फतेहपुर विवाद: मकबरा या मंदिर? दोनों पक्षों के दावे और पूरी कहानी

Fatehpur Dispute: Claims, Counterclaims, and the History Behind the Controversial Structure

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक धार्मिक स्थल को लेकर विवाद गहरा गया है। संभल की तरह यहां भी एक संरचना को लेकर दो अलग-अलग दावे सामने आए हैं। एक पक्ष का कहना है कि यह मुगलकालीन मकबरा है, जबकि दूसरा पक्ष इसे ठाकुरद्वारा मंदिर बता रहा है।

सोमवार को हिंदू संगठनों और भाजपा जिलाध्यक्ष के आह्वान पर सैकड़ों लोग आबूनगर रेडैइया स्थित कथित अब्दुल समद के मकबरे पर पहुंचे। भीड़ ने बैरिकेड तोड़कर अंदर प्रवेश किया, तोड़फोड़ की और ऊपर चढ़कर भगवा ध्वज फहरा दिया। वहीं Hanuman Chalisa का पाठ भी किया गया। इस घटना के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग भी मौके पर पहुंचे और विरोध जताया।

पुलिस ने इस मामले में 10 लोगों को नामजद करते हुए 150 अज्ञात लोगों पर रिपोर्ट दर्ज की है।

मकबरे का दावा

मौजूदा mutawalli मोहम्मद नफीस का कहना है कि यह मकबरा मुगल शासक अकबर के पौत्र ने करीब पांच सौ साल पहले बनवाया था। इसे तैयार होने में लगभग दस साल लगे थे।

उनके अनुसार, यहां अबू मोहम्मद और अबू समद की मजारें हैं। मकबरा लगभग साढ़े 12 बीघे क्षेत्र में फैला हुआ है। नफीस का आरोप है कि विवाद की जड़ जमीन है और कुछ भूमाफिया इस पर कब्जा करना चाहते हैं। उनका कहना है कि यह स्थल ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से एक प्रमाणित मकबरा है।

मंदिर का दावा

दूसरी ओर, हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल ठाकुर जी विराजमान मंदिर है। उनका कहना है कि यहां पहले Shivling मौजूद था और बरामदे में नंदी जी की प्रतिमा विराजमान रहती थी।

उनका आरोप है कि मकबरे की दीवारों और गुंबदों पर फूल और त्रिशूल जैसे हिंदू धार्मिक प्रतीक उकेरे गए हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल ने भी इसे मंदिर बताया और कहा कि यह मूल रूप से ठाकुर जी का स्थान है।

स्थानीय युवक कुमार संभव ने दावा किया कि वर्ष 2007 में दीपावली के दिन उन्होंने इस स्थल के अंदर जाकर पूजा की थी। उन्होंने वहां शिवलिंग, नंदी और अन्य हिंदू प्रतीक देखे थे। उनका आरोप है कि वर्ष 2011 के आसपास मंदिर का स्वरूप बदल दिया गया और उर्दू व अरबी में कलमा लिखकर मकबरे का इतिहास गढ़ा गया।

संरचना के अवशेष

हिंदू संगठनों के अनुसार, विवादित स्थल पर आज भी सीढ़ियां, जंजीर और अन्य अवशेष मौजूद हैं, जो मंदिर से मेल खाते हैं। उनका कहना है कि केवल रंग-रोगन बदलकर इसे मकबरे का रूप दिया गया और अंदर मजार बना दी गई।

हाल ही में मठ मंदिर संघर्ष संरक्षण समिति ने डीएम को ज्ञापन सौंपकर पूजा की अनुमति मांगी थी। वहीं राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल ने डीएम को पत्र लिखकर बताया कि सरकारी रिकॉर्ड में यह स्थल “नवाब अबु समद मकबरा” के नाम से दर्ज है और इसे राष्ट्रीय संपत्ति माना गया है।

जमीन के मालिकाना हक का विवाद

कानपुर निवासी विजय प्रताप सिंह उर्फ बब्लू सिंह का दावा है कि मकबरा जिस जमीन पर बना है, वह उनकी पैतृक संपत्ति है। उन्होंने बताया कि 1970 में उनके पिता रामनरेश सिंह ने शकुंतला मान सिंह से 10.5 बीघा जमीन खरीदी थी।

उनके अनुसार, 2007 में अनीश नामक व्यक्ति ने धोखे से इस जमीन को मकबरे के नाम पर दर्ज करा लिया। इससे पहले वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में मकबरे का कोई जिक्र नहीं था। यह मामला वर्तमान में सिविल कोर्ट फतेहपुर में विचाराधीन है।

राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौती

सोमवार की घटना अचानक नहीं हुई। कई दिनों से दोनों समुदायों के बीच तनाव की स्थिति थी। हिंदू संगठन पूजा का ऐलान कर चुके थे, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे संरक्षित धार्मिक स्थल बताते हुए विरोध की तैयारी में था।

भीड़ के प्रवेश, तोड़फोड़ और भगवा ध्वज फहराने के बाद हालात बिगड़ गए। अब प्रशासन के सामने धार्मिक और कानूनी दोनों तरह की चुनौती है। पुलिस ने सुरक्षा बढ़ा दी है और अदालत के फैसले तक दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है।

फतेहपुर का यह विवाद सिर्फ एक धार्मिक स्थल का नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और जमीन के मालिकाना हक का भी है। अदालत के निर्णय के साथ यह मामला भविष्य में ऐसे अन्य विवादों के निपटारे के लिए भी मिसाल बन सकता है।

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