बिहार। सीबीआई की छापामारी और इसके बाद दर्ज एफआईआर से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चारो ओर से घिर चुके है। सीबीआई ने लालू प्रसाद व उनकी पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सहित पुत्र उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भी एफआईआर की है। पुत्री सांसद मीसा भारती पहले से आईडी की रडार पर हैं। वही बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव पेट्रोल पंप आवंटन मामले में घिरे हुए हैं।
ऐसे में अब लालू प्रसाद की सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की होगी। राजनीति के गलियारे में कयास लगने शुरू हो गयें हैं कि अगर लालू यादव को अपनी पत्नी और पुत्र के साथ जेल जाना पड़ा तो उनकी पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा? बड़े पुत्र तेजप्रताप से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह पार्टी को संकट की इस घड़ी में संभाल पाएंगे। लिहाजा, अब राजद के वैसे नेता सक्रिय हो सकते हैं, जो लंबे समय से नेतृत्व सम्भालने की टीस को दबाये बैठें हैं। परिवारवाद के कारण भी राजद का असंतोष, अब खुल कर सामने आ सकता है।
राजनीति के जानकार मानते है कि रेलवे के होटल लीज मामले में शुक्रवार की सुबह उनके आवास पर पड़ी सीबीआई का छापा, इससे पहले चारा घोटाले में पड़े छापों से कई मामलों में भिन्न है। चारा घोटाले के वक्त वह अकेले घिरे थे और सत्ता संभालने के लिए राबड़ी देवी मौजूद थीं। किंतु, इस बार तो लालू का पूरा कुनबा ही घिरा नजर आ रहा है।
दरअसल, जिस मामले को बीते दो महीने से भाजपा नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी उठा रहे थे। उस मामले से संबंधित कागजात लालू प्रसाद या उनके करीबी के घर से मिलेगी, इसकी उम्मीद किसी को नही थी। कहतें है कि सीबीआई के छापामारे से लालू एण्ड फेमली जबरदस्त मानसिक दबाव में है। वैसे लालू प्रसाद को पहले से यह आशंका थी कि वह कानून के घेरे में आ सकते हैं। इसीलिए 5 जुलाई को पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया था कि 27 अगस्त की रैली के पहले अगर मुझे जेल जाना पड़ा तो पार्टी के हरेक कार्यकर्ता को लालू बनना पड़ेगा।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हाशिये पर रखकर अपने दोनों पुत्रों को राज्य कैबिनेट में वरीयता क्रम में दूसरे और तीसरे स्थान पर रखवाने को लेकर अंदरखाने की नाराजगी अब खुलने का खतरा उत्पन्न हो गया है। दबी जुबान से यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है कि इस पुरे घटनाक्रम में लालू प्रसाद के बेहद करीबी रहे राजद के एक वरिष्ठ नेता शामिल है। सूत्र बतातें हैं कि उक्त नेता लालू पुत्रो के समक्ष अपनी घटती हैसियत से बेहद परेसान थे और मौके की इंतजार में घात लगाये बैठे थे। आपको याद ही होगा कि 1997 में जब लालू प्रसाद चारा घोटाले में घिरे थे और सीबीआई उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी में थी तो उस समय भी उनके सबसे करीबी वही नेता ने मोर्चा खोल दिया था। तब राबड़ी देवी को कमान सौंपकर लालू प्रसाद ने न केवल सत्ता बल्कि पार्टी दोनों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने का विकल्प अपनाया था।
अब जबकि माना जा रहा है कि सीबीआई की ताजा कार्रवाई में लालू प्रसाद के अलावा राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को भी जेल जाना पड़ सकता है, ऐसी स्थिति में यह यक्ष प्रश्न है कि राजद का नेतृत्व कौन संभालेगा?
This post was published on जुलाई 7, 2017 23:31
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