इजराइल। भारत और इजराइल के बीच हाई प्रोफाइल यात्राओं की समीक्षा करते समय सह जरुरी है कि इसराइल के द्वारा दी गई मदद को भी याद रखा जाये। इसराइल दुनिया का एकलौता देश है, जो आतंकवाद के मुद्दे पर हमेशा से खुल कर भारत के साथ खड़ा है। इतना ही नही बल्कि, भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध में, जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते भी नहीं थे। इजराइल ने भारत को हथियारों से हर जरूरी मदद की थी। इसके बाद 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय आग्रह पर इजराइल ने इंडियन एयर फ़ोर्स के लड़ाकू विमानों के लिए लेज़र गाइडेड बम किट उपलब्ध कराई थी।
बहरहाल, भारत और इजराइल के रिश्तों में 4 जुलाई 2017 की तारीख नया मील का पत्थर बन चुका है। जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री का इजराइल दौरा हुआ। जानकार बतातें हैं कि भारत और इजराइल के बीच कूटनीतिक रिश्तो का उम्र 25 साल पुराना है। प्रधानमंत्री नरसिंहराव के कार्यकाल में 1992 में भारत और इजराइल के बीच कूटनीतिक रिश्ते कायम होने के बाद कुछ साल पहले तक इस तरह के दौरे की बात भी नहीं होती थी। हालांकि, बीते तीन सालों में इजराइली राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं और भारतीय राष्ट्रपति भी इजराइल का दौर कर चुके हैं।
बीते ढाई दशक के दौरान खेतों में सिंचाई हो या फिर मिसाइल तकनीक का मामला। इजराइली तकनीक ने भारत के मेहनतकश हाथों की सहूलियत बढ़ने में कारगर मदद की है। पीएम मोदी की इजराइल यात्रा से उम्मीद है की अब तक दबे पांव आगे बढ़ रही ये साझेदारी, अब पूरी धमक और रफ्तार के साथ आगे बढ़ेगी। मोदी और नेतन्याहू के बीच होने वाली बातचीत में एक अहम मुद्दा आतंकवाद का भी होगा। दरअसल, दोनो देश आतंकवाद से पीड़ित है।
यहां, सवाल उठना लाजमी है कि, जब इजराइल हर बुरे वक्त में भारत के साथ खुल कर खड़ा होता रहा है, तो भारत को उसके साथ हाथ मिलाने में सात दशक क्यों लग गया? भारत का एक विशेष तबका पीएम मोदी के दौरे पर हायतौबा करके, आखिर क्या संदेश देना चाहता है? राष्ट्र के दुश्मनो के खिलाफ मजबूत आधार तैयार करने का बिरोध करके, देश के दुश्मनो को लाभ पहुंचाने की गहरी साजिश करने वाले आस्तिन के सांप को समय रहते कुचला नही गया तो, आने वाले दिनो में यह और भी खतरनाक रूप ले सकता है।
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