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”

बिहार का जातीय सर्वे और उसका प्रभाव

तेजस्वी यादव ने बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि ओबीसी और ईबीसी वर्ग राज्य की 63% आबादी हैं। इस सर्वे ने कई ऐसे मिथकों को तोड़ा जो दशकों से सामाजिक असमानता को ढकने का काम कर रहे थे।

उन्होंने कहा:

“इस तरह के आंकड़े देश के अन्य हिस्सों में भी सामने आने की संभावना है। यह लोकतांत्रिक चेतना का अवसर होगा, जहां वंचित वर्ग अपने वास्तविक प्रतिनिधित्व की मांग कर सकेंगे।”

जातीय जनगणना क्यों है जरूरी?

तेजस्वी और अन्य सामाजिक न्याय समर्थक नेताओं के अनुसार, जातीय जनगणना:

  • नीति निर्माण में पारदर्शिता लाएगी

  • वंचित वर्गों को उनके जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिलाने में मदद करेगी

  • रिजर्वेशन नीति को वैज्ञानिक आधार देगी

  • जातीय असमानता और भ्रामक आंकड़ों को उजागर करेगी

भाजपा का बदला रुख?

गौरतलब है कि भाजपा और एनडीए ने पहले कई बार जातीय जनगणना को लेकर यह कहा था कि यह विभाजनकारी और अनावश्यक है। 2011 की सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) का डेटा भी आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया।

लेकिन 2024 के आम चुनाव में जातीय जनगणना एक मूल चुनावी मुद्दा बनकर उभरा, जिसके बाद केंद्र सरकार को जनता की भावना के दबाव में आकर नीति में बदलाव करना पड़ा।

तेजस्वी के पत्र का राजनीतिक संदेश

तेजस्वी यादव का यह पत्र सिर्फ प्रधानमंत्री को लिखा गया औपचारिक संवाद नहीं, बल्कि यह एक राजनीतिक घोषणापत्र जैसा है, जिसमें:

  • भाजपा की पूर्व नीतियों पर सवाल उठाए गए

  • ओबीसी वर्ग के समर्थन को मजबूत करने की कोशिश की गई

  • और राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता को सामाजिक न्याय के मुद्दे पर जोड़ने की कोशिश की गई

क्या कहता है बिहार का डेटा?

बिहार सरकार के जातीय सर्वेक्षण के अनुसार:

  • ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) + ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) = लगभग 63%

  • एससी (अनुसूचित जाति) = 16%

  • एसटी (जनजाति) = 1.7%

  • सामान्य वर्ग = लगभग 15%

इन आंकड़ों ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि संविधान प्रदत्त 27% ओबीसी आरक्षण आज के समय में कितना न्यायसंगत है।

देशव्यापी असर और विपक्ष की एकजुटता

तेजस्वी यादव के पत्र को DMK, SP, NCP और अन्य विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है। सभी दलों की मांग है कि:

  • जातीय जनगणना पारदर्शी तरीके से कराई जाए

  • डेटा सार्वजनिक किया जाए

  • आरक्षण नीति की पुनर्समीक्षा की जाए

क्या कहती है सरकार?

केंद्र सरकार के मुताबिक:

  • जातीय जनगणना का काम गृह मंत्रालय और भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किया जाएगा

  • यह सर्वे डिजिटल माध्यम से, मोबाइल ऐप्स और बायोमेट्रिक सत्यापन से किया जाएगा

  • डेटा का उपयोग नीतियों, बजट और योजनाओं के निर्धारण में किया जाएगा

तेजस्वी यादव के पत्र ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत अब जातीय आंकड़ों के आधार पर नई सामाजिक और राजनीतिक संरचना की ओर बढ़ेगा?

जातीय जनगणना 2025 सिर्फ एक सरकारी प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह भारत में सामाजिक न्याय, समानता और प्रतिनिधित्व के नए युग की शुरुआत बन सकती है।


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