गुजरात। दरअसल एक्जिट पोल के दौरान सिर्फ सीटो पर जीत और हार का अनुमान ही नही लगाया जाता। बल्कि, मतदाताओं की रुझान और सोच का भी पता लगाने की कोशिश होती है। इंडिया टुडे-एक्सिस-माय-इंडिया एक्जिट पोल से गुजरात के मतदाताओं के सोच की दिलचस्प बानगी सामने आई है। हालिया सर्वे में इसी तरह के कई चौकाने वाले नतीजे सामने आयें हैं।
बतातें चलें कि गुजरात के आदिवासी इलाके लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ रहा हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए बड़ा सपना रहा है कि गुजरात के आदिवासी वोटरों पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ को कमजोर किया जाए। सर्वे की सबसे मजेदार खुलाशा यही से शुरू होता है। मोदी-शाह का ये सपना आखिरकार 2017 चुनाव में साकार होता प्रतीत हो रहा है। अनुमान है कि आदिवासी वोटों का 48 फीसदी हिस्सा बीजेपी की झोली में आ रहा है। वहीं कांग्रेस को आदिवासियों का सिर्फ 42 फीसदी वोट शेयर ही मिलता नजर आ रहा है।
यदि यह सच हुआ तो गुजरात के आदिवासी वोटरों का समर्थन हासिल करने में कांग्रेस पर बीजेपी बढ़त लेने जा रही है। गुजरात में आदिवासियों के प्रभाव वाली 28 सीटों में से बीजेपी को 17 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं कांग्रेस को महज 11 सीटों से ही संतोष करना पड़ सकता है। यही वह अंकगणित है, जिसके सहारे बीजेपी के लिए सत्ता तक पहुंचने का मार्ग खुल गया है। सर्वे की माने तो सौराष्ट्र और कच्छ में हुए नुकसान को बीजेपी झेल पा रही है तो इसका एक बड़ा कारण गुजरात के आदिवासियों को लुभा कर अपने पाले में लाने की कामयाबी मानी जा रही है।
जीएसटी को लेकर कारोबारियों की नाराजगी ने बेशक बीजेपी नेतृत्व को रह-रह कर झटके दिए, लेकिन अंत में पार्टी अपने पारंपरिक व्यापारी वोट बैंक को अपने पाले में कर अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब होती दिख रही है। कारोबारियों के मन में आशंका रही कि कांग्रेस सत्ता में वापस आती है तो कहीं लतीफ राज यानी अस्सी-नब्बे के दशक में गुजरात में सक्रिय रहे गैंगस्टर अब्दुल लतीफ का खौफ, दंगे, कर्फ्यू, अराजकता जैसे हालात फिर ना लौट आएं। इसी डर ने कारोबारियों को बीजेपी से जोड़े रखने में मदद की।
गुजरात की 55 शहरी सीटों में से बीजेपी 42 सीटों पर जीत का परचम फहरा कर शानदार प्रदर्शन करने जा रही है। वहीं शहरी क्षेत्रों की सिर्फ 13 सीटों के वोटरों की ओर से ही कांग्रेस पर भरोसा रखने का अनुमान है। अहमदाबाद की 16 सीटों में से बीजेपी के खाते में 13 सीट जाने का अनुमान है। इसी तरह सूरत की 9 सीटों में से बीजेपी को 8 पर जीत मिलने के आसार है। वडोदरा के शहरी क्षेत्र की सभी 5 की 5 सीट बीजेपी की झोली में जाती नजर आ रही हैं। एक गुजराती के देश का प्रधानमंत्री होने के गौरव ने राज्य के शहरी क्षेत्रों में वोटरों पर बड़ा प्रभाव डाला है। सीधी भाषा में कहे तो गुज्जू भाई ने एक साथी गुज्जु का साथ छोड़ना मुनासिब नहीं समझा।
पाटीदारों के बीच फैले गुस्से का भी इस चुनाव पर असर से इनकार नही किया जा सकता है। सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में वास्तव में पाटीदार बीजेपी के पाले से छिटकते नजर आ रहे हैं। सौराष्ट्र और कच्छ की 54 सीटों पर लेउवा पटेलों में 56 फीसदी और कडवा पटेलों में 60 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस के लिए वोट किया। यह बीजेपी के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि, अमूमन पटेल बीजेपी का परंपरागत वोट माना जाता रहा है। इसके अतिरिक्त उत्तर गुजरात की 32 सीटों पर भी कमोवेश ऐसी ही हालत रहने के आसार है। इन सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी पर 6 फीसदी अधिक वोटों से बढ़त बनाई हुई है।
सर्वे का अध्ययन करने से साफ हो जाता है कि सौराष्ट्र, कच्छ और उत्तर गुजरात में बीजेपी को जो भी नुकसान होगा उसकी भरपाई उसने दक्षिण और मध्य गुजरात के साथ अहमदाबाद की सीटों पर कर ली है। मध्य गुजरात की 40 सीटों की बात की जाए तो लेउवा पटेलों में 62 फीसदी और कडवा पटेलों में 58 फीसदी ने बीजेपी के लिए वोट किया। यहां कांग्रेस लेउवा पटेलों में महज 27 फीसदी और कडवा पटेलों में 31 फीसदी वोटरों का ही समर्थन हासिल कर सकी है। ठीक इसके विपरित दक्षिण गुजरात की 35 सीटों पर भी बीजेपी के लिए बम्पर समर्थन वाली स्थिति बन रही है। यहां पटेलों ने बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में 25 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने का अनुमान है। बहरहाल, यह सभी विश्लेषण एक अनुमान के आधार पर है। हकीकत इसी महीने की 18 तारीख को सबके सामाने आने वाली है।
This post was published on दिसम्बर 16, 2017 12:38
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