KKN गुरुग्राम डेस्क | कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने देश में जातिगत जनगणना कराने, आरक्षण की 50% अधिकतम सीमा समाप्त करने और तेलंगाना मॉडल को अपनाने जैसे तीन बड़े सुझाव दिए हैं। यह पत्र ऐसे समय आया है जब जातीय प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय को लेकर राष्ट्रीय राजनीति में गहन बहस चल रही है।
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खड़गे के तीन मुख्य सुझाव:
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आगामी जनगणना में जाति आधारित जानकारी शामिल की जाए
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आरक्षण की 50% सीमा को हटाने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए
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तेलंगाना मॉडल को अपनाकर जनगणना के प्रश्नों को तय किया जाए और डेटा पारदर्शी रूप से जारी किया जाए
खड़गे ने स्पष्ट किया कि जातिगत जनगणना का उद्देश्य केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक नीतियों को वैज्ञानिक आधार देना है।
खड़गे का आरोप: पहले भी पत्र लिखा लेकिन सरकार ने नहीं दिया जवाब
खड़गे ने अपने पत्र में लिखा, “मैंने 16 अप्रैल 2023 को भी आपको पत्र लिखकर जातिगत जनगणना कराने की कांग्रेस की मांग को दोहराया था। दुर्भाग्यवश, मुझे उस पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने इस मांग को उठाने पर कांग्रेस पार्टी और नेतृत्व को निशाना बनाया, लेकिन अब पीएम मोदी खुद स्वीकार कर रहे हैं कि यह मांग सामाजिक न्याय के हित में है।
तेलंगाना मॉडल को अपनाने की सिफारिश
खड़गे ने तेलंगाना में कांग्रेस सरकार द्वारा कराए गए जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार को गृह मंत्रालय के माध्यम से जनगणना की प्रश्नावली में जाति को अलग श्रेणी के रूप में जोड़ना चाहिए।
उन्होंने कहा, “जाति संबंधी जानकारी सिर्फ गिनती के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करने और योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।”
उन्होंने सुझाव दिया कि जनगणना के बाद रिपोर्ट पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक की जानी चाहिए, जिससे प्रत्येक जाति की सामाजिक प्रगति और वंचना की स्थिति मापी जा सके।
आरक्षण की सीमा हटाने पर जोर
खड़गे ने अपने पत्र में कहा कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए वर्तमान में जो 50% की आरक्षण सीमा लागू है, वह संवैधानिक रूप से मनमानी है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15(5) का हवाला दिया, जिसे 20 जनवरी 2006 को लागू किया गया था, और जो निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की अनुमति देता है। यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के बावजूद 29 जनवरी 2014 को बरकरार रखा गया था।
खड़गे ने कहा कि यह निर्णय लोकसभा चुनाव 2014 से ठीक पहले आया, जिससे यह साबित होता है कि संविधान के तहत निजी संस्थानों में भी आरक्षण संभव है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला
खड़गे ने यह भी कहा कि 25 मार्च 2025 को संसद की एक स्थायी समिति ने शिक्षा मंत्रालय की अनुदान मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में अनुच्छेद 15(5) को प्रभावी बनाने के लिए एक नया कानून लाने की सिफारिश की है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल संविधान में प्रावधान होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करना और निगरानी रखना भी जरूरी है।
जयराम रमेश का बयान: पीएम का जातिगत जनगणना पर यू-टर्न
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने खड़गे का पत्र एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर साझा किया। उन्होंने लिखा, “जब देश पहलगाम आतंकी हमले के आघात से गुजर रहा था, उसी समय प्रधानमंत्री मोदी ने जातिगत जनगणना पर यू-टर्न लिया।”
उन्होंने कहा कि यह पत्र 2 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद लिखा गया, जहां यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था। रमेश ने खड़गे के पत्र को “स्पष्ट, तार्किक और समयानुकूल” बताया।
जातिगत जनगणना क्यों है ज़रूरी?
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सामाजिक-आर्थिक असमानता का सही आकलन
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वंचित समुदायों की वास्तविक स्थिति जानना
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नीतियों को सटीक और डेटा आधारित बनाना
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आरक्षण की उपयुक्तता तय करना
खड़गे ने कहा कि जातिगत जनगणना को कभी भी विभाजनकारी नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह संविधान के तहत समानता और न्याय की दिशा में उठाया गया अहम कदम है।
मल्लिकार्जुन खड़गे का पत्र केंद्र सरकार के लिए नीति निर्माण की दिशा में स्पष्ट चुनौती और मार्गदर्शन है।
वर्तमान सामाजिक असमानताओं को मिटाने के लिए केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि ठोस डेटा, कानूनी प्रावधान और ईमानदार कार्यान्वयन की जरूरत है।
भारत में समानता और अवसर की भावना को साकार करने के लिए जातिगत जनगणना आवश्यक है, और यह तभी संभव होगा जब सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएगी और संविधान की भावना के अनुरूप कार्रवाई करेगी।
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