भारत और पाकिस्तान का संबंध वैसे तो हमेशा से तनावो में रहा है। किंतु, पाक नेशनल एसेंबली में इमरान खान की सरपरस्ती में तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी का सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरना भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है।
जानकार मानतें हैं कि इमरान की पार्टी पाक फौज की मदद से सत्ता के करीब पहुंची है। समझा जा रहा है कि पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता या सेना की कठपुतली सरकार, दोनों ही भारत के अच्छे संकेत नहीं है। इससे पाकिस्तान में आतंकपरस्त कट्टर ताकतें पनप सकती हैं और इससे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को नए सिरे से खतरा उत्पन्न हो सकता है।
पाक में सेना और कट्टरपंथियों की बढ़ेगी ताकत
जानकारों के मुताबिक पाक में यदि कमजोर सरकार बनी तो सेना और आईएसआई का दखल और बर्चस्व बढ़ जायेगा। लिहाजा भारत के खिलाफ कट्टरवादी ताकतो को पहले से अधिक फलने-फूलने का मौका मिलेगा। नवाज शरीफ का कई मुद्दों पर पाकिस्तानी सेना से असहमति का सुर भी रहा था। हालांकि, इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। ऐसे में इमरान खान सेना से विरोध का जोखिम नहीं उठा पाएंगे। जाहिर है उनकी सरकार सेना और आईएसआई की कठपुतली के तौर पर काम करे तो किसी को अचंभा नही होगा। लिहाजा, अब भारत के लिए कूटनीतिक स्तर पर हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा।
इमरान से डील भारत के लिए मुश्किल
विश्लेषकों का कहना है कि इस्लामाबाद में इमरान की सरकार बनी तो उनसे डील करना भारत के लिए और मुश्किल हो सकता है। इसकी वजह भी साफ है। इमरान खान का रूझान हमेशा से कट्टरपंथ की ओर रहा है। क्रिकेट से राजनीति में आए इमरान कई मौकों पर जेहादियों के साथ बातचीत शुरू करने और कट्टरपंथियों को मुख्य धारा में लाने की पैरवी कर चुके हैं। जिसके कारण उनके विरोधियों ने उन्हें तालिबान खान तक कहना शु़रू कर दिया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाला समय भारत के लिए और भी मुश्किलें पैदा कर सकता है।
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