पिता की मौत से एक साथ अनाथ हो गए तीन बच्चे
KKN न्यूज ब्यूरो। महज 12 वर्ष की उम्र में ही सुहांगी कुमारी हंसना, मुश्कुरान भूल चुकी है। वह अक्सर शून्य को निहारते हुए ठिठक जाती है। कोरोना से पिता की मौत के बाद उसके सभी सपने एक ही झटके में टूट गए। पांचवां वर्ग की सुहांगी को नहीं पता कि अब उसके भविष्य का क्या होगा? बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर, मीनापुर थाना के दरहीपट्टी गांव की गलियों में किलकारी भरने वाली सुहांगी की खामोशी, कोरोनाकाल के भयावह तस्वीर की तस्दीक कर रही है। यहां सुहांगी अकेली नहीं है। उसके दो छोटे भाई 10 वर्ष का सुधांशू और 7 वर्ष का आर्यन भी है। पिता की मौत के बाद घर में मातमी सन्नाटा पसर चुका है।
पति की मौत से टूट चुकी मुसमात रेणु देवी के आंखो से मानो आंसू सूख चुका है। लड़खराती जुबान से वह बताती है कि घर से करीब दस किलो मीटर दूर सिवाईपट्टी में उसके पति अरविन्द कुमार का दुकान था और उनके कमाई से घर का खर्चा चलता था। अब बड़ा सवाल ये है कि इन बच्चो के भविष्य का क्या होगा? अरविन्द के पिता शंकर प्रसाद उम्र के चौथेपन में है। शंकर प्रसाद बतातें है कि अरविन्द उनका माझिल पुत्र था। वह खुद की कमाई से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। अब इस परिवार की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। दावो से इतर सरकार का कोई भी कारिंदा पलट कर देखने नहीं आया।
ऐसे आया कोरोना की चपेट में
अरविन्द कुमार की उम्र अभी महज 37 वर्ष की थीं। वह अपने घर से करीब 12 किलोमीटर दूर सिवाईपट्टी बाजार पर एक डाक्टर की निगरानी और दोस्तो की पार्टनरशीप में अल्ट्रासाउउंट का मशीन चला कर अपने परिवार का भरन-पोषण करता था। अचानक 26 अप्रैल को उसको बुखार हो गया। बुखार ठीक नहीं होने पर 2 मई को उसने मीनापुर अस्पताल पहुंच कर कोरोना की जांच करावाई। रिपोर्ट पॉजिटिव था। डाक्टर ने कोरोना संक्रमण की पुष्टि कर दी। इसके बाद एसकेएमसीएच के एक डाक्टर की निगरानी में उसका इलाज शुरू हुआ। किंतु, 11 मई की शाम 4 बजे उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगा। डाक्टर की सलाह पर उसको ऑक्सीजन सपोर्ट पर रख दिया गया। अगले रोज 12 मई को हालत और बिगड़ने लगा। डाक्टर की सलाह पर परिजन पटना ले गए। वहां एक निजी अस्पताल में उसको वेंटीलेटर पर रखा गया। उसी दिन करीब 2 बजे में उसकी मौत हो गई।
सिस्टम में फंसा मुआवजा का पेंच
सरकार के द्वारा घोषित मुआवजा भुगतान का मामला सिस्टम की उलझनो में फंस कर रह गया है। परिजन मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए भटक रहें है। हालांकि, अस्पताल के द्वारा मृत्यु-प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है। किंतु, मीनापुर अंचल प्रशासन ने पटना के निजी अस्पताल के द्वारा दी गई मृत्यु प्रमाण-पत्र को मानने से इनकार कर दिया है। मृतक के पिता शंकर प्रसाद बतातें हैं कि अब मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए नए सिरे से 3 जून को पटना नगर निगम में आवेदन दिएं है। बड़ा सवाल ये कि बार-बार पटना कौन जाये? लिहाजा, पीड़ित परिवार के लिए मुआवजा टेढ़ी खीर बन बन चुका है।