KKN ब्यूरो। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा संपन्न हो चुकी है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने बिहार के विभिन्न जिलों का दौरा किया, सरकारी योजनाओं की समीक्षा की और जनता से संवाद स्थापित करने का प्रयास किया। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस यात्रा से बिहार के लोगों को कोई वास्तविक लाभ मिला? या यह केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थी, जिससे जेडीयू और एनडीए को आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में बढ़त मिल सके?
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प्रगति यात्रा का उद्देश्य और इसकी जमीनी हकीकत
नीतीश कुमार इस यात्रा के जरिए जनता से सीधा संवाद स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, रोजगार जैसी योजनाओं का जायजा लिया। इस दौरान कई जिलों में उन्होंने लोक संवाद कार्यक्रम भी किए, जहां आम जनता अपनी समस्याएं रख सकी। हालांकि, सवाल यह उठता है कि इन समस्याओं का समाधान कितना हुआ और क्या यह सिर्फ सुनवाई तक सीमित रह गई?
यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कई निर्देश दिए, लेकिन बिहार की ब्यूरोक्रेसी की धीमी कार्यशैली को देखते हुए, क्या ये निर्देश ज़मीन पर दिखेंगे? या यह भी पहले की घोषणाओं की तरह फाइलों तक सिमट जाएगा?
बिहार की जनता को क्या लाभ मिला?
अगर सीधे तौर पर बात करें, तो इस यात्रा से बिहार की जनता को कोई तत्कालिक लाभ नहीं मिला। हां, सरकार की योजनाओं का रिव्यू हुआ और मुख्यमंत्री ने कई जिलों में नए विकास कार्यों की घोषणा की। वादो का पिटारा भी खोला। लेकिन क्या ये घोषणाएं हकीकत में बदलेंगी, यह बड़ा सवाल है।
जनता की मुख्य शिकायतें
- रोजगार की कमी: युवा आज भी नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।
- शिक्षा व्यवस्था: सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी हुई है।
- स्वास्थ्य सेवाएं: ग्रामीण इलाकों में अस्पताल और डॉक्टरों की भारी कमी है।
- बिजली-पानी की समस्या: शहरी इलाकों में सुविधाएं बेहतर हुई हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी समस्या बनी हुई है।
यानी, प्रगति यात्रा से जनता को सिर्फ आश्वासन मिला, ठोस समाधान नहीं।
क्या यह यात्रा सिर्फ राजनीतिक माइलेज के लिए थी?
चुनाव से पहले इस तरह की यात्राएं आमतौर पर राजनीतिक रणनीति का हिस्सा होती हैं। इस यात्रा को भी विधानसभा चुनाव 2025 से जोड़कर देखा जा रहा है। नीतीश कुमार ने लालू यादव और तेजस्वी यादव के खिलाफ अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने रखा और एनडीए सरकार के कामकाज को मजबूत दिखाने का प्रयास किया।
इस यात्रा से नीतीश को क्या मिला?
- अपनी छवि मजबूत करने का मौका – उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि वे अभी भी बिहार के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं।
- पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया – जेडीयू कार्यकर्ताओं में जो असमंजस था, उसे दूर करने का प्रयास हुआ।
- राजनीतिक विरोधियों पर दबाव – इस यात्रा के जरिए उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस को जवाब देने का मौका मिला।
क्या जेडीयू और एनडीए को चुनाव में फायदा होगा?
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरण पर आधारित रही है। नीतीश कुमार की यह यात्रा विशेष जातीय समूहों को प्रभावित करने की रणनीति भी हो सकती है।
- ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) और महिला वोट बैंक पर उनका खास फोकस रहा है।
- अगर यह यात्रा इन वर्गों को नीतीश कुमार के पक्ष में गोलबंद कर पाई, तो इसका चुनावी लाभ जेडीयू को मिल सकता है।
यात्रा सफल या सिर्फ दिखावा?
अगर यात्रा के वास्तविक लाभ की बात करें, तो जनता के लिए यह सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम से ज्यादा कुछ नहीं लगती। हालांकि, राजनीतिक दृष्टिकोण से नीतीश कुमार ने अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश जरूर की है।
आगामी चुनावों में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन बिहार के लोगों के लिए यह यात्रा सिर्फ विकास के वादों, पिटारों और राजनीतिक दावों का एक और दौर ही साबित होती दिख रही है।
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