लोकसभा में आज पहलगाम आतंकी हमले और इसके बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर 16 घंटे की मैराथन चर्चा होने वाली है। इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम के एक बयान ने राजनीति में बवाल मचा दिया है। उन्होंने इस हमले में पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाकर राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचा दिया है।
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पाकिस्तान की भूमिका पर पी. चिदंबरम के सवाल
पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने एक साक्षात्कार के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच प्रक्रिया पर प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हमले के पीछे शामिल आतंकवादी कौन थे और वे कहां से आए। उनका कहना था कि यह जरूरी नहीं कि आतंकवादी पाकिस्तान से ही आए हों, यह भी हो सकता है कि वे देश के भीतर ही सक्रिय रहे हों। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस दावे को स्वीकार करने के लिए अब तक कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है।
बीजेपी का तीखा हमला, कांग्रेस पर ‘क्लीन चिट’ देने का आरोप
भारतीय जनता पार्टी ने चिदंबरम के बयान को पाकिस्तान के पक्ष में बताया और कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए। भाजपा नेताओं ने कहा कि कांग्रेस एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पाकिस्तान का बचाव कर रही है और उसकी भाषा बोल रही है। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिक्रिया देते हुए चिदंबरम के बयान को “भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर हमला” बताया।
अमित मालवीय ने लिखा कि चिदंबरम पहले भी भगवा आतंक जैसे विवादास्पद सिद्धांतों से जुड़े रहे हैं और अब एक बार फिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर सवाल उठाकर सेना और जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
हमले की पृष्ठभूमि: कब और कहां हुआ था हमला?
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरण घाटी में आतंकियों ने एक पर्यटक समूह पर हमला कर 26 लोगों की हत्या कर दी थी, जिनमें अधिकांश हिंदू पर्यटक थे। इस घटना के तुरंत बाद The Resistance Front (TRF) ने जिम्मेदारी ली, लेकिन बाद में उन्होंने इस दावे से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद NIA और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने जांच शुरू की और हमले की साजिश को पाकिस्तान के खुफिया तंत्र ISI और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जोड़ते हुए हमलावरों को पाकिस्तानी नागरिक बताया।
NIA की जांच पर सवाल
पी. चिदंबरम ने NIA की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या अब तक यह स्पष्ट हुआ है कि हमलावर कौन थे और वे किस देश से संबंधित थे? उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों को जब तक पुख्ता सबूत नहीं मिलते, तब तक किसी भी देश पर आरोप लगाना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जनता को तथ्यों के आधार पर जानकारी दी जानी चाहिए।
भाजपा की सख्त प्रतिक्रिया और कांग्रेस की स्थिति
बीजेपी ने चिदंबरम के बयान को कांग्रेस की “गैर-जिम्मेदाराना सोच” का उदाहरण बताया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर इस तरह के बयान देश विरोधी ताकतों का मनोबल बढ़ा सकते हैं। भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने तंज कसते हुए कहा कि “कांग्रेस पाकिस्तान से भी ज्यादा बेहतर तरीके से पाकिस्तानी आतंकवाद का बचाव करती है।”
दूसरी ओर, चिदंबरम ने अपनी सफाई में कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इंटरव्यू के पूरे संदर्भ को दबाकर कुछ शब्दों को काट-छांटकर उनके विचारों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और यह एक तरह की जानबूझकर की गई मीडिया ट्रोलिंग है।
संसद में क्या होगी चर्चा का विषय?
आज होने वाली लोकसभा बहस में पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के सभी पहलुओं पर चर्चा होगी। इसमें यह भी चर्चा शामिल होगी कि सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका क्या रही, आतंकवाद से निपटने की रणनीति कितनी प्रभावशाली रही और क्या राजनीतिक बयानबाजी से आतंक के खिलाफ लड़ाई कमजोर होती है। इसके अलावा यह सवाल भी उठेगा कि क्या विपक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर सावधानी बरतनी चाहिए।
चिदंबरम की टिप्पणी का असर
पूर्व गृह मंत्री के रूप में चिदंबरम की टिप्पणी को नजरअंदाज करना आसान नहीं है। उनके सवालों ने संसद से पहले ही राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। उनके इस बयान से सरकार पर जांच की पारदर्शिता और ठोस जानकारी देने का दबाव भी बढ़ सकता है। इस बीच, भाजपा ने इसे कांग्रेस के “देशविरोधी” दृष्टिकोण के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है।
आगे की संभावनाएं
यह बहस सिर्फ संसद में नहीं, बल्कि देश भर में लोगों की सोच को प्रभावित कर सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक एकता की जरूरत बार-बार जताई जाती है, लेकिन इस बहस के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजनीतिक दल इस दिशा में कोई साझा रुख अपनाते हैं या फिर यह बहस भी एक और सियासी मुद्दे में तब्दील होकर रह जाती है।
जैसे-जैसे लोकसभा में बहस आगे बढ़ेगी, यह साफ होगा कि संसद राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और क्या इस बहस के बाद आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की दिशा में कोई नया दृष्टिकोण सामने आता है। फिलहाल चिदंबरम के बयान और उसके बाद की सियासत ने संसद सत्र की गंभीरता और देश की सुरक्षा नीति पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
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