भारत की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार करते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया है। पांच जजों की संविधान पीठ ने बीते गुरुवार को वयस्को के बीच आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाने की इजाजत दे दी। इसी के साथ भारत में समलैंगिक संबंधो को लेकर बहस शुरू हो गई है।
आईपीसी की धारा 377 में हुआ संसोधन
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया है, जिसके तहत बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध माना जाता था। इस मौके पर सभी जजों ने अलग-अलग फैसले सुनाए। हालांकि, सभी के फैसले एकमत से ही थे। कोर्ट में फैसला सुनाए जाते वक्त वहां मौजूद लोग भावुक हो गए और कुछ रोने भी लगे।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा कि भारत में सभी को समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है। कहा कि समाज को अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए। समलैंगिक (Homosexuality) समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मौलिक अधिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को मनमाना बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन यानी यौन रुझान बायलॉजिकल है और इस पर रोक वास्तव में संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सहमति से बालिगों के समलैंगिक संबंध हानिकारक नहीं है। कहा कि आईपीसी की धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सही नहीं है।
जानिए धारा 377 को
इससे पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से अप्राकृति शारीरिक संबंध बनाना अपराध माना जाता था। इस अपराध (Crime) के लिए उसे उम्रकैद या दस साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड भुगतना पड़ता था। सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के तहत वयस्को के बीच आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं थी। चाहें वह पति पत्नी ही क्यों नहीं हो। किंतु, अब सहमति के आधार पर बनाऐ गये ऐसे संबंध अपराध नहीं माने जायेंगे।
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