वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू, सिब्बल-सिंघवी ने उठाए संवैधानिक सवाल

Supreme Court Begins Crucial Hearing on Waqf (Amendment) Act 202

KKN गुरुग्राम डेस्क | सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार से कई गंभीर सवाल किए, खासकर ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने और गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर।

अदालत ने कहा कि वह यह स्पष्ट करना चाहती है कि क्या वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य न्यूनतम आवश्यकता हैं या अधिकतम सीमा। साथ ही अदालत ने साफ किया कि फिलहाल अधिनियम पर रोक नहीं लगाई जाएगी, लेकिन सरकार से ठोस जवाब जरूर मांगा जाएगा।

कपिल सिब्बल की दलीलें: संविधान का उल्लंघन

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।

सिब्बल के मुख्य तर्क:

  • कानून कहता है कि केवल वे व्यक्ति वक्फ बना सकते हैं, जो पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहे हों – यह सरासर भेदभाव है।

  • धारा 3(सी) के तहत सरकारी संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा, भले ही वह पहले से वक्फ घोषित हो।

  • उत्तराधिकार नियमों का उल्लंघन हो रहा है, जो इस्लामी कानून में मृत्यु के बाद लागू होते हैं।

सिब्बल ने कहा कि “राम जन्मभूमि फैसले में यह स्पष्ट किया गया था कि धार्मिक उपयोग, भले ही संपत्ति का स्वामित्व न हो, एक मान्यता प्राप्त धार्मिक अधिकार है।”

अभिषेक मनु सिंघवी ने जताई चिंता

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि भारत में कुल 8 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से 4 लाख ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत आती हैं। अगर यह प्रावधान हटा दिया गया, तो इन संपत्तियों की स्थिति स्पष्ट नहीं रहेगी और उनका भविष्य खतरे में आ जाएगा।

उन्होंने कहा कि “यह मामला अनुच्छेद 25, 26 और 32 से जुड़ा है, इसलिए इसे हाईकोर्ट भेजने की जरूरत नहीं है। यह सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाना चाहिए।”

वकीलों और विशेषज्ञों के अन्य मत

  • राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लामी धार्मिक ढांचे में हस्तक्षेप करता है।

  • सीयू सिंह ने धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों में अंतर को समझने की अपील की।

  • हुजेफा अहमदी ने कहा कि ‘इस्लाम का पालन’ करना यदि वक्फ की शर्त बनता है, तो यह मौलिक अधिकारों पर सीधा असर डालता है और अस्पष्टता उत्पन्न करता है।

केंद्र सरकार की सफाई: यह कानून विचार-विमर्श के बाद बना है

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से वक्फ संशोधन अधिनियम का बचाव किया। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत बनाया गया है।

तुषार मेहता के तर्क:

  • इस अधिनियम को बनाने के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) गठित की गई थी।

  • समिति ने देशभर में दौरे किए और 2.9 मिलियन से अधिक सुझावों पर विचार किया।

  • कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि संपत्तियों के पंजीकरण और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए है।

मुख्य न्यायाधीश की तीखी टिप्पणी: ‘वक्फ बाय यूजर’ क्यों हटाया?

सीजेआई संजीव खन्ना ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि वक्फ बाय यूजर की व्यवस्था क्यों हटाई गई? उन्होंने कहा कि “14वीं और 15वीं सदी की अधिकतर मस्जिदों के पास कोई बिक्री विलेख नहीं होता। ऐसी मस्जिदें वक्फ बाय यूजर की श्रेणी में आती हैं।”

“अगर सरकार कहे कि ये जमीनें सरकारी हैं, तो धार्मिक समुदायों का क्या होगा?” – सीजेआई

सिब्बल की राम जन्मभूमि वाली दलील पर कोर्ट का जवाब

कपिल सिब्बल ने राम जन्मभूमि केस का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई संपत्ति वर्षों से धार्मिक उपयोग में है, तो वह वक्फ हो सकती है, भले ही उसका पंजीकरण न हुआ हो।

सीजेआई ने सवाल किया कि “पंजीकरण में क्या दिक्कत है?” जिस पर सिब्बल ने कहा, “समस्या यह है कि अब ‘वक्फ बाय यूजर’ खत्म कर दिया गया है, और इससे मेरे धार्मिक अधिकारों का हनन हो रहा है।”

राजनीतिक संदर्भ: किसने दायर की हैं याचिकाएं?

अब तक इस मामले में 72 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं, जिनमें प्रमुख नाम हैं:

  • असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM)

  • ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB)

  • जमीयत उलमा-ए-हिंद

  • कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद

  • DMK पार्टी

केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल को कैविएट दायर कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से पहले उसकी दलील सुनी जाए।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ने इस कानून को एक राष्ट्रीय बहस का केंद्र बना दिया है। यह मामला केवल संपत्ति या पंजीकरण का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, समुदाय की पहचान और संवैधानिक मूल्यों से जुड़ा है।

अब सबकी निगाहें अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां सरकार से और जवाब मांगे जाएंगे। यह फैसला भविष्य में भारत में धार्मिक संपत्ति कानूनों की दिशा तय कर सकता है।

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