हममें से बहुत कम लोग है, जिनको मालुम होगा कि एक इंसान अपने जीवनकाल में करीब 60 करोड़ 48 लाख रुपये का ऑक्सीजन लेता है। यह ऑक्सीजन कुदरत से हमें मुफ्त में मिलता है। बावजूद इसके कुदरत के प्रति आभारी होने की जगह, हमने खुद ही कुदरत का दोहन किया। अंधाधुंध पेंड़ो की कटाई की। यानी खुद से अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारी। आज समझ में आया कि हमारे पूर्वज पेड़ों की पूजा क्यों करते थे? जिसे हम रुढ़ीवादी मानसिकता की संज्ञा देकर नकार रहें है। दरअसल, उसके पीछे छिपी पेड़ो की संरक्षणवादी व्यवस्था को हम समझ नहीं सके। नतीजा, हम सभी ने इसका दुष्परिणाम झेला है। समय आ गया है, जब पेड़ो की महत्ता को एक बार फिर से पुनर्स्थापित करना होगा।
This post was published on अगस्त 6, 2021 19:00
ग्यारह सितम्बर... जिसको आधुनिक भाषा में नाइन इलेवन कहा जाता है। इस शब्द को सुनते… Read More
एक सिपाही, जो गुलाम भारत में अंग्रेजों के लिए लड़ा। आजाद भारत में भारत के… Read More
विरोध के लिए संपत्ति को जलाना उचित है KKN न्यूज ब्यूरो। भारत सरकार के अग्निपथ… Read More
प्रकृति में इतनी रोमांचक और हैरान कर देने वाली चीजें मौजूद हैं कि उन्हें देख… Read More
भाषा...एक विज्ञान है। यह अत्यंत ही रोचक है। दुनिया में जितनी भी भाषाएं हैं। सभी… Read More
आजादी के बाद भारत की राजनीति गरीब और गरीबी के इर्द- गिर्द घूमती रही है।… Read More