KKN गुरुग्राम डेस्क | पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार मुशाहिद हुसैन ने हाल ही में एक बयान में कहा है कि अगर भारत पाकिस्तान का पानी रोकता है, तो चीन भी भारत का पानी रोक सकता है।
हुसैन ने जोर देकर कहा कि सिंधु नदी और ब्रह्मपुत्र नदी दोनों का स्रोत तिब्बत में है, जो चीन के कब्जे में है। ऐसे में पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी बन सकता है।
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सिंधु जल संधि पर फिर गहराया संकट
सिंधु जल संधि, जो भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई थी, एक ऐतिहासिक समझौता है। इस संधि के तहत भारत को रावी, व्यास और सतलज नदियों का नियंत्रण दिया गया, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का अधिकार मिला।
हाल के वर्षों में भारत ने संकेत दिया है कि वह अपने हिस्से के जल का पूर्ण उपयोग करेगा, जिसे पाकिस्तान एक खतरे के रूप में देख रहा है। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत सिंधु जल संधि का उल्लंघन कर रहा है और पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।
चीन का दबदबा: तिब्बत से जल नियंत्रण
मुशाहिद हुसैन ने अपने बयान में चीन के जल संसाधन नियंत्रण की ओर इशारा किया।
चीन के नियंत्रण में तिब्बत को एशिया का “जल टावर” कहा जाता है, जहां से कई प्रमुख नदियां निकलती हैं, जिनमें सिंधु और ब्रह्मपुत्र शामिल हैं। चीन ने पहले भी ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बांध परियोजनाओं की शुरुआत की है, जिससे भारत में चिंता का माहौल रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ता है, तो चीन पानी के माध्यम से दबाव बनाने की रणनीति अपना सकता है।
पाकिस्तान की जल निर्भरता
पाकिस्तान का 90% से अधिक कृषि क्षेत्र सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। अगर भारत पानी रोकता है या कम कर देता है, तो पाकिस्तान में खाद्य संकट, आर्थिक अस्थिरता और स्वास्थ्य संकट पैदा हो सकता है।
इस कारण पाकिस्तान बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सिंधु जल संधि के तहत भारत की परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है।
भारत का पक्ष: संधि का पालन
भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि वह सिंधु जल संधि के प्रावधानों का पूरा पालन कर रहा है।
भारत के अनुसार, बिजली उत्पादन जैसी गैर-खपत गतिविधियों के लिए नदियों के जल का उपयोग संधि के तहत वैध है और इससे पाकिस्तान को मिलने वाले पानी के बहाव में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता।
भारतीय अधिकारी यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान बार-बार इस मुद्दे को उठाकर केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।
दक्षिण एशिया में जल संकट का बढ़ता खतरा
पानी पर नियंत्रण का मुद्दा अब केवल भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं रहा।
चीन की भूमिका इसे एक त्रिकोणीय संकट बना रही है। अगर पानी को हथियार बनाया जाता है, तो इससे पूरी दक्षिण एशियाई स्थिरता को गंभीर खतरा हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और औद्योगिक विकास के कारण जल संसाधनों पर पहले से ही भारी दबाव है। ऐसी स्थिति में जल विवाद भविष्य में बड़े संघर्ष का कारण बन सकता है।
वैश्विक स्तर पर चिंता
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन लगातार यह चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले दशकों में जल विवाद युद्धों का कारण बन सकते हैं।
दक्षिण एशिया को “जल युद्ध का संभावित केंद्र” माना जाता है, जहां अगर कूटनीतिक समाधान नहीं निकाले गए तो हालात खराब हो सकते हैं।
मुशाहिद हुसैन का बयान भले ही पाकिस्तान के घरेलू दबाव या भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए दिया गया हो, लेकिन इससे इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान जरूर गया है।
पानी का मुद्दा केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय संकट का भी मुद्दा है। इसलिए भारत, पाकिस्तान और चीन — तीनों देशों को चाहिए कि वे जल संसाधनों के न्यायपूर्ण और टिकाऊ प्रबंधन के लिए आपस में संवाद और सहयोग बढ़ाएं।
यदि पानी को राजनीतिक हथियार बनाया गया, तो इसके दुष्परिणाम समूचे दक्षिण एशिया को भुगतने पड़ सकते हैं।
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