आंतकवाद की नवीन अवधारणा आज पुरे विश्व के लिये एक गम्भीर चुनौती बन गई है। एशिया के साथ साथ यूरोपीय देश भी इसके शिकार होने लगा है। आंतकवाद के पनपने का मुख्य कारण शोषण और अन्याय की प्रवृति, आंतकवादियो को विदेशी सहायता, दलीय राजनीती सहित कई मुख्य कारक है। नक्सली आंतकवाद का जन्म स्थान बंगाल है। जहाँ मार्कस्जिम व लेलीनिज्म के स्थापना के साथ अपना पैर पसारने लगा। असम में उल्फा व बोडो ने भी कालांतर में अपना विस्तार किया। तमिल चीतों व लिट्टे ने भी दक्षिण में अपना विस्तार किया।
जम्मू कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवाद पिछले 20 सालो से भी अधिक समय से हिंसा व विनाश लीला का तांडव मचा रखा है। जो अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद का स्वरूप ले लिया है। भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकवाद को खुला राजनितिक और आर्थिक समर्थन देता आ रहा है। नियंत्रण रेखा पर हमेशा संघर्ष व तनाव की स्थिति बना रखा है। पाक का मनोवैज्ञानिक सोच है कि इसके माध्यम से उनके देश में राजनितिक दबाव और विसंगतियो से छुटकारा मिल जायगा।
हालांकि भारत में आंतकवाद पर नियंत्रण हेतु टाडा, पोटा सहित कई कानून बने। किन्तु अपने ही देश में ये दलीय राजनीती के शिकार हो कर रह गया। पुरे विश्व को इस गम्भीर समस्या के लिये ठोस निति व करवाई करनी होगी। इसके लिये देश में फैले अनेक प्रकार की कुरीतियाँ ,अन्धविश्वास, धर्मान्धता, कट्टरवादिता, निरक्षरता व कुव्यवस्था आदि को खत्म करना होगा। इसके लिये परस्पर सहयोग की जरूरत है। अनुशासन के साथ चरित्र निर्माण पर बल देना होगा। नैतिकता की पाठ पढनी होगी। रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे। नागरिको को स्वावलम्बी, सुखी व समृद्धि के साथ मानसिक गुलामी से मुक्त करनी होगी। सभी राष्ट्रों में आपसी सहिष्णुता बनानी होगी। आपसी व्यापर और भाईचारे बढ़ानी होगी। एक सुर से आंतकवाद का विरोध करना होगा। जनसाधारण को मुख्यधारा से जोड़ना होगा। सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक तथा वैज्ञानिक प्रगति के साथ राष्ट्र को नैतिक क्षेत्र में भी प्रगति करनी होगी। साथ ही उसकी रक्षा हेतु समुचित मापदण्ड अपनानी होगी। तभी आंतकवाद के उन्मूलन की कल्पना की जा सकती है।