राजकिशोर प्रसाद
आज शराबबंदी के एक साल पुरे हो गए। वही सरकार शराबबंदी की पहली वर्षगांठ पर अपनी कामयाबी पर पीठ थपथपाते नही थक रही है। वही, दूसरी ओर विपक्ष इसे आधा अधूरी कामयाबी और इसमें व्याप्त खामियों की सुधार की वकालत कर रही है। ताड़ी, पान मशाला, गुटका, शीतल पेय पदार्थो के आड़ में शराब की काली धंधा जोड़ो पर है। इतनी कड़ी कानून और पुलिस की चौकसी के बावजूद आये रोज कही न कही शराब की बड़ी खेप पकड़ी जा रही है। ऐसी खबरे रोज आम लोगो को सुनने, देखने व पढने को मिल रहे है। आखिर सवाल ये उठता है की अगर शराबबंदी है तो इतनी शराब बिहार के हर कोने से क्यों रोज पकड़ी जा रही है? पुलिस के आला अधिकारी, प्रशासन व सरकार क्यों न सख्त कदम उठती है? कागजो में नियम कड़े जरूर बने और बनते है पर हकीकत सबके सामने है। शराब माफिया या कारोबारियों का हौसला क्यों बढ़ता जा रहा है? आखिर शराब का कालाधंधा रुक क्यों नही रहा है? जिसे सरकार ने पहरा पर लगा रखा है, क्या उसकी नियत में खोट है? कहतें हैं कि आखिर खोट क्यों न हो? चर्चा है कि यह नए नियम प्रहरियो के मोटी कमाई का जरिया बन गया है। केस को कमजोड़ बना कर और डायरी में कमजोड़ सबूत पुलिस द्वारा दर्ज कर कारवारियो को ढील दी जाती है। इससे कारोबारी हो या प्रहरी दोनो की बल्ले बल्ले है। शायद यही कारण है की शराब के कारोबारी शराब सहित पकड़े जाते है। जेल जाते है और फिर तुरन्त बाहर आ जाते है और फिर वही धंधा शुरू हो जाता है। जरूरत है लोगो में सोच परिवर्तन की। पुलिस की ईमानदार छवि की। सरकार की सख्त पहल की और लोगो को अपने आप में बदलाव की। नही तो ऐसे कानून बनते रहेगे। पुलिस की सह पर समाज में भ्रष्टाचार पनपता रहेगा और पुलिस की बल्ले बल्ले होती रहेगी।
This post was published on अप्रैल 4, 2017 19:55
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