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ऐसे हुआ कैलेंडर का निर्माण

कैलेंडर

KKN न्यूज ब्यूरो। वर्ष 2023 का आगाज हो चुका है। वर्ष का पहला महीना जनवरी शुरू हो चुका है। यानी आपका कैलेंडर बदल चुका है। क्या कभी आपने सोचा है कि कैलेंडर नहीं होता तो हमारी या आपकी जिंदगी कैसा होता? तारीख, महीना या साल का अंदाजा कैसे लगाते? दरअसल, कैलेंडर का हमारी जिंदगी में बड़ा महत्व है। वर्तमान में जो कैलेंडर प्रचलन में है। उसको पोप ग्रिगरी ने बनाया है। इसलिए इसको ग्रिगरी कैलेंडर कहा जाता है। इस कैलेंडर में कुल 12 महीना है। क्या आपको मालूम है कि महीने का नाम कैसे पड़ा?

जेनस से बना जनवरी

इसका इतिहास बड़ा ही रोचक है। शुरूआत जनवरी से करते है। आपको जान कर हैरानी होगी कि आरंभ में जनवरी का नाम ‘जेनस’ हुआ करता था। कई दशक बाद जेनस को जनवरी कर दिया गया। दरअसल रोम के एक देवता का नाम जेनस है। शुरुआत के दिनों में कैलेंडर का पहला महीना उन्हीं के नाम पर रखा गया था।

फैबरा से बना फरबरी

लैटिन भाषा में शुद्धि के देवता को ‘फैबरा’ कहा जाता है। इसी फैबरा के नाम पर कैलेंडर का दूसरा महीना यानी फरबरी का नाम रखा गया। हालांकि, कई जानकार इससे सहमत नहीं है। ऐसे लोगो का मानना है कि रोम की देवी का नाम फेबुएरिया है और इन्हीं के नाम पर फरबरी का नाम रखा गया था।

मार्स से बना मार्च

रोमन के एक देवता ‘मार्स’ हुआ करते है। इन्हीं के नाम पर मार्च महीने का नाम रखा गया। आपको बताते चलें कि रोमन के लोग मार्च को ही वर्ष का पहला महीना मानने है। इसी को आधार मान कर दुनिया की कई देशों में आज भी मार्च के महीने को वित्त वर्ष का महीना माना जाता है।

अप्रैल मई और जून

लैटिन के शब्द ‘एंपेरायर’ से अप्रैल महीने का नाम रखा गया। एंपेरायर का मतलब होता है ‘कलियों का खिलना’। यानी बसंत का आगमन। मई महीने के नाम के पीछे कहा जाता है कि रोमन के एक देवता ‘मरकरी’ की माता का नाम ‘माइया’ था और माइया से ही मई महीने का नाम पड़ा। रोम के सबसे बड़े देवता को ‘जीयस’ कहा जाता है। उनकी पत्नी का नाम ‘जूनो’ था। जूनो से ‘जून’ शब्द को लिया गया है।

जुलाई से नवम्बर तक

इसी तरह रोमन साम्राज्य के एक ख्याती प्राप्त शासक ‘जुलियस सीजर’ के नाम पर जुलाई का नाम रखा गया। संयोग से जुलियस का जन्म और मृत्यु दोनों जुलाई महीने में ही हुई थी। अगस्त महीने का नाम ‘सैंट आगस्ट सीजर’ के नाम पर रखा गया है। सितंबर का नाम लैटिन के एक शब्द ‘सेप्टम’ से बना है। रोम में सितंबर को सप्टेम्बर कहा जाता है। लैटिन के आक्टो से अक्टूबर और नवम से नवम्बर महीना का नाम लिया गया है।

 डेसम से बना दिसम्बर

साल का आखरी महीना यानी दिसंबर का नाम लैटिन के ‘डेसम’ शब्द से लिया गया है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से दिसंबर को वर्ष का बारहवां और आखिरी महीना माना जाता है। दिसम्बर को ग्रेगरी महीना कहा जाता है। ग्रेगरी यानी 31 रोज का महीना। कैलेंडर में ऐसा कुल सात ग्रेगरी महीना है। दिसंबर महीने में उत्तरी गोलार्द्ध पर सूरज की रौशनी सबसे कम और दक्षिणी गोलार्द्ध पर सबसे अधिक होता हैं। रोचक बात ये कि दिसंबर और सितम्बर का सप्ताह एक ही दिन से शुरू होता हैं।

मौसम का चक्र

कैलेंडर का अपना इतिहास है। इसमें कोई शक नहीं कि कैलेंडर का पूरा इतिहास मौसम के चक्र की समझ से जुड़ा है। पिछले दो हजार साल में कैलेंडर में कई संशोधन करने पड़े है। धीरे-धीरे हम ये जान पाए कि हमारी पृथ्वी सूरज का एक चक्कर ठीक-ठीक कितने समय में लगाती है। हिसाब बनाने के लिए चांद का भी सहारा लिया गया।

कैलेंडर का इतिहास

वर्तमान में जो कैलेंडर प्रचलन में है उसको आखिरी बार पोप ग्रिगरी 13वां ने संशोधित किया था। लिहाजा इसको ग्रिगरी कैलेंडर कहा जाता है। इससे पहले 5 अक्टूबर 1582 तक जो कैलेंडर प्रचलन में था उसे जूलियन कैलेंडर कहते हैं। इसको ईसा पूर्व 46 में जूलियस सीजर ने संशोधित किया था। इससे पहले वाले कैलंडर को रोमन कैलेंडर कहा जाता था। रोमन कैलेंडर में एक वर्ष में 304 दिन की गणना होती थी। वह दस महीना का होता था।

साल के दिनों का निर्धारण

धर्माचार्य ‘सेंट वीड’ पहले ऐसे संत थे, जिन्होंने ग्रिगरी कैलेंडर के निर्माण की आधार रखी। उन्होंने आठवीं शताब्दी में यह निष्कर्ष दिया कि एक साल में 365 दिन पांच घंटा, 48 मिनट और 26 सेकेंड होता हैं। वीड के पांच सौ साल बाद एक वैज्ञानिक हुए ‘रोजर बेकन’…। उन्होंने वर्ष 1582 में ऐतिहासिक संशोधन किया।

26 सेकेंड का है विवाद

ग्रिगरी संशोधन के समय लगभग 11 मिनट प्रतिवर्ष का संशोधन तो हो गया। लेकिन 26 सेकेंड का फर्क अभी भी बना हुआ है। कहतें है कि इसी 26 सेकेंड के फर्क से ग्रिगरी कैलेंडर पिछले 435 सालो में तीन घंटे की खामी दर्शा रहा है। यानी वर्ष 4909 आते- आते इस कैलेंडर में पूरे एक दिन का फर्क हो जाएगा। जानकार इसको ठीक करने की मुहिम में लगातार जुटे हुए है।


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