KKN ब्यूरो। कश्मीर के पहलगाम में हुआ ताजा आतंकी हमला एक बार फिर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, आत्म-संप्रभुता और पड़ोसी देश पाकिस्तान की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करता है। हमला न केवल निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाबलों पर था, बल्कि यह भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की एक सुनियोजित कोशिश भी थी। यह सवाल लाज़मी है — क्या आतंकवाद के खिलाफ भारत को हर बार संयम दिखाना ही पड़ेगा, क्योंकि सामने वाला देश परमाणु शक्ति संपन्न है?
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भारत के सामने मौजूद विकल्प
- सीमित सैन्य कार्रवाई (Surgical Strike 2.0)
- विशेषताएं: पहले से चिन्हित आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमले।
- खतरे: सीमा पार से युद्ध की आशंका, अंतरराष्ट्रीय दबाव।
- उदाहरण: 2016 उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था।
- हवाई हमला (Balakot Model)
- विशेषताएं: आतंकी ट्रेनिंग कैम्प्स पर एयरस्ट्राइक।
- उदाहरण: 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में एयरस्ट्राइक।
- फायदे: वैश्विक स्तर पर सशक्त संदेश; आतंक के खिलाफ भारत की निर्णायक छवि।
- कूटनीतिक आक्रामकता
- संयुक्त राष्ट्र, G20, BRICS, शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर पाकिस्तान को आतंक प्रायोजक देश घोषित कराने की कोशिश।
- FATF (Financial Action Task Force) में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करवाने की दिशा में प्रयास।
- आर्थिक और जल कूटनीति
- इंडस वॉटर ट्रीटी पर पुनर्विचार और सिंधु जल संधि पर दबाव बनाना।
- भारत-पाक व्यापार पर प्रतिबंधों की पुनः समीक्षा।
- साइबर ऑपरेशंस और इंटेलिजेंस वार
- डिजिटल हमलों और साइबर निगरानी के जरिए आतंकी नेटवर्क को नुकसान पहुंचाना।
- RAW और IB जैसी एजेंसियों की सक्रियता बढ़ाना।
परमाणु शक्ति का भय: दोहरी नीति क्यों?
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। परन्तु अंतरराष्ट्रीय समुदाय हर बार भारत को संयम की सलाह क्यों देता है?
- पश्चिमी देशों का रणनीतिक हित
- अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ने वाली रणनीतिक संपत्ति मानते हैं।
- चीन की ‘String of Pearls’ नीति और CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर) भी पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है।
- वैश्विक परमाणु डर
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को डर है कि भारत-पाक संघर्ष परमाणु युद्ध में बदल सकता है, जिसका असर पूरी दुनिया पर होगा।
- लेकिन सवाल यह है: अगर भारत संयम बरतता है, तो पाकिस्तान को आतंकवाद फैलाने की छूट क्यों?
दुनिया की भूमिका: भारत को किसका समर्थन मिलेगा?
- अमेरिका
- अफगानिस्तान से हटने के बाद अमेरिका पाकिस्तान पर निर्भर नहीं है जैसा पहले था।
- अमेरिका आतंक के खिलाफ भारत के रुख को समर्थन देता रहा है, लेकिन खुली कार्रवाई की सलाह नहीं देता।
- फ्रांस, इज़राइल
- भारत के करीबी रक्षा साझेदार।
- आतंकवाद के खिलाफ खुलकर भारत का समर्थन कर सकते हैं।
- रूस
- पारंपरिक मित्र, लेकिन अब चीन-पाक धुरी से भी जुड़ा।
- सीमित समर्थन की उम्मीद, लेकिन संतुलित भूमिका।
- चीन
- पाकिस्तान का रणनीतिक साझेदार।
- भारत की किसी भी सैन्य कार्रवाई का विरोध कर सकता है।
क्या भारत को अब निर्णायक रुख अपनाना चाहिए?
पहलगाम जैसे हमले बार-बार यह साबित करते हैं कि आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली ताकतों पर केवल डिप्लोमैटिक दबाव या संयम से बात नहीं बनेगी। यदि भारत वास्तव में वैश्विक शक्ति बनना चाहता है तो उसे अपनी सुरक्षा नीति में स्पष्टता और मजबूती लानी होगी।
भारत को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि वह न केवल परमाणु शक्ति है, बल्कि आत्मरक्षा में निर्णायक कदम उठाने में भी सक्षम है — और इसके लिए उसे किसी वैश्विक अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
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