आखिरकार राजनीति में और कितना गिरेंगे हम
कौशलेन्द्र झा
कर्नाटक। कर्नाटक में आज सुबह बीएस येदयुरप्पा ने 25वें मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। भाजपा समर्थको में खुशी की लहर है। वही, कॉग्रेस ने इसको लोकतंत्र की हत्या बताते हुए कर्नाटक विधानसभा के परिसर में स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना पर बैठ गई है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में पूरी रात इस मामले की सुनवाई चली। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट अभी यह तय नही कर सकी है कि यह लोकतंत्र की जीत है या हत्या? बहरहाल, सुनवाई जारी है। अब आम लोगो के जेहन में सवाल उठने लगा है कि हम जिस संविधान की लगातार दुहाई देते रहते है। क्या, वास्तव में हमारा संविधान इतना कमजोर है कि आज हमारा लोकतंत्र निर्णय करने की स्थिति में नही रहा या हम इतने कमजोर हो गए है कि हम अपने ही संविधान के प्रावधानो को समझ नही पाते? क्यों अंतिम निर्णय के लिए हमे बार- बार अदालत की शरण में जाना पड़ता है? सवाल ये भी कि हमारे देश में विधायिका सर्वोच्च है या न्यायपालिका? आज यह एक बड़ा सवाल बन गया है।
विवाद का कारण है, विशेषाधिकार
हमारे संविधन में प्रावधान है कि सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़ी गठबंधन को राज्यपाल सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकतें हैं। यहां राज्यपाल को अपने विवेक से तय करना है कि राज्य में सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन स्थायी सरकार दे सकती है? दरअसल, राज्यपाल का यही विवेक अक्सर विवाद का कारण बनता रहा है। समय- समय पर कतिपय राजनीतिक पार्टिया अपने खास एजेंडा के तहत इस लड़ाई को अदालत में लाकर विधायिका का माखौल बनाते रहतें हैं। याद करीय, इस काम में कोई किसी से पीछे नही है। कॉग्रेस हो या बीजेपी, हमाम में सभी नंगे है। हमारी मुश्किल ये है कि हम पार्टी लाइन से हट कर समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश नही करते। सोशल मीडिया पर ताल ठोकने वाले लोग सोशल समस्या को लेकर गंभीर नही होते है और हमारे रहनुमा, इसी का बेजा लाभ लेने के लिए मामलो को उलझा कर हमे आपस में लड़ा कर इसका राजनीतिक लाभ लेते रहतें हैं।
स्पष्ट प्रावधान की उठनी चाहिए मांग
आजादी के सात दशक बाद भी हम अपने ही संविधान को समझ नही पा रहें हैं और प्रावधान की उलझनो को समझने के लिए न्यायालय की शरण में चले जाते है। ऐसे में सभी पार्टी आपस में मिल कर इन प्रावधानो को स्पष्ट क्यों नही करती? क्यों नही इसके लिए एक और संविधान संसोधन होता है? दरअसल, ये राजनीतिक पार्टिया इन मुद्दो को जानबूझ कर उलझा कर रखना चाहती है, ताकि अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करके लोगो को गुमराह किया जा सके। राजनीतिक ड्रामा किया जा सके और लोगो को बांटा जा सके।
मौजूदा राजनीति को समझने की जरुरत
याद रखिए, ये भड़काउ बयान दे सकते हैं। टीवी पर बैठ कर इसको लोकतंत्र की हत्या बता सकते हैं। पूरा दिन या कई- कई रोज तक धरना पर बैठ सकते हैं। अदालत में लम्बी लड़ाई भी लड़ सकते हैं। किंतु, संसद में बैठ कर संविधान का संसोधन नही कर सकते। कानून के प्रावधानो को स्पष्ट नही कर सकते। आज कॉग्रेस न्याय मांग रही है। कल भाजपा न्याय मांगेगी या मांगती रही है। किंतु, ये लोग संविधान में संसोधन करके प्रावधानो को स्पष्ट नही कर सकते। इस राजनीति को समझने का वक्त आ गया है।