प्रवासी मजदूर
KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के ओम कुमार की गोद में सात महीने की एक बेटी है। साथ में बीमार पत्नी कौशल्या और बड़ी बेटी राधिका सहित दो और छोटे बच्चे है। वह हरियाणा से अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़ा है। ओम के साथ आधा दर्जन परिवार और है। लॉकडाउन के बाद ये सभी मजदूर पैदल ही अपने घर के निकल पड़ें है। यदि, इन लोगो को रास्ते में कोई मदद नहीं मिला तो घर पहुंचने के लिए करीब एक सप्ताह पैदल चलना होगा। ऐसे सैकड़ो परिवार है, जो अपने घर जाने के लिए हाइवे पर पैदल चल रहें है।
भारत में लॉकडाउन की घोषणा होते ही हजारों प्रतिष्ठानों ने अपने-अपने कर्मचारियों को घर जाने का फरमान सुना दिया है। ऐसा ही आदेश गुरुग्राम में नौकरी करने वाले राज कुमार को मिला। उसके मालिक ने कहा, ‘घर जाओ और वहीं रहो।’ लेकिन, राजकुमार का घर तो हजार कि.मी. से भी दूर बिहार के छपरा में हैं। उसके पास सिर्फ एक हजार रुपये हैं और इसका कोई अता-पता नहीं कि अगली सैलरी कब आएगी। ऐसे में गुरुग्राम में ही पड़े रहने का कोई मतलब नहीं है। मुश्किल यह कि जाने का कोई साधन नहीं। राजकुमार ने अपनी पत्नी, तीन महीने की बच्ची और 58 वर्ष की मां के साथ बुधवार को अहले सुबह पैदल ही निकल पड़ा। उनकी तरह कई और परिवार सड़क पर पैदल चलते हुए अपना सफर तय करने में लगे है। इधर, पैदल मार्च पर निकले लोगों का कई झुंड यूपी तक पहुंच चुका है। उन्होंने दिनभर में दिल्ली को पार करते हुए 50 किमी की दूरी तय कर ली थी। कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें खाने का पैकेट दिए। इस बीच मजदूरो का झुंड बढ़ता गया और कारवां बनता गया।
दिल्ली-एनसीआर से अचानक निकलने वालों की ऐसी कई झुंड सड़कों पर है। जो लोग गांव लौट रहे हैं, उनमें ज्यादातर फैक्ट्री और दिहाड़ी मजदूर हैं। फैक्ट्रियां और काम-धंधे बंद होने के कारण वो अचानक बेरोजगार हो गए हैं। उनका गांव की ओर पलायन सरकार के लिए भी चिंता का सबब है। क्योंकि, लॉकडाउन का मकसद ही खतरे में आ गया है जो लोगों की आवाजाही रोकना है। उधर, मोहन सिंह दस दिन पहले ही मानेसर आए थे। उनके पास पैसा नहीं है और पूरा परिवार तीन दिन से भरपेट खाना नहीं मिला है। मोहन बदायूं के हैं और उनके परिवार के सभी दस सदस्य 266 कि.मी. की पैदल यात्रा पर हैं।
This post was published on मार्च 27, 2020 13:57
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