KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार में इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सभी प्रमुख दल अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं, लेकिन इस बार असली संघर्ष केवल सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नहीं, बल्कि एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के भीतर ही चल रही गुटबाज़ी को लेकर है।
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केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच नेतृत्व को लेकर गहराता टकराव, और भाजपा के अंदर बढ़ती गुटीय खींचतान इस चुनाव को और भी पेचीदा बना रहे हैं।
1. चिराग बनाम नीतीश: अनुभव बनाम नया चेहरा
एनडीए में सबसे बड़ा मुद्दा है कि अगला मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे प्रशासनिक अनुभव और संगठित जमीनी नेटवर्क के साथ मैदान में हैं, तो दूसरी ओर युवा नेता चिराग पासवान खुद को दलित और युवा वोटबैंक का चेहरा बनाकर उभार रहे हैं।
टकराव के मुख्य कारण:
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चिराग का मानना है कि वह रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
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नीतीश कुमार को लेकर भाजपा के एक वर्ग में विश्वास की कमी दिखी है, खासकर उनके बार-बार एनडीए से बाहर जाने और वापस आने को लेकर।
दोनों नेताओं की महत्वाकांक्षा ने गठबंधन में नेतृत्व संकट को जन्म दे दिया है।
2. मुख्यमंत्री चेहरा तय नहीं: गठबंधन में स्पष्टता की कमी
भाजपा ने अब तक सीएम उम्मीदवार को लेकर कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की है, जिससे भ्रम की स्थिति बन गई है। पार्टी के भीतर दो स्पष्ट खेमे नजर आते हैं:
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एक वर्ग नीतीश कुमार को स्थिरता और अनुभव का प्रतीक मानता है।
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वहीं दूसरा वर्ग, खासकर भाजपा के युवा विधायक और सांसद, चिराग को ज्यादा ऊर्जावान और आक्रामक चेहरा मानते हैं।
राजनीतिक प्रभाव:
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मुख्यमंत्री पद को लेकर असमंजस एनडीए की चुनावी रणनीति को कमजोर कर सकता है।
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दलित और युवा वोट में विभाजन का खतरा है, जो विपक्ष के लिए फायदा बन सकता है।
3. भाजपा का अंदरूनी संघर्ष: संगठन बनाम जनप्रतिनिधि
बिहार भाजपा भी आंतरिक खींचतान से गुजर रही है। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद, राज्य में नेतृत्व का खालीपन महसूस किया जा रहा है।
प्रमुख गुट:
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संगठनात्मक धड़ा: जो आरएसएस की विचारधारा के करीब है।
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चुनावी धड़ा: विधायक और सांसद जो सत्ता और हिस्सेदारी में अधिक भूमिका चाहते हैं।
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दिल्ली बनाम पटना विवाद: दिल्ली का केंद्रीय नेतृत्व टिकट बंटवारे पर ज्यादा नियंत्रण चाहता है, जिससे स्थानीय नेताओं में असंतोष बढ़ रहा है।
4. विपक्ष की आक्रामक रणनीति: महागठबंधन की एकजुटता
जहां एनडीए अंदरूनी झगड़ों से जूझ रहा है, वहीं राजद के नेतृत्व में महागठबंधन ने मैदान में तेजस्वी यादव को आक्रामकता के साथ उतार दिया है।
तेजस्वी की रणनीति:
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ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में युवा केंद्रित प्रचार
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बेरोजगारी, महंगाई और आरक्षण जैसे मुद्दों पर फोकस
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खुद को नीतीश और चिराग दोनों से अलग एक नया विकल्प बताना
एनडीए की आपसी खींचतान महागठबंधन को सीधा लाभ दे सकती है, खासकर तब जब गठबंधन की रणनीति स्पष्ट हो और संदेश एकजुट हो।
चुनावी समीकरण: जाति, सीट और संगठन
बिहार चुनाव का आधार हमेशा से जातीय समीकरण पर रहा है।
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नीतीश कुमार को कुर्मी और EBC समुदायों का समर्थन
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चिराग पासवान को दलित और युवा वोटर्स का झुकाव
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भाजपा का फोकस ऊंची जातियों और शहरी हिंदू वोटर्स पर
यदि गठबंधन के भीतर समन्वय नहीं बनता, तो यह मतों के बंटवारे और सीटों के नुकसान का कारण बन सकता है।
जनता का मूड: भ्रम और निराशा
बिहार के मतदाताओं में भ्रम की स्थिति है। लोग विकास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर बात करना चाहते हैं, लेकिन नेताओं की आंतरिक लड़ाइयों और नेतृत्व के लिए मची होड़ से वे असंतुष्ट हैं।
मुजफ्फरपुर के एक दुकानदार ने कहा:
“हमें नौकरी और अस्पताल चाहिए, लेकिन यहां हर कोई मुख्यमंत्री बनना चाहता है। आम आदमी का कौन सोचेगा?”
राष्ट्रीय नजरिया: बिहार चुनाव का 2029 पर असर
बिहार चुनाव के नतीजे सिर्फ राज्य नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर डालेंगे। यह चुनाव एनडीए की एकजुटता और विश्वसनीयता का लिटमस टेस्ट बन सकता है।
अगर गठबंधन यहां कमजोर प्रदर्शन करता है:
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तो भाजपा को हिंदी पट्टी में नुकसान हो सकता है
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यूपी, झारखंड जैसे राज्यों में गठबंधन समीकरण बिगड़ सकते हैं
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विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का मौका मिलेगा
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, एनडीए के भीतर की नेतृत्व की लड़ाई, सीट बंटवारे की खींचतान, और सामूहिक नेतृत्व की अनुपस्थिति उसे चुनावी दृष्टिकोण से कमजोर कर रही है।
यदि नीतीश कुमार, चिराग पासवान और भाजपा समय रहते एकजुटता का रास्ता नहीं निकालते, तो महागठबंधन इसका फायदा उठाने में देर नहीं करेगा।
2025 का बिहार चुनाव सिर्फ वोटों की नहीं, बल्कि दृष्टिकोण, नेतृत्व और विश्वास की लड़ाई बनने जा रहा है।
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